संथाल विद्रोह 1855-56 में प्रारम्भ हुआ था । इस विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू तथा कान्हू ने किया था । विद्रोही गतिविधियों के तहत संथालों ने जमींदारों तथा महाजनों के घरों को लूटा, खाद्यान्न को छीना, सरकारी अधिकारियों ने विद्रोह को दबाने के लिए मार-पीट करके उनका दमन प्रारम्भ किया जिससे ये विद्रोही और अधिक उग्र हो गये।
संथाल विद्रोह के कारण-
जमींदार, पुलिस, राजस्व और अदालत ने जबरन वसूली की संयुक्त कार्रवाही की थी। संथाल आदिवासियों को उधार लिए गए धन पर ब्याज की उच्च दरों के साथ सभी प्रकार के करों और शुल्कों का भुगतान करने पर मजबूर किया जाता था। संथालों को उनकी संपत्ति से बेदखल कर दिया गया और व्यवस्थित रूप से उनके साथ दुर्व्यवहार और शोषण किया गया।
वन संसाधनों के इस्तेमाल के लिए अंग्रेजों द्वारा लाई गई नई वन नीति ने वन संसाधनों पर संथालों के अधिकार को प्रतिबंधित कर दिया, जिससे संथालों में बेहद निराशा पैदा हुई ।
1813 के चार्टर अधिनियम ने ईसाई मिशनरियों को भारत में ईसाई धर्म और इस तरह के धर्म के प्रचार की खुली छूट दी । ईसाई मिशनरियों ने भारत में जनजातियों को निशाना बनाया और पारंपरिक मान्यताओं तथा संथालों की आचार संहिता के लिए खतरा पैदा किया।
ब्रिटिश विनियमन, नियमों और कानूनों ने संथाल जनजातियों के पारंपरिक मध्यस्थता और विवाद समाधान तंत्र को खतरे में डाल दिया।
साहूकारों ने अविश्वसनीय रूप से ज्यादा ब्याज लगाया था। इन साहूकारों को संथाल लोग ‘दिकू’, यानि शोषक के रूप में जाना जाने
लगा था। इस तरह से, संथाल क्षेत्रों में व्यापार करने वाले सभी बंगालियों को ‘दीकू’ कहा जाने लगा था।
रेलवे और अन्य औपनिवेशिक बुनियादी ढाँचे को बिछाने के लिए अंग्रेजों ने संथालों से जबरन श्रम कराया जिससे उनके बीच औपनिवेशिक शासन के खिलाफ आक्रोश पैदा हुआ।
संथाल विद्रोह के परिणाम-
सिंहभूम जिले में भागलपुर और राजमहल पहाड़ियों के बीच के क्षेत्र को काटकर उसे ‘संथाल परगना’ नाम दिया गया और उसे गैर-विनियमन जिला घोषित किया गया। सरकार ने संथाल बहुल क्षेत्र को ‘संथाल परगना’ घोषित किया। संथाल विद्रोह के कारण ही ब्रिटिश सरकार ने संथालों को आदिवासी के दर्जे को मान्यता दी जिसके परिणामस्वरूप वे समान प्रशासन में आ गए।
इस विद्रोह ने संथालों को एकजुट कर दिया। विद्रोह से पहले वे शिथिल रूप से जुड़े हुए थे लेकिन विद्रोह ने उन्हें एक संयुक्त मोर्चा बनाने के फायदों का अहसास कराया।
संथाल काश्तकारी संरक्षण अधिनियम अस्तित्व में आया जिसने औपनिवेशिक शोषण से कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान की । नियमित पुलिस बल को समाप्त कर दिया गया और ग्राम प्रधानों को कानून व्यवस्था बनाए रखने का जिम्मा सौंप दिया गया।