श्रीकृष्ण के शंख का नाम पांचजन्य था ।
पांचजन्य शंख की एक कथा प्रचलित है ।
श्रीकृष्ण और बलराम को विद्या अध्ययन के लिए ऋषि संदीपनि के आश्रम में भेजा गया। वहाँ केवल चौंसठ दिनों में दोनों ने सभी धर्मग्रंथों का अध्ययन कर लिया और अन्य विद्याएँ सीख लीं ।
जब विद्या-समापन का दिन आया, तब श्रीकृष्ण बोले, “गुरुदेव, आपने हम दोनों भाइयों को अपने ज्ञान का महत्त्वपूर्ण अंश प्रदान किया है, जिसके द्वारा हम संसार रूपी रहस्य को समझ सके हैं । कृपा करके बताएँ कि हम गुरु-दक्षिणा में आपको क्या दें?”
संदीपनि ऋषि ने कहा, ” वत्स, गुरु अपने शिष्यों को किसी लोभ के अधीन होकर विद्या प्रदान नहीं करता, बल्कि ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैले, इसके लिए अपने शिष्यों को विद्या प्रदान करता है। प्रत्येक गुरु यह चाहता है कि उसके शिष्य ज्ञान अर्जित करके संसार में प्रसिद्धि प्राप्त करें और दूसरों की सहायता करें।”
गुरु संदीपनि की बात सुनकर श्रीकृष्ण उनके आगे नतमस्तक हो गए और उनसे कहा, “गुरुदेव, आपने जो कहा वह एक अटल सत्य है; किंतु शिष्यों के भी अपने गुरु के प्रति कर्तव्य होते हैं । शिष्य गुरु का ऋण तो नहीं उतार सकते, किंतु उसे कम अवश्य करना चाहते हैं । अतः आप हमारे कर्तव्य को पूर्ण करने में हमारा सहयोग करें। ”
ऋषि संदीपनि यह जानते थे कि श्रीकृष्ण साक्षात् भगवान् विष्णु के अवतार हैं, इसलिए गुरु-दक्षिणा के रूप में ऋषि ने अपने पुत्र की वापसी चाही, जिसे समुद्र में रहनेवाले पंचजन नामक राक्षस ने निगल लिया था।
गुरु-दक्षिणा को सुनकर श्रीकृष्ण बोले, “हे गुरुदेव ! आपने गुरु-दक्षिणा में जो माँगा है, उसे हम अवश्य देंगे। हम आपके पुत्र को उस राक्षस के चंगुल से निकालकर अवश्य लाएँगे। आप निंचित रहिए और भगवान् श्रीहरि पर भरोसा रखिए । ”
इतना कहने के बाद श्रीकृष्ण पंचजन की खोज में निकल पड़े। वह दुष्ट राक्षस समुद्र के गर्भ में एक शंख में रहता था। श्रीकृष्ण ने उसे खोज निकाला और उसका वध करके ऋषि-पुत्र को यमराज से वापस माँगकर ऋषि संदीपनि को सौंप दिया।
शंख को भी वे अपने साथ ले आए, जिसे ‘पाञ्चजन्य’ नाम दिया गया। पाञ्चजन्य का उद्घोष एक चेतावनी होता था कि ‘भगवान् श्रीकृष्ण अब मनुष्यों और देवी-देवताओं को पीड़ा पहुँचानेवालों को मृत्यु के घाट उतारने के लिए तैयार हैं।’ जब-जब श्रीकृष्ण ने किसी युद्ध में भाग लिया, तब-तब उन्होंने पांचजन्य शंख बजाया। पांचजन्य शंख श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय था ।
महाभारत में शंख के नाम
भीष्म पितामह के शंख का क्या नाम था?
उत्तर :- महाशंख
अर्जुन के पास कौन सा शंख था?
उत्तर :- देवदत्त
भीमसेन के शंख का नाम क्या था?
उत्तर :- पैणक
युधिष्ठिर के शंख का नाम क्या था?
उत्तर :- अनंतविजय
नकुल के पास कौन सा शंख था?
उत्तर :- सद्योष
सहदेव के पास कौन सा शंख था?
उत्तर :- मणिपुष्पक
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