विनियोग किसे कहते हैं

 विनियोग ( INVESTMENT) को विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है।

(1) पीटरसन के अनुसार, “विनियोग व्यय का अर्थ उत्पादकों के स्थायी वस्तुओं, नये भवनों तथा वस्तुओं के भण्डार में परिवर्तन से है।”

(2) प्रो. कीन्स के अनुसार, “विनियोग से अभिप्राय पूँजीगत वस्तुओं में होने वाली वृद्धि से है।” (4) डडले डिलार्ड के अनुसार, “वास्तविक पूँजीगत परिसम्पत्तियों के वर्तमान स्टॉक में वृद्धि विनियोग है |

(3) श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, “विनियोग से आशय वस्तुओं के वर्तमान भण्डार में वृद्धि करने से है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि आय के कुछ भाग को अधिक आय अर्जित करने हेतु सम्पत्तियों में लगाना विनियोग कहलाता है।बचत की भाँति विनियोग भी व्यक्तिगत तथा सामाजिक होते हैं। जब विनियोगों का लाभ किसी व्यक्ति और परिवार को मिलता है तो उसे व्यक्तिगत और जब उसका लाभ सामूहिक रूप से समाज को अथवा राष्ट्र को मिलता है तो उसे सामाजिक या राष्ट्रीय विनियोग कहते हैं।

विनियोग के प्रकार (TYPES OF INVESTMENT)

गणना, प्रकृति और स्वरूप के अनुसार विनियोग निम्न प्रकार के होते हैं
(1) कुल तथा शुद्ध विनियोग (Gross and Net Investment):- विनियोग का यह स्वरूप विनियोग की मात्रात्मक वृद्धि को प्रदर्शित करता है। कुल विनियोग से आशय एक निश्चित समय में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में वास्तविक विनियोग से होता है, जबकि शुद्ध विनियोग कुल विनियोग का वह भाग होता है, जो अर्थव्यवस्था की कुल विद्यमान उत्पादन क्षमता में शुद्ध वृद्धि को प्रकट करता है।
(2) वित्तीय विनियोग (Financial Investment):- वित्तीय विनियोग व्यक्तिगत विनियोग का स्वरूप है। जब कोई व्यक्ति अपनी आय में बचत का अंश किन्हीं वर्तमान कम्पनियों के अंश, ऋणपत्र, सरकारी प्रतिभतियों या बॉण्डों को क्रय करने में लगाता है तो ऐसे विनियोग को वित्तीय विनियोग कहते हैं।

(3) वास्तविक विनियोग (Real Investment):- यह भी व्यक्तिगत विनियोग का ही स्वरूप है। जब कोई व्यक्ति अपनी बचतों | को नये कारखानों की स्थापना या भवन आदि के निर्माण में लगाता है तो इसे वास्तविक विनियोग कहा जाता है। वित्तीय विनियोगों से समाज में पूँजी की मात्रा में वृद्धि होती है। यह राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि में सहायक होती हैं।

(4) प्रेरित एवं स्वायत्त विनियोग (Inspired and Auto| nomus Investment):- जब समाज में आय बढ़ने के साथ-साथ ‘व्यय की प्रकृति विकसित होती है तो बाजार में माँग का सृजन होता है। इस बढ़ती माँग को पूरा कर लाभ अर्जित करने के लिए उद्योगपति और व्यवसायी विनियोग के लिए प्रेरित होते हैं, तब इसे प्रेरित विनियोग कहते हैं। जब विनियोग भावी माँग या सम्भावनाओं और आविष्कार आदि से सम्बन्धित होते हैं तब इन्हें स्वायत्त विनियोग कहते हैं।

(5) योजनाबद्ध तथा गैर-योजनाबद्ध विनियोग (Planned and Non-planned Investment):- जब भावी लाभ को ध्यान में रखकर योजनाबद्ध तरीके से सोच-विचार कर पूँजीगत सम्पत्तियों में धन लगाया जाता है तब उसे योजनाबद्ध विनियोग कहा जाता है। कई बार माँग में कमी जैसी परिस्थितियों के कारण विनियोग अनपयोगी पडा रहता है या विनियोग करने के पीछे केवल बचतों का उपयोग करना ही लक्ष्य हो तब उसे गैर-योजनाबद्ध विनियोग कहते हैं।

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