मद्यपान वह स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति शराब पीने का आदी हो जाता है। इसके फलस्वरूप वैयक्तिक एवं सामाजिक विघटन उत्पन्न होता है। समाज में अनेक समस्याएँ पैदा होती हैं और व्यक्ति का पतन होता है
ई. एच. जॉनसन (E. H. Jhonson) ने अपने अध्ययन ‘Social Problems of Urban Man1973’ में लिखा है कि-“मद्यपान वह स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति मदिरा लेने की मात्रा पर नियन्त्रण खो बैठता है जिससे कि वह पीना आरम्भ करने के पश्चात् उसे बन्द करने में सदैव असमर्थ रहता है।”
मार्क केलर एवं वी. इफ्रोम (Mark Kellar and V. Efrom) ने अपनी पुस्तक The Prevalence of Alcoholism-1955 में लिखा है कि-“मद्यपान का लक्षण मदिरा का इस सीमा तक बार-बार पीना है जो उसके प्रथागत उपयोग या समाज के सामाजिक रिवाजों के अनुपालन से अधिक है और जो पीने वाले के स्वास्थ्य या उसके सामाजिक या आर्थिक कार्य करने को प्रभावित करता है।”
एच. पी. फेयरचाइल्ड (H. P. Fairchild) ने अपनी पुस्तक Dictionary of Sociology में लिखा है कि-“शराब की असामान्य एवं बुरी आदत ही मद्यपान है।”
(1) शराब एक दवा के रूप में :- ग्रामीण लोग शराब का प्रयोग दवा के रूप में करते हैं। यह एक उत्तेजक और पौष्टिक पदार्थ माना जाता है। सर्दी के प्रवाह को समाप्त करने के लिए, सर्प के विष को दूर करने के लिए, प्रमेह, मलेरिया और अन्य बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
(2) धार्मिक एवं सामाजिक कारक :- मद्यपान के इस दौर का सम्बन्ध धर्म एवं समाज से भी लिया जाता है। भारत में अनेक उत्सव, त्योहार आदि ने मद्यपान की इस प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया है। यद्यपि धर्म के अनुसार शराब पीना एक सामाजिक बुराई है और इसी कारण धर्मग्रन्थों में इसका घोर विरोध किया गया है पर सामाजिक बन्धन इतने ढीले हैं कि मद्यपान को बुराई की दृष्टि से नहीं, बल्कि शिष्टाचार की दृष्टि से देखा जाता है। आज शराब पीना और पिलाना सामाजिक प्रतिष्ठा का द्योतक है। विवाह, जन्मोत्सव एवं सांस्कृतिक समारोह के अवसर पर स्त्री-पुरुष, युवक-युवतियाँ शराब का आनन्द लेते हैं।
(3) आर्थिक कारक :- अनेक आर्थिक कारक भी मद्यपान के लिए उत्तरदायी हैं। धनवानों की तुलना में गरीब लोग शराब का अधिक सेवन करते हैं। सेल्समैनों को ग्राहक फंसाने के लिए ग्राहकों को शराब पिलानी पड़ती है और स्वयं भी पीनी पड़ती है। सैनिक लोग अपना नीरस एवं एकाकी जीवन व्यतीत करने के लिए, जब वे युद्ध क्षेत्र में तैनात रहते हैं तो इस नीरसता को भूलने के लिए शराब पीते हैं। इस प्रकार हर प्रकार का निराश, असफल व्यक्ति शराब पीकर क्षणिक सुख के लिए परिवार एवं स्वयं को विघटित कर लेता है।
(4) व्यक्तिगत कारक :- कुछ लोग बुरी संगत में पड़कर शराब पीना सीख जाते हैं। पहले-पहल तो शराब का स्वाद लेने मात्र का अभ्यास होता है पर बाद में आदत बन जाती है। अधिक परिश्रम की थकावट को दूर करने के लिए नियमित रूप से लोग इसका सेवन करते हैं। इस प्रकार अनेक व्यक्तिगत कारणों जैसे-निराशा, प्रेम में असफलता, पारिवारिक सुख का अभाव, सौतेले माता-पिता द्वारा अवहेलना को भुलाने के लिए व्यक्ति शराब पीना आरम्भ करता है।
(5) अज्ञानता :- अज्ञानता भी मद्यपान का एक कारण है। यह देखने में आया है कि अनपढ़ व्यक्तियों में मद्यपान का प्रतिशत अधिक होता है। बौद्धिक दृष्टिकोण से पिछड़े होने के कारण ऐसे लोगों में मद्यपान के दुष्परिणाम को समझने, जीवन की वास्तविकता का सामना करने और समस्याओं को हल करने की क्षमता कम होती है। भारत में निम्न जाति के लोग और मिल एवं कारखानों के श्रमिक अधिक शराब पीते हैं।
(1) वैयक्तिक विघटन :- मद्यपान करने के कुछ कारण एकदम व्यक्तिगत होते हैं जैसे कि कभी-कभी व्यक्ति अपनी भूख बढ़ाने के लिए थोड़ी-सी शराब ले लेता है; पर यही शराब की मात्रा लेना उसकी आदत बन जाती है और व्यक्ति धीरे-धीरे इतना आदी हो जाता है कि उसकी बुद्धि कम हो जाती है, उसे भले-बुरे का ज्ञान नहीं रहता, न ही उसे अपने बच्चों का कुछ ध्यान रहता है। धीरे-धीरे उसकी आर्थिक स्थिति भी खराब होती जाती है। वह गंदी व टूटी-फूटी बस्तियों में रहता है। व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत परेशानियों को दूर करने व उसका हल निकालने के लिए भी शराब पीता है; पर उससे हल तो कुछ निकलता नहीं, धीरे-धीरे व्यक्ति का वैयक्तिक विघटन होने लगता है। वह मामूली-से-मामूली बात के लिए अधिक-से-अधिक चिन्तित रहता है, सोचता अधिक है। इस प्रकार उसका चरित्र कमजोर हो जाता है। वह संसार के साथ संघर्ष नहीं कर सकता बल्कि उन परिस्थितियों से भागने को कोशिश करता है। इस प्रकार शराब, अफीम या गाँजा जो भी नशीली वस्तुएँ हैं वह व्यक्ति के वैयक्तिक विघटन में सहायक होती हैं।
(2) पारिवारिक विघटन:-मद्यपान केवल व्यक्ति को ही नहीं विघटित करता है, बल्कि पूरे परिवार को विघटित कर देता है। परिवार में केवल एक व्यक्ति ही शराब पीने वाला होता है और वह धीरे-धीरे शराब के प्याले को ही केवल याद रखता है, बाकी सभी बातों को भूलता जाता है। इसके कारण आए-दिन परिवार में तनाव होता है और आर्थिक तंगी के कारण यह तनाव इतना अधिक उग्र रूप धारण कर लेता है कि पति-पत्नी में से एक या तो दूसरे को तलाक दे देते हैं या फिर दोनों में से एक आत्महत्या कर लेता है। इस प्रकार एक के तलाक दे देने से या आत्महत्या कर लेने से पारिवारिक विघटन हो जाता है। यरोप में अनेक तलाक पतियों के अत्यधिक शराबी होने के कारण दिए जाते हैं। इस प्रकार देखने से पता चलता है कि नशीली वस्तुएँ परिवार के विघटन में सहायक होती हैं।
(3) मद्यपान और सामाजिक विघटन :- वैयक्तिक विघटन के साथ-ही-साथ अत्यधिक शराब पीना, अफीम खाना, कोकीन खाना, ये सभी सामाजिक विघटन के अनेक स्वरूपों से सम्बन्धित हैं। जिस समाज में अधिक संख्या ऐसे व्यक्तियों की है जो शराब पीते हैं या नशीली वस्तुओं का सेवन करते हैं, ऐसे समाज में अनेक परिवार ऐसे मिलेंगे जो कि विघटित हैं। शराब के दुष्परिणामों के ही कारण सब अलग-अलग हो गए हैं। अधिक विघटित परिवार समाज को भी विघटित कर देते हैं क्योंकि समाज का विघटन तभी होगा जब व्यक्ति अपनी जगह रहकर अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझेगा।
(4) मद्यपान और नैतिकता :- एक शराबी से हम नैतिकता की बात कर ही नहीं सकते। शराब व्यक्ति के दिमाग और बुद्धि को इतना कमजोर बना देती है कि व्यक्ति शराब के नशे में सोच ही नहीं सकता कि नैतिकता क्या है और अनैतिकता क्या है। उसका मानसिक सन्तुलन नष्ट हो जाता है। सलीवैन का कहना है कि अनेक व्यक्ति नशे में पागल, आत्महत्या, डकैती और बलात्कार के अनैतिक व्यवहारों को करते हुए पकड़े गए हैं।
(5) मद्यपान और आर्थिक जीवन :- शराबियों का आर्थिक जीवन बहुत ही कष्टमय होता है। असंख्य भारतीय परिवारों में पैसे की वैसे ही बहुत तंगी है, उस पर भी शराब व अफीम का प्रयोग करने जैसी गन्दी आदत पड़ जाए तब तो आर्थिक जीवन में चार चाँद लग जाएँगे। नशीली वस्तुओं की आदत इतनी बुरी होती है कि व्यक्ति बार-बार, रुपया-पैसा यहाँ तक कि आखिर में बीबी के शरीर से गहने उतारकर भी शराब पी लेता है। अपनी कमाई का अधिक-से-अधिक भाग मदिरालय में दे देता है। आखिर में एक-एक पैसे के लिए दूसरों का मुँह देखता है। नशा किसी भी प्रकार का क्यों न हो व्यक्ति के आर्थिक जीवन को खोखला कर देता है, यहाँ तक कि परिवार के सदस्यों को दर-दर की ठोकरें खाने को विवश कर देता है। शराब जैसी नशीली वस्तुओं का व्यक्ति के आर्थिक जीवन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसको कि व्यक्ति भोगते-भोगते दम तोड देता है।
(6) मद्यपान और अपराध :- व्यक्ति मद्यपान कर लेने के बाद अपनी मानसिक स्थिति खो बैठता है। अत्यधिक मद्यपान से व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन नष्ट हो जाता है और वह अपराध कर बैठता है। मानसिक सन्तुलन खोने के बाद व्यक्ति आत्महत्या, डकैती और बलात्कार के अपराधों को करता है। इन कार्यों को करते समय उसमें चेतन उद्देश्य का अभाव होता है। यहाँ तक कि वह अपराध करने के बाद भूल जाता है कि उसने अपराध किया था या नहीं।
(7) मद्यपान और स्वास्थ्य स्तर :- मद्यपान का बहुत ही बुरा प्रभाव स्वास्थ्य-स्तर पर पड़ता है, विशेषकर जब शराब का अधिक मात्रा में सेवन किया जाता है।अत्यधिक शराब पीने से स्वास्थ्य पर उतना ही बुरा प्रभाव पड़ता है जितना कि विषपान करने से होता है। अत्यधिक मद्यपान करने से असाध्य गैसट्राइटिस, लिवर की खराबी, गठिया, चमड़ी फटने का रोग आदि हो जाते हैं। शराब आदमी को बहत ही दर्बल बना देती है और दर्बल व्यक्ति अपनी रक्षा अन्य बीमारियों से भी नहीं कर पाता है, क्योंकि उसमें निरोधात्मक शक्ति बिल्कुल नहीं रहती है। अत्यधिक मद्यपान से केवल शारीरिक ही नहीं अपितु मानसिक बीमारियाँ भी हो जाती हैं। शराबी का मस्तिष्क सन्तुलित नहीं होता है जिसके कारण निर्णय लेने, आत्म-संयम करने तथा दिमाग को किसी काम में केन्द्रित करने की शक्ति नहीं रह जाती है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सामाजिक, पारिवारिक तथा वैयक्तिक सभी दृष्टिकोण से मद्यपान एक गम्भीर समस्या है।
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