परिभाषा:- सूफ़ी शब्द साधारणतः किसी मुस्लिम संत या दरवेश के लिए प्रयोग किया जाता है।
इस शब्द की उत्पत्ति सफ़ा (पवित्र) शब्द से हुई अर्थात् ईश्वर का ऐसा भक्त जो सभी सांसारिक बुराइयों से मुक्त हो।
कुछ लेखकों ने सूफ़ी शब्द को सफ़ा (दर्जा) से जोड़ा है अर्थात् ऐसा व्यक्ति जो आध्यात्मिक रूप में भगवान् के साथ पहले दर्जे का संबंध रखता हो।
अबूनास-उल-सराज के अनुसार सूफ़ी शब्द सफ (ऊन) शब्द से निकला है। क्योंकि सूफ़ी संत ऊनी कंबल या लोई ओढ़ते थे, इसलिए उन्हें सूफ़ी कहा जाने लगा। कुछ लेखकों का विचार है कि सूफ़ी शब्द सोफिया से बना है जिसका अर्थ है- बुद्धि।
सूफियों के मुख्य चार सिलसिले थे:
(1) चिश्ती सिलसिला (Chishti Silsila): शेख मुइनुद्दीन चिश्ती ने भारत में चिश्ती सिलसिले की नींव रखी। वह 1190
में गजनी से लाहौर आया। उसने बाद में अजमेर को अपना निवास स्थान बनाया।
जहाँ उसका 1235 ई० में देहांत हो गया। भारत में, बहुत से ऊँचे वर्ग के लोग, उससे बहुत प्रभावित हुए तथा उसका यह संप्रदाय बहुत प्रभावशाली बन
गया। इस संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध संत बाबा फरीद थे।
(2) कादरी सिलसिला (Kadri Silsila): कादरी सिलसिले का संस्थापक बगदाद का शेख अब्दुल कादिर जिलानी था।
जिसने इस सिलसिले की 12वीं शताब्दी में नींव रखी।
सूफ़ी मत के इस संप्रदाय को सैय्यद मुहम्मद भारत लाया तथा सिंध प्रांत में उच नामक स्थान पर रहने लगा। इस कादरी संप्रदाय का सबसे प्रसिद्ध संत हजरत मियां मीर था जिसने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की नींव रखी।
(3) सोहरावर्दी सिलसिला (Sohravardi Silsila): बहाउद्दीन जकारिया सोहरावर्दी सिलसिले का सबसे प्रसिद्ध संत था।
उसका जन्म मुलतान के समीप कोट अरोर में सन् 1180 ई० में हुआ।
उसने मुल्तान में अपना मठ स्थापित किया, जहाँ उसने 50 वर्षों तक धर्म उपदेशक का कार्य किया। उसने अपना जीवन सुख और आनंद से व्यतीत किया।
वह जीवन के शारीरिक और मानसिक दोनों पक्षों में संतुलन बनाए रखने में विश्वास रखता था। उसका सबसे प्रसिद्ध शिष्य जलालुद्दीन सुरखपोश था। वह बुखारा से आकर उच में बस गया।
उसके पौत्र सैय्यद जलालुद्दीन ने सिंध के लोगों के राजनीतिक और धार्मिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। ऐसा कहा जाता है कि वह 36 बार हज करने मक्का गया।
(4) नक्शबंदी (Naqashbandi): नक्शबंदी सिलसिला तेरहवीं शताब्दी में मध्य एशिया में अस्तित्व में आया। भारत में
इस सिलसिले की स्थापना 1603 ई० में हुई।
ख्वाज़ा बाकी बिल्लाह ने इस सिलसिले को आरंभ किया। इस सिलसिले का मुख्य संत शेख अहमद सरहिंदी था।
वह रूढ़िवादी विचारों का मुसलमान था। वो अकबर की धार्मिक सहनशीलता की नीति का विरोधी था।
सूफ़ी मत की प्रमुख विशेषताएं:
(i) ईश्वर एक है, वही इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता है, वह सबमें है और सब उसमें है, सभी पदार्थ उसी से पैदा होते हैं और
अन्त में उसी में समा जाते हैं।
(ii) सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही है, सभी धर्म मानव को अच्छी शिक्षा देते हैं, मार्ग भले ही अलग-अलग हों, पर मंजिल
सभी धर्मों की एक ही है, परम ईश्वर की प्राप्ति।
(iii) ईश्वर को पाने के लिये मनुष्य मात्र से प्रेम करना जरूरी है, सब मनुष्य समान हैं, ना कोई छोटा ना बड़ा सभी ईश्वर
की सन्तान हैं। सूफ़ी मानवतावाद के हिमायती थे, यही कारण था कि उनके अनुयायी हर वर्ग, जाति और धर्म के थे।
(iv) सूफ़ी मत की एक प्रमुख विशेषता सादगी पूर्ण जीवन प्रणाली भी थी। वे सादा तथा पवित्र जीवन जीने पर बल देते थे,
आडम्बरों से परहेज करते थे और विलासिता को जीवन की आध्यात्मिक उन्नति में अवरोध मानते थे।
(v) सूफ़ी विचारधारा में गुरु (पीर) तथा शिष्य (मुरीद) के मध्य संबंध को विशेष महत्व दिया गया हैं, गुरु ही शिष्यों के
लिये मार्गदर्शक होता है, सूफ़ी प्रणाली में भी गुरु शिष्य के लिये नियमों का निर्माण करता है।
(vi) सफ़ी परंपरा में गीत संगीत गा गाकर ईश्वर का स्मरण किया जाता है. संगीत आत्मा को पवित्र करता है. ऐसा माना है कि संगीत में ईश्वर का वास है, ईश्वर की उपासना को लेकर प्रेमभाव में तल्लीन हो जाना इनकी उपासना पद्धति का
अंश था।
(vii) सूफियों ने अपने को वर्गों या सिलसिलों में विभाजित कर लिया, प्रत्येक सिलसिले का अपना एक नेता होता था,
जो अपने शिष्यों के साथ, खानकाह जो एक तरीके के आश्रय होते थे, में रहते थे, खानकाह में रहने वालों तथा जनसामान्य के बीच कैसे संबंध होने चाहिये इसकी सीमा ‘शेख’ द्वारा तय की जाती थी।
(viii) सूफ़ी आश्रम व्यवस्था, पश्चाताप, व्रत, प्राणायाम, आदि पर बल देते थे उनके अनुसार मानव अपने शुद्ध तथा उच्च कर्मों से ही परमात्मा की दरगाह में स्थान पा सकता है,
धन, ऐश्वर्य और ऊंच-नीच, छुआछूत जैसी भावनाओं के सहारे किये जाने वाले व्यवहार को अपनाकर कभी कोई ईश्वर के हृदय में स्थान नहीं बना सकता है।
(ix) यह सफ़ी मत की मुख्य विशेषता थी कि उन्होंने स्थानीय परम्पराओं को आत्मसात करने का प्रयत्न किया.
जैसे चिश्तियों ने स्थानीय भाषा को अपनाया, क्षेत्रीय भाषा में काव्य रचना की, कुछ सुफियों ने लम्बी कवितायें लिखीं। जिसमें