भाद्रशुक्ल चतुर्दशी को ही अनन्त चतुर्दशी या अनन्त चवदस कहते हैं।
पावस ऋतु का यह अंतिम उत्सव है । कष्टों से मुक्ति के लिए यह व्रत भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को किया जाता है।
अनन्त चतुर्दशी मनाने की विधि – अनन्त चतुर्दशी के दिन प्रातः काल स्नान करके अक्षत, दूर्वा और शुद्ध सूत से बने और हल्दी के रंगे हुए चौदह गांठ के अनन्त को सामने रखकर हवन किया जाता है। इसके बाद अनन्तदेव का ध्यान करके शुद्ध अनन्त को अपनी दाहिनी भुजा में बांधा जाता है। इस दिन एक समय व्रती को अलोना भोजन करना पड़ता है।