फणीश्वर नाथ रेणु का “मैला आंचल” विशेष उल्लेखनीय है। मैला आंचल की कथावस्तु बिहार राज्य के पूर्णिया जिले के मेरीगंज नामक गांव से सम्बन्धित है।
उपन्यास का कुछ अंश उपर्युक्त स्त्री-पुरुष सम्बन्धों से सम्बद्ध है । शेष भाग में ग्रामीण परिवेश में व्याप्त जातिवादी टंटे, अन्धविश्वास, टुच्ची राजनीति, धार्मिक आडम्बर, अंधविश्वास और जनता में उत्पन्न हो रही जागृति के बिम्ब पिरोये गए हैं |
ये बिम्ब ‘मेरीगंज’ के परिवेश को अभिव्यक्ति देने में समर्थ हैं और पाठक के सम्मुख एक धुंधले अभिशप्त किन्तु चेतन हो रहे ग्रामीण आँचल का स्वरूप उजागर कर देते हैं।
‘मैला आंचल’ जैसा कि रेणु ने ‘भूमिका’ में माना है, एक गाँव की ही कथा नहीं, बल्कि पिछड़े ग्राम का प्रतीक भी है।
इस उपन्यास को पढ़कर बरबस यह लगता है कि अभी हमारे देश में कितना सारा काम करने को है।
इसका परिवेश पाठक के मन को एक उदास हीन-भावना और ग्लानि से भर देता है और उसके प्रकाशन के पच्चीस वर्षों के बाद आज भी जब हम अपने ग्रामों के विकास कार्यक्रमों पर दृष्टिपात करते हैं, तो लगता है कि हमारे देश के नियामकों ने इतने वर्षों का समय यों ही नष्ट हो जाने दिया है और सामान्यत: गांवों की जीवन स्थिति में विशेष सुधार नहीं हुआ है |
वस्तु-विधान की दृष्टि से उपन्यास की कथा दो परिच्छेदों में विभक्त है। प्रथम खंड में चौवालीस परिच्छेद हैं तथा दूसरे खंड में तेइस परिच्छेद हैं। कथावस्तु में अनेक प्रसंगान्तर हैं।
इसके अन्तर्गत तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद, ठाकुर राम कृपाल, कालीचरन, बालदेव व लक्ष्मी, सेवादास, रामदास व लक्ष्मी, डॉक्टर प्रशांत व कमला से सम्बन्धित घटना प्रसंग है।
मूल कथा वस्तु मेरीगंज के परिवेश विषयक विवरण से सम्बन्ध है। मेरीगंज की लोक-संस्कृति का चित्रण उपन्यास की विशिष्ट देन है। विद्यापद नाच, जाट-जट्टिन का खेल, संथाल नृत्य, गांव वालों की वेष-भूषा, रहन-सहन, धार्मिक विश्वास उल्लेखनीय पक्ष है, कथावस्तु में पर्याप्त नाटकीयता है।
लोकगीतों के प्रयोग से ग्राम जीवन की उत्सव-प्रियता, रोचकता प्रकट हुयी है। मार्मिक प्रसंगों की रचना में उपन्यासकार सिद्धहस्त हैं। कुल मिलाकर मैला आंचल के माध्यम से एक ऐसे जन समाज का चित्रण किया गया है, जो व्यवस्था के समस्त आवरणों को चीरते हुये आगे बढ़ रहा है।
पात्र योजना की दृष्टि से मैला आंचल सफल, सोद्देश्य उपन्यास है। मानवीय व्यक्तित्व की प्रायः सभी सबलताएं व दुर्बलताएं रेणु के पात्रों में विद्यमान हैं। प्रस्तुत उपन्यास में विश्वनाथ प्रसाद, डॉक्टर प्रशांत, राम कृपाल सिंह, महंत सेवादास, कालीचरन, बालदेव, ज्योतिषी काका, कमली, लक्ष्मी, फुलिया प्रमुख पात्र हैं।
चरित्रांकन की अन्तरंग व बहिरंग दोनों ही पद्धतियों में चरित्रगत विशेषताएं प्रकट होती है। उपन्यास में नागासाधु के व्यक्तित्व के अनेक पक्षों का उद्घाटन प्रस्तुत उदाहरण से होता है, “साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है।
यद्यपि वह दूसरे मत को मानने वाला मुरती है, फिर भी आचार्य जी उसको साथ में रखते हैं। बड़ा क्रोधी मुरती है। हाथ में छोटा सा कुल्हाड़ा रखता है। लम्बी दाढ़ी-जटा, सारे देह में भभूत और कमर में सिर्फ चांदी की सिकड़ी।
” इसी प्रकार के अनेक वर्णनात्मक आख्यानों द्वारा रेणु पात्रों के चरित्र की सामान्य रूपरेखा संश्लिष्ट रूप से प्रस्तुत कर देते हैं। चरित्रांकन की दूसरी पद्धति पात्रों के आन्तरिक व्यक्तित्व उनकी मनोभावनाओं, मानवीय संवेदना की सूक्ष्मता को उद्घाटित करती है।
‘मैला आंचल’ देशकाल वातावरण की दृष्टि से एक प्रभावोत्पादक उपन्यास है। इसके अन्तर्गत मेरीगंज के माध्यम से पूरे देशकाल के ग्रामीण समाज का यथार्थ चित्रण किया गया है।
सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक स्थितियों के बहुआयामी चित्र, इनसे जुड़े विवरण व मार्मिक प्रभाव उपन्यास में मिलते हैं। वातावरण का सूक्ष्म, सघन प्रतीकात्मक वर्णन करने में उपन्यासकार पूर्णतः सफल है।
वातावरण के चित्रित प्रभाव के आधार पर ही स्वतंत्रता प्राप्ति के आसपास की परिस्थिति से साक्षात्कार होता है। वर्णनात्मक कला कौशल से युक्त वातावरण के रेखांकन का एक उदाहरण द्रष्टव्य है –
“कोठी के बगीचे में, अंग्रेजी फूलों के जंगल में आज भी मेरी की कन मौजूद है। कोठी की इमारत ढह गई है, नील के हौज टूट-फूट गये हैं, पीपल, बबूल तथा अन्य जंगली पेड़ों का एक घना जंगल तैयार हो गया है,
मैला आंचल की भाषा के तीन रूप हैं – “सरल स्वाभाविक बोलचाल की भाषा, काव्यात्मक भाषा तथा चिन्तन प्रधान भाषा।
शब्द योजना की दृष्टि से तत्सम, तद्भव, विदेशी तथा देशज शब्दावली का प्रयोग किया गया है। रेणु की भाषा में अभिव्यंजना शक्ति का समाहार है। उनकी भाषा प्रभावोत्पादक व चित्र विधायिनी क्षमता से युक्त है।
एक परिपक्व जीवनानुभव व प्रौढ़ कलात्मक चेतना से जुड़कर ही ‘मैला आंचल’ जैसे उपन्यास की रचना संभव होती है। ‘मैला आंचल’ में उपन्यास कला के सभी तत्व यथेष्ट रूप में नियोजित हैं।
जनपदीय वस्तुविधान, सोद्देश्य पात्र योजना, रोचक संवाद, यथार्थनिष्ठ वातावरण, भावव्यंजना भाषाशैली एवं जागरूक समाज के निर्माण विषयक उद्देश्य आदि विविध दृष्टियों से मैला आंचल एक प्रभावी औपन्यासिक कृति है।
हिन्दी के आंचलिक उपन्यासों की परम्परा में यह रचना मील का पत्थर है।
Industry refers to economic activities, which are connected with conversion of resources into useful goods. Industry is concerned with the…
Business refers to any occupation in which people regularly engage in an activity with an objective of earning profit. The…
According to Prof. Samuelson, every economy has three basic problems of resource allocation: (a) What to produce and how much…
The introduction of High Yielding Varieties (HYV) of seeds and the increased use of fertilisers, pesticides and irrigation facilities are…
Yes, we agree with the above statement that the traditional handicrafts industries were ruined under the British rule. The following…
India was under British rule for almost two centuries before attaining Independence in 1947. The main focus of the economic…