ई-मेल (Electronic mail )
ई – मेल के माध्यम से कोई भी उपयोगकर्ता किसी भी अन्य व्यक्ति को इलेक्ट्रॉनिक रूप में संदेश भेज सकता है तथा प्राप्त भी कर सकता है। ई-मेल को भेजने के लिए किसी भी उपयोगकर्ता का ई-मेल एड्रेस होना बहुत आवश्यक है, जो विश्वभर में उस ई-मेल सर्विस पर अद्वितीय होता है। ई-मेल में SMTP (Simple Mail Transfer Protocol) का भी इस्तेमाल किया जाता है। ई-मेल में टेक्स्ट फॉर्मेटिंग, Ca(Carbon Copy), Bee ( Blind Carbon Copy) के विकल्प भी उपलब्ध होते हैं। इसके अन्तर्गत वेब सर्वर पर कुछ मेमोरी स्थान प्रदान कर दिया जाता है, जिसमें सभी प्रकार के मेल संग्रहीत होते हैं। ई-मेल सेवा का उपयोग उपयोगकर्ता विश्वभर में कहीं से भी कभी कर सकता है। उपयोगकर्ता ई-मेल वेबसाइट पर उपयोगकर्ता नेम (जोकि सामान्यतः उसका ई मेल एड्रेस होता है) वह पासवर्ड की सहायता से लॉग इन कर सकता है और अपनी प्रोफाइल को मैनेज कर सकता है। ई-मेल एड्रेस छोटे अक्षरों के रूप में होता है। ई-मेल एड्रेस में दो भाग होते हैं जो एक प्रतीक @ द्वारा अलग होते हैं। पहला भाग यूजरनेम तथा दूसरा भाग डोमेन नेम होता है।
ई-मेल की संरचना (Structure of E-mail):-
किसी भी ई-मेल की संरचना साधारण पत्र के समान होती है। पत्र के समान ही इसमें प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता के पते, पत्र भेजने की दिनांक, वास्तविक संदेश आदि को शामिल किया जाता है। ई-मेल की संरचना को निम्न बिंदुओं के अंतर्गत समझ जा सकता है-
1. ई-मेल पता (E-Mail Address ) – किसी व्यक्ति को ई-मेल भेजने के लिए उसका ई-मेल एड्रैस ज्ञात होना आवश्यक है। डाक सेवा में तो अस्पष्ट पते वाले पत्रों को भी प्रेषित कर दिया जाता है, पर इण्टरनेट में पूर्ण शुद्ध तथा स्पष्ट ई-मेल एड्रैस होना अति आवश्यक है। एक पूरा ई-मेल एड्रैस दो भागों से मिलकर बनता है – यूजर नेम और हॉस्ट नेम। पहला भाग यूजर के नाम को बताता है जिसे आप मेल भेजना चाहते हैं। दूसरा भाग सर्वर के डोमेन नेम या हॉस्ट को बताता है जिस पर यूजर का एकाउण्ट बना है। ये दोनों भाग ‘@’ (at) चि से विभाजित किए जाते हैं। ‘@’ चि एक विभाजक है जो यूजर नेम को शेष ई-मेल एड्रैस से पृथक् करता है। शेष भाग में वह सूचना होती है जो यह बताती है कि यूजर किस मूल सर्वर से जुड़ा है। ई-मेल का फॉर्मेट (Syntax) इस प्रकार होता है – username@host.domain
2. ई-मल फील्ड्स (E-Mail Fields) – ई-मेल का आरंभ फील्ड्स के साथ होता है। फील्ड्स टेक्स्ट की कुछ लाइनें होती हैं जो आपको संदेश के बारे में कुछ सूचना देती हैं। हैडर्स संदेश के लिए एक लिफाफे की भाँति होता है जिसमें प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता के पते होते हैं। यदि आप इस बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं कि आपके पास ई-मेल कहाँ से और कब आया है तो हैडर्स को देखना उपयोगी हो सकता है। प्रत्येक फील्ड में फील्ड का प्रकार, एक कॉलन (:) तथा फील्ड का कन्टैन्ट होता है। उदाहरण के लिए, वह हैडर जिसमें हमें यह पता लगता है कि वह संदेश किसके लिए भेजा गया है, To: से लिख जाता है। To : के आगे एक या अधिक e-mail address हो सकते हैं। जिन हैडर्स के आगे ‘X’ लिखा होता है, वे हमेशा ऐच्छिक होते हैं। सभी ई-मेल संदेशों में निम्नलिखित फील्ड्स का होना आवश्यक है-
To – प्राप्तकर्ता का एड्रैस ।
From-भेजने वाला का एड्रैस ।
Subject – इसे खाली छोड़ा जा सकता है, परन्तु अपने ई-मेल का विषय बताना एक अच्छी आदत है। Cc-यह सुविधा उन ई-मेल एड्रैसेस के लिए होती है जिन्हें आप मुख्य संदेश की कॉपी भेजना चाहते हैं। में एक से अधिक ई-मेल एड्रैसेस को () द्वारा विभाजित किया जाता है। इसे “Carbon Copy” भी Cc : कहते हैं।
Bcc— यह “Cc :” के समान ही है, परन्तु इस लिस्ट में डाले गए एड्रैस को कोई दूसरा यूजर नहीं देख सकता है। इसे “Blind Carbon Copy” भी कहते हैं।
Lines-इसमें प्रेषक के वास्तविक संदेश में लाइनों की संख्या होती है ।
Date-इसमें प्रेषक कम्प्यूटर द्वारा मैसेज भेजने की दिनांक तथा समय होता है।
MIME-Version- यदि संदेश के साथ कोई अटैचमेंट (Attachment) भेजा गया है तो उसे MIME प्रोटोकॉल के इस संस्करण की सहायता से आगे बढ़ाया जाता है।
आप अपने पास आए मैसेज का उत्तर (Reply) दे सकते हैं या आप चाहें तो उस मैसेज को अन्य लोगों तक फॉरवर्ड कर सकते हैं। जब आप किसी मैसेज का उत्तर देते हैं तो भेजने वाले का एड्रैस अपने आप ही To : में चला जाता है। इसके साथ ही वास्तविक संदेश का विषय पुन: Subject : में आ जाता है, लेकिन उससे पहले Re : यह दर्शाता है कि उक्त मेल आपके पास आए किसी मेल का प्रत्युत्तर है। वैसे यदि यूजर चाहे तो इसे परिवर्तित भी कर सकता है। यदि आप अपने पास आए मेल को ज्यों का त्यों अन्य लोगों को भेजना चाहें तो यह सुविधा आपके लिए है। जब आप अपने मैसेज को फॉरवर्ड करते हैं तो भी वास्तविक मैसेज का विषय पुनः उपयोग में आ जाता है। उससे पहले उसमें Fw: या Fwd: आवश्यक रूप से जुड़ जाते हैं। Fw: या Fwd: यह दर्शाता है कि उक्त मेल को आपके पास Forward किया जाता है। Reply करते समय जहाँ To : में पाने वाले यूजर का पता स्वत: ही आ जाता है, वहीं दूसरी ओर Forward करते समय To : में आपको Recipi- ents के पते स्वयं डालने होते हैं।
3. मैसेज बॉडी (Message Body ) – ई – मेल की बॉडी एक महत्वपूर्ण भाग है। इसी में प्रेषक द्वारा प्राप्तकर्ता को भेजा जाने वाला वास्तविक संदेश होता है। किसी भी ई-मेल में यही भाग प्राप्तकर्ता के लिए पठनीय एवं चिंतनीय होता है। ई-मेल संदेश अधिकांशतः प्रेषक द्वारा टाइप किए गए संदेश से मिलकर ही बना होता है। कभी-कभी बॉडी में कुछ जानकारियाँ भी हो सकती हैं, जैसे यदि ई-मेल को आगे बढ़ाया (For- ward) गया है तो बॉडी के शुरू में Forwarded Mail का हैडर होगा । इसी तरह ई – मेल का प्रत्युत्तर (Reply) दिया जा रहा है तो बॉडी में वह संदेश भी आ जाएगा जिसका प्रत्युत्तर आप दे रहे हैं । यद्यपि चाहें तो इस संदेश को डिलीट भी कर सकते हैं। जिस संदेश का आप प्रत्युत्तर दे रहे हैं बॉडी में उस संदेश के प्रत्येक पैराग्राफ के शुरू में “>” (greater than) का चि अपने आप जा जाता है। यही चि बॉडी में आपके द्वारा लिखे टेक्स्ट तथा प्रत्युत्तर दिए जाने वाले टेक्स्ट अलग-अलग करता है। कभी-कभी बॉडी में ही अटैचमेंट भी डाला जा सकता है। MIME के उद्भव के साथ ही एक ई-मेल संदेश की बॉडी एनकोडेड पिक्चर तथा ऑडियो भी रख सकती है।
4. फाइल जोड़ना (File Attachment) – ई-मेल संदेश के साथ फाइल को अटैच करके किसी दूसरे व्यक्ति को भेजना सबसे सरल तरीका है। ई-मेल के द्वारा फाइल्स को भेजना अन्य तरीकों की तुलना में अधिक तीव्र तथा सस्ता है। इसके द्वारा आप उन बड़ी फाइल्स को भी भेज सकते हैं जिनका एक फ्लॉपी में आना संभव नहीं होता। ई-मेल संदेश के साथ फाइलों को जोड़कर आप डॉक्यूमेंट को चेक करवाने के लिए, स्पीडकीट में डाटा एण्ट्री करवाने के लिए या किसी प्रजेन्टेशन के बारे में राय लेने के लिए भेज सकते हैं। इनके अतिरिक्त आप तस्वीरें, ध्वनि, चलचित्र या अन्य कुछ भी भेज सकते हैं जिसे एक फाइल के रूप में स्टोर किया जा सकता है।
शुरू में ई-मेल सिस्टम को केवल टेक्स्ट को भेजने के लिए बनाया गया था जिससे वह ई-मेल प्रोग्राम किसी भी बायनरी (नॉन-टेक्स्ट) फाइल जैसे – ऑडियो, ग्राफिक्स तथा प्रोग्राम फाइल के साथ कार्य नहीं कर पाता था। अटैचमेंट एक ऐसी फाइल को कहते हैं जिसे टेक्स्ट के रूप में एनकोड कर दिया गया हो ताकि वह ई-मेल संदेश में सम्मिलित की जा सके। ई-मेल अटैचमेंट्स को एनकोड करने के तीन तरीके हैं-
(i) MIME – यह कार्य करने का एक सर्वसामान्य तरीका है।
(ii) Unencoding – यह पुराना मानक है जिसे अब मात्र कुछ पुराने ई-मेल प्रोग्राम काम में लाते हैं।
(iii) Bin Hex – यह कुछ Mac ई-मेल प्रोग्राम द्वारा काम में लाया जाता है।
आपको सामान्य रूप से यह जानने की आवश्यकता नहीं होती है कि आप किस प्रकार की एनकोडिंग का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि आपका ई-मेल प्रोग्राम संदेशों को एनकोड और डिकोड करने का कार्य स्वयं करता है। ई-मेल के द्वारा किसी फाइल को भेजने के लिए आप वह संदेश तैयार करें जिसके साथ आपको फाइल भेजनी है। सामान्य रूप से संदेश तैयार करें तथा सब्जैक्ट टाइप करें। आप संदेश की बॉडी में टेक्स्ट को टाइप भी कर सकते हैं। इसके बाद मेन्यू बार में से फाइल करने के लिए अटैच कमाण्ड का चयन करके अथवा टूलबार बटन में अटैच पर क्लिक करके फाइल को अटैच किया जा सकता है। अटैचमेंट प्राप्त करने हेतु प्राप्तकर्ता के पास उस अटैचमेंट को प्राप्त करने के लिए उपयुक्त ई-मेल प्रोग्राम होना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्राप्तकर्ता के पास फाइल को खोलने और देखने के लिए उपयुक्त एप्लिकेशन होनी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो फाइल भेजने से पहले ही यह जानकारी प्राप्त कर लें। जब आप फाइल भेजें तो संदेश की बॉडी में अटैच की गई फाइल के बारे में जानकारी अवश्य देनी चाहिए।
ई-मेल के लाभ या विशेषताएँ:-
कम्प्यूटर में आजकल कार्यालय और घर से संबंधित सभी कार्य करने की व्यवस्था उपलब्ध है। इसलिए एक ही स्थान से सभी प्रकार की सूचनाओं का आदान-प्रदान कम्प्यूटर के द्वारा ही करने का प्रयास किया जाता है। इस कार्य में ई-मेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ई-मेल के विभिन्न उपयोगों के फलस्वरूप यह सेवा अधिक लोकप्रिय हो गई है।ई-मेल के निम्नलिखित लाभ या विशेषताएँ हैं-
(1) यह सुविधा किसी वेबसाइट पर उपलब्ध होती है और कम्प्यूटर की सामान्य जानकारी वाले प्रयोगकर्ता के अनुरूप इसमें विकल्प दिए जाते हैं। संदेश टाइप करने के लिए एक मैसेज विण्डो होती है और प्राप्तकर्ता के एड्रैस को टाइप करने के लिए आरंभिक भाग में फील्ड होते हैं। इसके अतिरिक्त इसी स्क्रीन पर आए हुए ई-मेल देखने और पढ़ने की सुविधा माउस क्लिक से ही संपन्न हो जाती है।
(2) सरल क्रियाओं के कारण ई-मेल करने में समय की काफी बचत होती है। यह इलेक्ट्रॉनिक विधि से संदेश भेजने की विधि है, इसलिए तीव्रता से कार्य करती है। ई-मेल के द्वारा विश्व के किसी भी स्थान से संदेश कुछ ही सेकेण्ड्स में पहुँच जाता है। कई सॉफ्टवेयर्स के द्वारा आपको यह भी पता चल जाता है कि ई-मेल पाने वाले ने आपका ई-मेल पढ़ा है या नहीं, और यदि पढ़ लिया है तो कब पढ़ा है। इसमें ई-मेल भेजने वाले और पाने वाले के बीच की दूरी का समय पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।
(3) ई-मेल कोरियर अथवा डाक सेवा से अधिक सुविधाजनक है। यदि आपको कोई मेल एक से अधिक व्यक्तियों तक पहुँचानी है तो आपको उस मेल की फोटोकॉपी करवाने या कम्प्यूटर पर बार-बार टाइप करने की आवश्यकता नहीं है। आप किसी भी मेल को एक ही बार में एक साथ कई प्राप्तकर्ताओं तक पहुँचा सकते हैं।
(4) भेजी हुई मेल्स (Mails) को आप मेलबॉक्स में सेव करके भी रख सकते हैं। इससे आप भविष्य में यह ज्ञात कर सकते हैं कि आपने किस व्यक्ति को क्या मेल किया था। इसके अतिरिक्त आप उस ई-मेल की दिनांक और समय भी देख सकते हैं।
(5) यदि आप कोरियर अथवा डाक सेवा से कोई पत्र भेजते हैं तो आपको उसके लिए डाक टिकट की आवश्यकता होती है। यह खर्चा दूरी के आधार पर बढ़ता जाता है। ई-मेल में व्यय का दूरी से कोई संबंध नहीं होता है। इसके लिए आपको उतना ही खर्च करना पड़ता है जितना इण्टरनेट पर आपको समय लगता है।
(6) टेलीफोन सेवा की भाँति ई-मेल करते समय दो व्यक्तियों को आपस में ऑन-लाइन (कम्प्यूटर से कनैक्टेड ) रहने की आवश्यकता नहीं होती है।
(7) कोरियर अथवा डाक सेवा में आपके पत्र केवल आपके घर के पते पर ही आते हैं। यदि आप उस समय घर के बाहर गए हुए हैं, जब आपका पत्र आया है तो आप उसे वहाँ से लौटकर पढ़ पाएँगे। चाहे वह पत्र कितना ही अधिक आवश्यक क्यों न हो, लेकिन ई-मेल के साथ यह सुविधा होती है कि आप कहीं से भी उस मेल को तुरंत एक्सैस कर सकते हैं। आजकल सायबर कैफे सभी जगह आसानी से मिल जाते हैं, जहाँ ई-मेल खोलकर देखा जा सकता है। आज तो यह सुविधा एन्ड्राइड मोबाइल पर भी उपलब्ध है।
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