सरकारिया आयोग को समझाइए

भारतीय संविधान ने संघात्मक शासन प्रणाली की व्यवस्था की है, जो राज्यों की अपेक्षा केन्द्र की स्थिति को अत्यधिक शक्तिशाली बनाती है। जब से संविधान लागू हुआ है केन्द्र सरकार अत्यधिक शक्तिशाली और राज्य सरकारें निर्बल होती रहीं। काफी समय से कई राजनीतिक दलों की ओर से केन्द्र-राज्य सम्बन्धों के प्रबन्ध पर पूर्णतया पुनः विचार करने की माँग की जा रही थी। इन माँगों को ध्यान में रखकर मार्च, 1983 में स्वर्गीय प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने केन्द्र-राज्य सम्बन्धों पर पुनः विचार करने के लिए एक आयोग नियुक्त करने की घोषणा की थी ।

प्रधानमन्त्री की इस घोषणानुसार एक सदस्यीय आयोग अप्रैल, 1983 में स्थापित हुआ था। इस आयोग के एकमात्र सदस्य सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश सरदार रणजीत सिंह सरकारिया थे। कुछ समय के पश्चात् आयोग में दो अन्य सदस्य श्री बी० शिवरमन और श्री एस०आर० सेन को शामिल किया गया था। इन सदस्यों के अतिरिक्त इस आयोग में एक सचिव ( Secretary), एक संयुक्त सचिव (Joint Secretary) और चार निदेशक थे । इस आयोग के अध्यक्ष सरदार रणजीत सिंह सरकारिया थे। इसी कारण इस आयोग को सरकारिया आयोग कहा जाता है।

केन्द्र-राज्य संबंधों का वास्तविक अध्ययन तथा पुनर्विलोकन करने के लिए 1983 में गठित सरकारिया आयोग ने राज्यपाल के सन्दर्भ में निम्न सिफारिशें प्रस्तुत की हैं-
1. राज्यपाल के रूप में नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति को जीवन के किसी क्षेत्र में अग्रगण्य होना चाहिए। उसे राज्य के बाहर का व्यक्ति होना चाहिए तथा उसकी राजनीति में सामान्यतः बड़ी भूमिका न रही हो, विशेषकर हाल के अतीत में।
2. राज्यपाल के 5 वर्ष के कार्यकाल को बिना ठोस कारणों के अतिरिक्त बाधित नहीं किया जाना चाहिए।
3. राज्यपाल की नियुक्ति पर मुख्यमंत्री की सलाह की व्यवस्था को संविधान में शामिल किया जाना चाहिए।
4. किसी ऐसे व्यक्ति को राज्य के राज्यपाल के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए, जो कि केन्द्र में सत्तारूढ़ दल का सदस्य हो, जिसमें शासन किसी अन्य दल के द्वारा चलाया जा रहा हो।

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