कायांतरित शैल:- इस वर्ग में वे शैलें आती हैं जो अपने वास्तविक रूप से परिवर्तित हो चुकी हैं।
पृथ्वी में पाए जाने वाले ताप या दबाव अथवा दोनों के संयुक्त प्रभाव के कारण आग्नेय अथवा अवसादी शैलों के रंग-रूप, संरचना, कठोरता आदि में परिवर्तन आ जाते हैं। इस परिवर्तन के कारण बनी हुई चट्टानों को रूपांतरित शैलें कहते हैं।
कायांतरित शैलों का प्रकार -कायांतरित शैलों को दो मुख्य प्रकार में बाँटा जाता है। इनके नाम हैं-(i) अपदलनी शैल तथा (ii) पुनःक्रिस्टलीकृत शैल।
(i) अपदलनी (Cataclastic) कायांतरित शैलें- इन शैलों का निर्माण पूर्व स्थित खनिजों के पर्याप्त रासायनिक परिवर्तन के बिना यांत्रिक विघटन (टूटना तथा चूर-चूर होना) से हुआ है। इस प्रक्रिया को गतिक कायांतरण कहते हैं।
अत्यधिक दबाव के कारण होने वाले परिवर्तन को गतिक रूपांतरण कहते हैं। अधिकतर धरातल से 12 से 16 कि०मी० नीचे जब चट्टानें ठोस अथवा प्लास्टिक अवस्था में रहती हैं तभी उनमें परिवर्तन होता है।
इस परिवर्तन से ग्रेनाइट रूपांतरित होकर नाइस में तथा मिट्टी और शैल रूपांतरित होकर शिस्ट में बदल जाती है। ये दोनों चट्टानें भारत के दक्षिणी भागों तथा झारखण्ड और राजस्थान के कुछ भागों में पाई जाती हैं।
(ii) पुनःक्रिस्टलीकृत (Recrystallised) शैलें- ये शैलें मूल खनिजों के नए सिरे से पुनः क्रिस्टलीकृत होने से बनती हैं। इनमें विभिन्न रासायनिक संघटनों तथा क्रिस्टल जालकों वाले खनिजों का निर्माण होता है।
इन्हें दो उपभागों में बाँटा जाता है।
इन उपभागों के नाम-(क) संस्पर्श कायांतरित शैल तथा (ख) प्रादेशिक कायांतरित शैल है।
(क) संस्पर्श कायांतरित शैलें (Contact Metamorphic Rocks)- अंतर्वेधी मैग्मा के संपर्क में आने पर उसके अत्यधिक ताप के प्रभाव से शैल का पुनःक्रिस्टलीकरण हो जाता है, जिससे संस्पर्श कायांतरित शैलों का निर्माण होता है।
पर्वत-निर्माण वाले क्षेत्रों में या ज्वालामुखी क्षेत्रों में मैग्मा धरातल के समीप वाली चट्टानों में भी घुस जाता है। ऐसे अंतर्वेधन के समय लगभग 2 कि०मी० तक के सीमित क्षेत्र में अधिक ताप वाले मैग्मा के स्पर्श से चट्टानें रूपांतरित हो जाती हैं।
दक्षिणी भारत में स्पर्श रूपांतरण के अनेक उदाहरण मिलते हैं। इन शैलों में बलन तथा भ्रंशन नहीं होता, बल्कि मैग्मा से निकले नवीन खनिज कायांतरित शैलों में मिल जाते हैं।
(ख) प्रादेशिक कायांतरित शैलें (Regional Metamorphic Rocks)- जब अधिक गहराई पर उच्च ताप तथा दबाव मिलकर किसी वृहद् क्षेत्र की चट्टानों को बदलते हैं तो इसे क्षेत्रीय रूपांतरण कहा जाता है। क्वार्टजाइट का निर्माण इसी प्रकार से हुआ है।
यह कठोरतम चट्टानों में से एक है जिससे पर्वतमालाएँ और कटक बनते हैं। प्रादेशिक कायांतरित शैलों में उच्च दाब अथवा उच्च ताप या फिर दोनों के संयुक्त प्रभाव से अपरूपण विकृति की प्रक्रियाओं के दौरान पुनःक्रिस्टलीकरण हो जाता है।