चर्चा कीजिए कि भारत का संविधान किस प्रकार समान अधिकार प्रदान करता है।

  • Post
    pinku
    Participant
    Viewing 0 reply threads
    • उत्तर
        भारतीय संविधान के भाग 3 के मूल अधिकार के अन्तर्गत अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 तक समता का अधिकार वर्णित है।

        भारत का संविधान समानता को सुनिश्चित करने के लिए एक नागरिक और दूसरे नागरिक के बीच किये जाने वाले सभी विभेदों को अवैध घोषित करता है। ये ऐसे विभेद हैं जो केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर है (अनुच्छेद 15) निश्चय ही अन्य आधार भी हैं, जो स्पष्ट है। यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि आरक्षण विभेद न होकर समाज के सर्वांगीण विकास का माध्यम है।

        संविधान ने सभी सार्वजनिक स्थानों को सभी नागरिकों के लिए खोल दिया है अनुच्छेद 15(2)। अस्पृश्यता का अन्त (अनुच्छेद 17), उपाधियों का अन्त (अनुच्छेद 18) (राज्य सेवा या विद्या सम्बन्धी सम्मान के अतिरिक्त) राज्यअधीन नौकरियों में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16) तथा विधि के समक्ष समता या विधि के समान संरक्षण को ऐसे अधिकार बनाया गया है जिसके लिए कोई नागरिक न्यायालय की शरण ले सकता है।

        राजनीतिक समानता को सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वयस्क मताधिकार का उपबंध किया गया है। (अनुच्छेद 326)। संविधान के भाग-4 में आर्थिक क्षेत्रों में स्त्री पुरुषों के बीच समान व्यवहार और समान कार्य हेतु समान वेतन (अनुच्छेद 39-घ) की बात कही गयी है।

        उद्देशिका में ‘कल्याणकारी राज्य’ और ‘समाजवादी’ लक्ष्यों की  आकांक्षा भी समानता को सुनिश्चित करती है। भारतीय संविधान के अन्तर्गत भारत पंथनिरपेक्ष राज्य है अर्थात्  नागरिकों को किसी विशिष्ट धर्म या पंथ से जुड़ने की स्वतन्त्रता है और इस आधार पर कोई विभेद नहीं किया जा सकता।

        संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं निवारक निरोध  अधिनियम स्वतन्त्रता एवं समानता को सही अर्थों में परिभाषित करता है।इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है कि कृषि भूमि सुधार को सफल बनाने के लिए किया गया प्रयास भी समता के उद्देश्य की पूर्ति के  लिए ही है।

    Viewing 0 reply threads
    • You must be logged in to reply to this topic.