भारत में गैर ब्रिटिश शासन की व्याख्या कीजिए

 भारत में ‘गैर-ब्रिटिश शासन –भारत में ब्रिटिश शासन के उद्देश्य एवं प्रक्रिया को देखते हुए दादाभाई नौरोजी ने इसे ब्रिटिश शासन (जैसा ब्रिटेन में था) के सिद्धान्तों के प्रतिकूल बताया तथा इसे गैरब्रिटिश शासन कहा.

उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी जिसका शीर्षक पॉवर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इण्डिया‘ रखा. उन्होंने यह वक्तव्य दिया कि भारत में ब्रिटिश शासन भारत का आर्थिक एवं ज्ञान का दोहन एवं शोषण के लिए है.

भारत के लाभ के लिए नहीं उनके अनुसार, “वास्तविकता यह है कि अंग्रेजों की शासन नीति, जैसीकि वह है (न कि जैसी हो सकती है या होनी चाहिए) एक चिरस्थायी और हर रोज बढ़ने वाला विदेशी आक्रमण हैं.”

28 दिसम्बर, 1897 को दादाभाई ने एक प्रस्ताव में कहा-“राजद्रोह के नाम पर अन्यायपूर्ण मुकदमे चलाए गए और कहा गया कि पढ़े-लिखे भारतीय राजद्रोही हैं,

भारतीय पत्रों की स्वतन्त्रता का मनमाना अपहरण, प्रशासन की तानाशाही और नालायकी-इन सभी बातों और बहुत-सी अन्य बुराइयों का मुख्य कारण अन्यायपूर्ण अब्रिटिश शासन पद्धति, जिससे अविराम तथा निरन्तर बढ़ती हुई गति से देश का दोहन हो रहा है.

इस दोहन को राजनीतिक ढोंग तथा चालाकी से कायम रखा जा रहा है, जो ब्रिटेन की ख्याति और सम्मान के अनुपयुक्त है और सब ब्रिटिश जाति और ब्रिटिश सम्राट् की इच्छाओं के विरुद्ध हो रहा है,

इसलिए उन्होंने कहा, “जब तक अन्यायपूर्ण और ब्रिटिश शासन को दूर कर उसके स्थान पर न्यायपूर्ण और वास्तविक ब्रिटिश रूप का शासन नहीं चलाया जाता, तब तक यही अनिवार्य नतीजा हो सकता है कि भारत का नाश हो और ब्रिटिश साम्राज्य पर आफत आए.”

दादाभाई नौरोजी ने वेलची कमीशन (1897), लन्दन इण्डिया सोसायटी (1904), कलकत्ता कांग्रेस (1906) आदि सभी के सामने एक ही दृष्टिकोण रखा, “ब्रिटिश सरकार भारत से आर्थिक संसाधनों का दोहन कर ब्रिटेन ले जा रही है तथा भारत कों कंगाल बना रही है,”

इस प्रकार दादाभाई नौरोजी ने अंग्रेज सरकार की आर्थिक नीतियों की जमकर आलोचना की और भारतीयों को स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया.

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