चोल राज्य की प्रमुख विशेषताओं का समालोचनात्मक विश्लेषण:-
आय-व्यय :-
अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी। अतः इससे प्राप्त राजस्व ही राज्य का प्रमुख आय स्रोत था। सरकार उपज का छठा भाग लेती थी। राजस्व अन्न या सिक्कों के रूप में दिया जा सकता था। व्यापार के लिए बाजारों में सिक्कों एवं कौड़ियों का प्रचलन था। राज्य की आय राज परिवार, राजकर्मचारियों, सड़कों-मंदिरों एवं जनकल्याण हेतु खर्च की जाती थी।
सैनिक व्यवस्था :- इस काल में जल और स्थल सेनाएं अति विशाल एवं सुसंगठित थीं। देश के अनेक भागों में सैनिक छावनियां बनी हुई थीं। चोलों ने खेतिहरों और पशुपालकों को प्रशिक्षण देकर विशाल सेना तैयार कर ली थी। ब्राह्मण सेनापतियों को ‘ब्रह्माधिराज’ कहा जाता था। उनके अतिरिक्त सेना के अन्य उच्च अधिकारी और छोटी-छोटी इकाइयों के अध्यक्ष थे। सैन्य कला में चोल बड़े पटु एवं रण-कुशल थे।
न्याय व्यवस्था:- न्याय व्यवस्था संगठित थी। मुकदमे स्थानीय संस्थाओं में पेश होते थे। जूरी की भी प्रथा थी। अंतिम अपील राजा के पास थी। कानून नरम था, चोरों, व्याभिचारियों इत्यादि को गधे पर बिठाकर घुमाया जाता था। संयोगवश हत्या हो जाने पर 16 गायों का जुर्माना किया जाता था। जिस व्यक्ति की हत्या होती थी, उसकी आत्मा की शांति के लिए राज्य मंदिर में दीपक जलवाता था।
सामाजिक व्यवस्था:- चोल काल में समाज ब्राह्मणीय पद्धति के अनुसार चार वर्गों में बंटा हुआ था। व्यावसायिक दृष्टि से समाज में दो और भी इकाइयां ‘वंलगाई’ और ‘इंडगाई’ विद्यमान थीं। सजातीय विवाह प्रचलित था। लेकिन अंतर्जातीय विवाहों के भी अनेक उदाहरण मिलते हैं। जातीयता के आधार पर मोहल्ले बनने लगे थे।
समाज में स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उन पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं था। अभिलेखों के अनुसार अभिजात्य वर्ग की स्त्रियां संपत्ति का अधिकार रखती थीं। तमिल समाज में सती प्रथा प्रचलित थी। समाज में देवदासियां भी थीं। ये मंदिरों में ही रहती थीं तथा नृत्य आदि में निपुण होती थीं। विशेष अवसरों पर मंदिरों में इनके नृत्य का आयोजन होता था। कुछ लेखक यह मानते हैं कि ये देवदासियां समाज में अनाचार फैलाती थीं, लेकिन कुछ अभिलेखों के अनुसार तमिल समाज में इनका स्तर गिरा हुआ नहीं था। कुछ देवदासियां विवाह कर गृहस्थ जीवन भी व्यतीत करती थीं। दास प्रथा भी समाज में प्रचलित थी। वास्तव में कृषि मजदूर दासों के समान थे। दासों की विभिन्न कोटियां होती थीं।
आर्थिक जीवन:- चोल काल में कृषि प्रमुख व्यवसाय था। अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती थी। कृषक भूमि का मालिक होता था। भूमि के मालिकाना हक के अनुसार समाज में कृषकों का सम्मान होता था। कृषि की उन्नति के लिए राज्य की ओर से लगातार प्रयास होते रहते थे। करिकाल चोल के समय कावेरी नदी पर बांध बनाया गया था। सिंचाई के लिए कुएं, तालाब और जलाशय भी खुदवाए गए। उत्तरमेरूर में बैरूमेघतड़ाग का निर्माण करवाया गया। परांतक ने वीरलोचन नामक तालाब खुदवाया था। चोल नरेशों ने दुर्भिक्ष को रोकने का भी भरसक प्रयत्न किया। पशुपालन का व्यवसाय करने वाले ‘मंचादि’ कहलाते थे। स्वर्णकार, मूर्तिकार, धातुकार आदि अन्य व्यवसायी भी नाना प्रकार की वस्तुओं का निर्माण करते थे। कांची वस्त्र उद्योग उन्नतशील था। कुमारी अंतरीप मरकनाम (दक्षिण अर्काट) तथा समुद्र तटवर्ती स्थानों में नमक तैयार किया जाता था |
धर्म:- चोल शासक शैव थे। उनके समय में शैव धर्म की दक्षिण में बहुत उन्नति हुई। वैष्णव धर्म के प्रति भी वे श्रद्धा रखते थे। वे उदार थे। बौद्ध और जैन धर्म के प्रति वे दयालु थे। इस काल में अनेक मंदिरों का निर्माण हुआ। मंदिरों में दान दिया जाता था।
चोलकालीन साहित्य:- चोल काल में तमिल भाषा-साहित्य का विकास हुआ। तमिल साहित्य के प्रख्यात विद्धान कंबन, पुगलेनिद तथा ओट्टकुट्टन त्रि-रत्न है। तमिल साहित्य में-कंबन ने ‘रामायण’, पुगलेनिद ने ‘लनबेंबा’, ज्ञानगोंदुर ने ‘कल्लादानर’ की रचना की। शेक्किलार की ‘परिआपुराणम्’ भी तमिल साहित्य की एक अमूल्य निधि है। जयागोंदान कुलोत्तुंग प्रथम के राजकवि थे। इनकी रचना ‘कलिंगन्तुपणी’ थी। सेक्कीललार कुलोत्तुंग प्रथम के दरबार में रहता था। वेंकट माधव ने परांतक प्रथम के संरक्षण में ‘ऋग्यदीपिका’ की रचना की। चोल शासक राजेंद्र प्रथम को भी महान विद्वान बताया गया है। इस काल में नंबियनदार नांबी नामक महान लेखक भी थे, जिन्हें तमिल व्यास के नाम से जाना जाता है।
चोलकालीन मूर्तिकला एवं चित्रकला :- मंदिरों के निर्माण ने मूर्तिकला एवं चित्रकला के विकास को भी प्रभावित किया। यहाँ मूर्तियाँ पत्थर तथा धातु से बनती थी। इसमें मुख्यतः शिव और विष्णु की मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। वस्तुतः चोल शासक काल में बनी तंजौर स्थित नटराज शिव की कांस्य मूर्ति इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें नटराज शिव का तांडव रूप प्रदर्शित होता है, जो शिव के हर्षित या आनंदित नृत्य का प्रतीक है। उनके पैर के नीचे एक असुर का होना यह दर्शाता है कि वह अज्ञान का नाश कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ चतुर्भुजाओं में एक में डमरू का धारण करना उनके स्वर या ध्वनि सृजन को संकेतिक करता है। इस तरह नटराज की प्रतिमा शिव को एक शिक्षक, एक सृजनकर्ता के रूप में स्थापित करती है।
चोल काल में चित्रकला का विकास भी वास्तुकला के साथ हुआ। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र मिलते हैं। जैसे-वृहदेश्वर मंदिर में शिव का चित्रण दीवारों पर मिलता है, तो साथ ही फूल-पत्ती तथा सरोवर का भी अंकन मिलता है।
चोल स्थापत्य कला:- स्थापत्य कला की दृष्टि चोलों ने मंदिर निर्माण की ‘द्रविड़ शैली’ को अपनाते हुए उसे शीर्ष रूप प्रदान किया। इस कारण ‘फर्ग्युसन’ ने चोल कला के संदर्भ में कहा कि “चोल कलाकार राक्षस की तरह सोचते हैं
और जौहरी के समान तराशते हैं।” चोल मंदिरों में गर्भगृह आयताकार, पिरामिडनुमा शिखर (विमान) तथा विशाल गोपुरम् और शीर्ष पर स्तूपिका मिलती है। चोल शासकों ने ईंटों के स्थान पर पत्थरों एवं शिलाओं का प्रयोग कर मंदिरों का निर्माण करवाया। इस समय के मंदिरों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिर है- तंजौर में राजराज प्रथम द्वारा बनवाया गया राजराजेश्वर अथवा वृहदेश्वर मंदिर तथा राजेन्द्र प्रथम द्वारा बनवाया गया गंगैकोंडचोलपुरम का शिव मंदिर था। तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर अत्यंत विशाल चतुष्कोणीय प्रांगण में तथा गेनाइट पत्थरों से बना है। इसका शीर्ष 13 मंजिल की संरचना के समान है। मंदिर चारों ओर से दीवार या परकोटे से घिरा है, जिसमें प्रवेश हेतु विशाल गोपुरम् बना हुआ है, गोपुरम् की विशालता तथा अलंकरण चोल कालीन आर्थिक समृद्धि तथा राजनीतिक विस्तार को दर्शाती है।
Industry refers to economic activities, which are connected with conversion of resources into useful goods. Industry is concerned with the…
Business refers to any occupation in which people regularly engage in an activity with an objective of earning profit. The…
According to Prof. Samuelson, every economy has three basic problems of resource allocation: (a) What to produce and how much…
The introduction of High Yielding Varieties (HYV) of seeds and the increased use of fertilisers, pesticides and irrigation facilities are…
Yes, we agree with the above statement that the traditional handicrafts industries were ruined under the British rule. The following…
India was under British rule for almost two centuries before attaining Independence in 1947. The main focus of the economic…