प्रारंभिक मध्यकालीन भारत में नगरीय प्रक्रियाओं के विभिन्न आयामों का विश्लेषण:- मुगलकालीन नगरों पर हमें बहुतायत में उपलब्ध यूरोपीय अध्ययन मध्यकालीन नगरों को अधिकांशतः यूरोपीय दृष्टिकोण से देखते हैं
इसके मुख्य राजधानी नगरों को अक्सर ‘शिविर शहरों की संज्ञा दी जाती है। मैक्स वेबर पश्चिम और पूर्व के नगरों के बीच अंतर करता है। वेबर द्वारा पूर्वी नगरों को शाही महल के विस्तार के रूप में देखा गया।
संरक्षक. संरक्षित संबंधों की वेबर की अवधारणा को अक्सर साम्राज्य का अवलोकन ‘पितृसत्तात्मक नौकरशाही के रूप में करने के लिए परिणित किया जाता है और इसके राजधानी नगरों ने संरक्षक (सम्राट).संरक्षित (प्रजा) संबंधों पर आधारित ‘पितृसत्तात्मक नौकरशाही नगरों को सन्निहित किया है।
पैरी एंडरसन के अनुसार भी एशियाई नगर राजकुमारों की ‘इच्छा’ और ‘शक्तियों के अधीन थे | मध्यकालीन नगरों की जीवंतता’ की अनदेखी करते हुए अक्सर इन अध्ययनों ने मध्ययुगीन समाज को ‘एक गतिहीन समाज’ के रूप में पेश किया है। मुगल साम्राज्य में व्याप्त अमन और शांति ने शहरीकरण में त्वरित वृद्धि की।
मौद्रीकरण के उच्च स्तर, मुगल सत्ता के केंद्रीकरण, सड़क और संचार नेटवर्क को मजबूत करने की प्रक्रिया जिसे शेरशाह सूरी ने प्रारंभ किया और वह सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के दौरान और आगे बढ़ी जिसके कारण यातायात और भी आसान और आरामदायक हो गया जिससे व्यापार और वाणिज्य को काफी बढ़ावा मिला और नगरीकरण की प्रक्रिया को भी काफी प्रोत्साहन मिला।
टैवर्नियर की टिप्पणी कि ‘भारत में एक गांव वास्तव में बहुत छोटा माना जाता है यदि उस गांव में रुपए.पैसों का लेन.देन करने वाला कोई सर्राफ न हो जो पैसे में प्रेषण करने और विनिमय पत्र जारी करने के लिए एक बैंकर की तरह कार्य करता था’, स्पष्ट करता है कि मुगलकालीन भारत में मौद्रीकरण उच्च स्तर का था।
सत्रहवीं शताब्दी के तृतीयांश तक लगभग समूचा दक्कन मुगल शासन के प्रभाव में आ गया। बीदर, बीजापुर, गोलकुंडा, बुरहानपुर जैसे नगर प्रमुख नगरीय केंद्रों के रूप में उभरे जहां मुगलों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा।
हालांकि, विशिष्ट मुगल प्रभाव के बावजूद दक्कन के शहरों ने अपनी देशज संस्कृति को नहीं छोड़ा और उसका समन्वय किया जिसकी झलक इन नगरों की बनावट और नगरीय संस्कृति में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। ऐसा प्रतीत होता है कि नगर व्यापक रूप से दो प्रभागों – अशराफ और अजलाफ में बंटा हुआ था।
इसके बावजूद, मध्यम वर्ग की एक मजबूत उपस्थिति थी। नगरों में कट्टर सांस्कृतिक लोकाचार के साथ धार्मिक और जातिगत विभाजन के बावजूद, नगर परासांस्कृतिक लोकाचार के साथ उभरे और विभिन्न जातिगत और धार्मिक परंपराओं को आत्मसात किया।
ऐसा प्रतीत होता है कि उत्सव और समारोह एक सामान्य विरासत थी। प्रतिष्ठा अत्यधिक महत्वपूर्ण थी जो अक्सर संघर्षों का कारण होती थी, लेकिन ‘सांप्रदायिक संघर्ष कभी भी सांस्कृतिक लोकाचार का हिस्सा नहीं थे; यह एक ऐसा लक्षण था जो औपनिवेशिक विरासत के रूप में प्रमुखता से उभरा।
इसका उद्देश्य विशिष्ट नगरों पर बुनियादी तौर पर ध्यान केंद्रित करना है, मुख्यतः यह देखने के लिए कि इन विशिष्ट केंद्रों पर मुगल नगरों की व्यापक विशेषताएं कहां तक स्पष्ट थीं। इससे यह आसानी से ज्ञात होगा कि इस तरह के लक्षण व्यापक थे और अक्सर परस्पर व्याप्त थे।
शक्ति और सत्ता के केंद्रों के रूप में नगरः- कैथरीन एशर के अनुसार शाही महलों के निर्माण स्थल का चयन कुछ हद तक नियंत्रण के रूपकों को चह्नित करता है।
बाबर द्वारा अपनी जीत के स्थल पर आगरा में अपने उद्यान.निवास का चयन हिंदुस्तान को अपने कब्जे में करने और अपने अनुसार ढालने की उसकी अपनी क्षमता का प्रतीकस्वरूप था।
इसी प्रकार, हुमायूं द्वारा पांडवों की पौराणिक राजधानी इंद्रप्रस्थ की जगह पर दीनपनाह का निर्माण करने का निर्णय एक प्राचीन पूर्व.इस्लामी अतीत से संबंध स्थापित करना था।
अकबर द्वारा इलाहाबाद में किले का निर्माण पूर्व परंपराओं पर मुगलों के अधिकार का स्पष्ट प्रतीक था, और साथ ही यह अतीत से जुड़ने का एक जरिया भी था।
ऐबा कॉक के अनुसार, शाहजहां के काल में शाहजहां के दिल्ली के राजप्रासाद के जन सभागार में झरोखों के आलंब दंड और बंगला छत, सुलेमानी कल्पना का जागरूक प्रक्षेपण है। प्राच्यवादी यह तर्क देते हैं कि एशियाई इस्लामी शहरों का अस्तित्व राजा की शक्ति और सत्ता पर आधिपत्य था।
पेरी एंडरसन के अनुसार, ‘इस्लामी शहरों का भविष्य आम तौर पर राज्य के द्वारा निर्धारित किया जाता था जिसमें उनकी समृद्धि की झलक हो (चेनोय, 2015: 4 में उद्धृत)।
मुगलों द्वारा निर्मित राजधानी नगरों में उनकी भव्यता, शक्ति और सत्ता की नाटकीय अभिव्यक्ति परिलक्षित होती थी। चांदनी चौक, इस्फहान के चहारबाग के सदृश्य और साथ ही शाहजहांबाद की जामा मस्जिद को ‘सफाविद मस्जिद.ए शाह से श्रेष्ठ बनाने की कोशिश की गई।
राजधानी शहर के निर्माण में राजसी जुलूसों का वैभव’, ‘कौतुकतापूर्ण प्रदर्शन’ और ‘सार्वजनिक ठाट.बाट’ के प्रदर्शन की योजना का विचार निहित था। राजप्रासाद’ एक मंच’ और रंगमहल’ की भूमिका निभाता था
जिसके चारों ओर राजनीतिक, सांस्कृतिक, वाणिज्यिक और धार्मिक वैभव, उत्सव और संस्थाओं की ‘आभा’ प्रवाहित होती थी। ‘यह नाटक के भीतर एक नाटक की तरह था जिसमें दरबारियों के बीच एक झूठा शिष्टाचार का संबंध था जो कि सच्चा प्रतीत होता था।
मुगल शहरों ने ‘सम्राट की दिव्यता का प्रदर्शन किया और उसका जश्न मनाया। शाही उत्सव, धार्मिक समारोह, जन्म और मृत्यु के समारोह, सगाई समारोह इत्यादि शक्ति तथा वैभव के आडंबरपूर्ण प्रदर्शन’ प्रतीत होते थे जिसमें प्रतीकात्मक रूप से पूरे नगर को विनियोजित किया जाता था।
प्रांतीय गवर्नरों की उपसाम्राज्यीय संरचनाएं, प्रांतीय और स्थानीय स्तरों पर समान रूप से शक्ति और सत्ता के आडंबरपूर्ण प्रदर्शन को प्रदर्शित करती थी।
पितृसत्तात्मक.नौकरशाही नगरः- ब्लेक इस अवधारणा से प्रारंभ करते हैं कि सार्वभौम एशियाई नगरों और पश्चिम के नगरों के चरित्रों में अंतर था।
ब्लेक ने मुगल साम्राज्य को ‘पितृसत्तात्मक, नौकरशाही’ की तरह और राजसी शहर को सम्राट के साथ ‘निजी संबंधों से बंधे शाही महल के विस्तार के रूप में प्रदर्शित किया है, जिनका संबंध एक पिता और पुत्र की तरह का था।
यहां तक कि सभी प्रकार के उत्पादन और विनिमय संबंधों, उपभोग के तरीकों और नगर में सामाजिक संपर्कों में भी शाही परिवार और कुलीन जनों की जीवन शैली की झलक दिखती थी; संस्कृति के क्षेत्र में भी दरबारी संस्कृति का ही प्रभुत्व था।
राजा और कुलीन जनों का शहरी परिदृश्य पर काफी प्रभाव था। पश्चिमी शहरों के विपरीत यहाँ स्वयंसेवी नगरपालिका का कोई अस्तित्व नहीं था और न ही एक समूह के रूप में नगर में रहने वालों के बीच वर्ग चेतना ही थी।
ब्लेक का तर्क है कि, एक सार्वभौम नगर के रूप में, शाहजहानाबाद को मुगल साम्राज्य के पितृसत्तात्मक नौकरशाही चरित्र के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
नगर विशिष्ट रूप से राज्य के साथ संबंधित था, और यह राज्य का व्यक्तिगत, कुटुम्ब. उन्मुख चरित्र था जो शहरी विन्यास तथा शैली को निर्धारित करता थानगर में शाही भवनों का बोलबाला था
शाहजहानाबाद, राज्य के पितृसत्तात्मक नौकरशाही परिसर का शहरी निचोड़ था और शहरों के आवासों में राजकीय भवनों की झलक दिखती थी।
हालांकि कियो इजुका, ब्लेक की थीसिस पर सीधे तौर पर चर्चा नहीं करते हैं, लेकिन शाहजहानाबाद के शहरीकरण की चर्चा करते हुए इस बात पर जोर अवश्य डालते हैं कि सम्राट की बुनियादी जरूरतों और विचारों के मुतबिक ही शहरी रूपों तथा स्वरूपों का विकास हुआ जिसमें सामाजिक योजनाओं को खास तवज्जो नहीं दी गई।
इस प्रकार नगर, सम्राट और उनके कुलीन जनों के क्रियाकलापों से ज्यादा प्रभवित रहा। परंतु, शहर के बारे में लिखते हुए अबुल फजल शहरों के राजशाही प्रभाव को पूरी तरह से नजरअंदाज करता है।
इसके बजाय, उसका तर्क है कि, ‘एक शहर को ऐसे स्थान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जहां विभिन्न प्रकार के शिल्पकार निवास करते हैं।
अगर शाहजहानाबाद नगर की बनावट को गौर से देखा जाए, तो हम पाएंगे कि बाजारों की चहल.पहल की मौजूदगी के अतिरिक्त पेशेवरों, व्यापारियों और कलाकारों के लिए अलग अलग परिक्षेत्रों का निर्माण किया गया था।
चेनाय ब्लेक की आलोचना करते हुए तर्क देती हैं कि, ‘सिर्फ पितृसत्तात्मक नौकरशाही साम्राज्य की सोच ही शहर के निर्माण में परिलक्षित नहीं होती। शाहजहानाबाद शहर, महल प्रासाद, कुछ हवलियों, झोपड़ियों के समूहों, मस्जिदों और कुछ बड़े बाजार तक ही सीमित नहीं था।
बल्कि मध्यम आय वर्ग वाले लोग भी यहाँ अधिक संख्या में रहा करते थे जैसे पेशेवर, समृद्ध और छोटे व्यापारी और निम्न श्रेणी के मनसबदार, आदि
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