Categories: इतिहास

विजयनगर साम्राज्य

विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक :-

इसकी स्थापना 1336 में दो भाइयों हरिहर और बुक्का द्वारा की गई । हरिहर प्रथम इस राज्य का प्रथम शासक हुआ।

राजधानी :

राजधानी विजयनगर थी ।विजयनगर का शाब्दिक अर्थ विजय का नगर यानि जीत का शहर होता है।
विजयनगर दक्षिण भारत में फैला एक विशाल हिन्दू साम्राज्य था।
यह 1336 से 1565 तक अस्तित्व में रहा।
विजयनगर की प्राचीन राजधानी का नाम हम्पी था इसीलिए इसे हम्पी के नाम से भी जाना जाता है।

विजयनगर साम्राज्य के चार वंश :-

संगम वंश
जैसा कि हमने पढ़ा कि विजयनगर की स्थापना हरिहर और बुक्का द्वारा 1336 में की गई। इनके पिता जी का नाम संगम था और इन्हीं के नाम पर इन्होंने अपने वंश की स्थापना की ।
इस तरह विजयनगर पर सबसे पहले संगम वंश ने शासन किया ।
इनके अंतिम शासक विरुपाक्ष द्वितीय थे।
सुलुव वंश
सुलुव लोग संगम वंश के दौरान सैनिक कमांडर थे।
संगम वंश के अंतिम शासक विरुपाक्ष द्वितीय को हराकर नरसिंह ने अपने शासन की स्थापना की
यहीं से सुलुव वंश की शुरुआत हुई।
तुलुव वंश
तुलुव के प्रथम शासक वीर नरसिंह द्वारा सुलुव वंश के अंतिम शासक को हराकर तुलुव वंश की स्थापना की गई ।
इसी वंश के दौरान कृष्णदेव राय राजा बने ।
इन्हें विजयनगर का सबसे प्रतापी राजा माना जाता है।
तुलुव वंश के आखिरी शासक सदाशिव थे।
अराविंदु वंश
तिरुमल द्वारा तुलुव वंश के आखिरी शासक को हराकर अराविंदु वंश की स्थापना की गई अरविंद वंश तथा विजयनगर साम्राज्य के अंतिम शासक श्रीरंग तृतीय थे।

विजयनगर साम्राज्य की प्रसिद्द मंदिर विरुपाक्ष की विशेषताएँ :-

अभिलेखों से पता चलता है कि विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण नवीं या दसवीं शताब्दी में किया गया था। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के बाद उसे बड़ा करवाया गया। मुख्य मन्दिर के सामने जो मण्डप बना है, उसका निर्माण कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में कराया। पूर्वी गोपुरम (प्रवेश द्वार) भी उसी ने बनवाया था। यह मन्दिर नगर के केन्द्र में स्थित है। मन्दिर की दीवारों पर शिकार करने, नाच व युद्धों की जीत के जश्न मनाने के सुन्दर दृश्य दिखाये गये हैं।

विजयनगर कालीन सिंचाई व्यवस्था :-

विजयनगर के रायों ने सिंचाई व्यवस्था पर पर्याप्त ध्यान दिया । विजयनगर चारों ओर से ग्रेनाइट की चट्टानों से घिरा है। इन चट्टानों से कई जलधाराएँ फूटकर तुंगभद्रा नदी में मिलती हैं। इससे एक प्राकृतिक कुण्ड का निर्माण हुआ था। इन सभी धाराओं को बाँधकर पानी के हौज बनाये गये थे। इन्हीं में से एक हौज का नाम ‘कमलपुरम् जलाशय’ था। इससे आस-पास के खेतों की सिंचाई की जाती थी। इससे एक नहर भी निकाली गयी थी । तुंगभद्रा बाँध से एक हिरिया नहर भी निकाली गयी थी।
राजा कृष्णदेव राय द्वारा बनवाये जा रहे एक जलाशय का आँखों देखा वर्णन विदेशी यात्री डेमिन्गौस पेइज ने इस प्रकार किया है-
“राजा ने एक जलाशय का निर्माण कराया। दो पहाड़ियों के मुहाने पर जल उसमें एकत्रित होता था। . जलाशय में तीन विशाल स्तम्भ बने हैं, जिन पर खूबसूरती से चित्र उकेरे गये हैं। ये स्तम्भ ऊपरी भाग पर कुछ पाइपों से जुड़े ये हैं जिनसे ये बगीचों तथा धान के खेतों की सिंचाई हेतु पानी लाते हैं। इस जलाशय के निर्माण में मैंने लगभग 15 से 20 हजार लोगों को कार्य करते देखा।”

विजयनगर की प्रशासनिक व्यवस्था:-

केन्द्रीय प्रशासन:- विजयनगर प्रशासन में राजा प्रधान पदाधिकारी होता था। राजा को ‘राय’ कहा जाता था. न्याय, धर्म- निरपेक्षता शांति एवं सुरक्षा की व्यवस्था का उत्तरदायित्व राजा का होता था। युवराज की प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। जीवनकाल में ही राजा अधिकांशतः उत्तराधिकारी नियुक्त कर देते थे ।

मंत्री एवं प्रमुख अधिकारी:-  राजा को सलाह देने के लिए एक सलाहकार समिति होती थी, जो ‘राजपरिषद्’ कहलाती थी। राजपरिषद् में प्रान्तीय शासक, सामन्त, व्यापारिक निगमों को भी शामिल किया गया था । प्रधानमंत्री या महाप्रधानी मंत्रिपरिषद का प्रमुख पदाधिकारी होता था । मंत्रिपरिषद में राज्य के मंत्री, उपमंत्री, विभागाध्यक्ष एवं राजा के निकटतम सम्बन्धित व्यक्ति शामिल होते थे। इसमें 20 सदस्य होते थे।

मंत्रिपरिषद राजा को सलाह प्रदान करती थी, लेकिन उसे मानने की कोई बाध्यता नहीं थी।
युवराज एवं राजा के बाद महाप्रधानी विजयनगर प्रशासन का सर्वोच्च पदाधिकारी होता था।
केन्द्रीय प्रशासनिक स्तर पर एक सचिवालय होता था जिसका कार्य प्रशासन पर नियन्त्रण रखना होता था। मानेय प्रधान (गृहमन्त्री), रायसम् (सचिव), कर्णिकम ( हिसाब-किताब रखने वाला) एवं मुद्राकर्ता ( राजकीय मुद्रा रखने वाले) प्रमुख सचिवालयी कर्मी होते थे।

आयंगर व्यवस्था:-

आयंगर व्यवस्था समस्त राज्य प्रान्तों में विभक्त था । प्रान्त मण्डल में विभाजित था। मण्डल जिले (वलनाडू) में विभक्त था। वलनाडू नाडू में विभक्त था। नाडू गाँव की बड़ी राजनीतिक इकाई थी । आयंगर व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक ग्राम को एक स्वतन्त्र इकाई के रूप में संगठित किया जाता था। इस पर बारह व्यक्ति मिलकर शासन करते थे जिन्हें सामूहिक रूप से आयंगर कहा जाता था। इनके पद आनुवांशिक होते थे। इन्हें वेतन के बदले करमुक्त भूमि दी जाती थी ।

धार्मिक व्यवस्था:-

विजयनगर में हिन्दू धर्म की स्थिति श्रेष्ठतम थी। इसी के फलस्वरूप इस काल को हिन्दू धर्म के पुनरूत्थान का काल कहा जाता है।
विजयनगर साम्राज्य में शैव एवं वैष्णव धर्म प्रमुख रूप से माना जाता था। यज्ञ, आहुति एवं बलि का प्रचलन था। समाज में पुरोहित एवं ब्राह्मणों की स्थिति सम्माननीय थी।

सामाजिक व्यवस्था:-

विजयनगर साम्राज्य में समाज चार वर्णों
में विभाजित था (i) विप्रलु, (ii) राजलु, (iii) मोतिकरतलु, (iv) नलवजटिवए ।
जिनका सम्बंध क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र से था।
ब्राह्मण जाति का स्थान सर्वश्रेष्ठ था तथा उन्हें अनेक सुविधाएँ और विशेषाधिकार प्राप्त थे।
दास प्रथा भी प्रचलित थी तथा पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों को भी दास बनाया जाता था। ब्राह्मणों को मृत्यु दण्ड अथवा अन्य कोई भी शारीरिक दण्ड नहीं दिया जाता था।
स्त्रियों की स्थिति संतोषजनक थी । देवदासी प्रथा भी प्रचलित थी । कहीं-कहीं पर वेश्यावृत्ति का भी उदाहरण मिलता है।
कुलीन स्त्रियों की स्थिति संतोषजनक थी। स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने, व्यवसाय करने एवं सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करने का भी अधिकार था।
उच्चवर्ग में स्त्रियां भी विभिन्न पदों पर नियुक्त की जातीं थी।
सती प्रथा का तत्कालीन समाज में प्रचलन था। समाज में दो प्रकार की गणिकाएँ थीं मंदिरों में रहने वाली तथा स्वतंत्र
जीवनयापन करने वाली। इन्हें भू-स्वामित्व भी प्राप्त था।

वित्तीय व्यवस्था:-

राज्य की आय का मुख्य स्रोत भू-राजस्व था । विजयनगर साम्राज्य के लगभग सभी क्षेत्र उर्वरक थे और इसका व्यापार भी उन्नत था ।
आय के प्रमुख स्रोतों में लगान, वाणिज्य कर सम्पत्ति कर आदि प्रमुख थे।
भू-राजस्व का निर्धारण फसल की किस्म तथा उसकी उत्पादकता की श्रेणी पर निर्भर करता था ।
सामान्यता 1/6 भाग पर भू-राजस्व वसूली की जाती थी।
सिंचाई कर एक नया कर लगाया गया था जिसका नाम ‘दासावन्दा’ था।
मंदिरों की भूमि से 30 वां भाग भू-राजस्व के रूप में वसूला जाता था।
सामुदायिक करों की भी व्यवस्था थी ।
सैनिक जो शौर्य का प्रदर्शन करते हुए शहीद होते थे उनके परिवारजनों को ‘रक्त कोड़गे’ के रूप में भूमि दी जाती थी।
भारत से विदेशों को कपड़ा, चावल, इस्पात, गन्ना आदि वस्तुओं का निर्यात किया जाता था तथा प्रमुख आयातित वस्तुओं में हाथी दांत, मोती, आभूषण, घोड़े आदि शामिल थे।

विजयनगर साम्राज्य का पतन :-

विजयनगर साम्राज्य 1336 ई. में स्थापित हुआ तथा लगभग 300 वर्षों तक निरन्तर राजनीतिक सत्ता का केन्द्र बना रहा। परन्तु कृष्णदेव राय की मृत्यु के पश्चात् 1529 ई. में राजकीय ढाँचे में तनाव उत्पन्न होने लगा। उसके उत्तराधिकारियों को विद्रोही नायकों या सेनापतियों से चुनौती का सामना करना पड़ा। अब विजयनगर के शासक कुशल राजनीतिज्ञ एवं कूटनीतिज्ञ नहीं रह गये थे। उनकी जनता भी भोग-विलास में लिप्त हो चुकी थी। उनमें राज्य की सुरक्षा की भावना समाप्त हो गयी थी। विजयनगर साम्राज्य में मुस्लिम राज्यों से संघर्ष के कारण भी जन-धन की काफी हानि हो गयी थी।

विजयनगर साम्राज्य के पतन का प्रमुख कारण उनका तालीकोट के युद्ध पराजित होना था। विजयनगर साम्राज्य में संगठित सेना का अभाव था। सेना में योग्य सैनिकों एवं तोपखानों का भी अभाव था। यही कारण था कि 1565 ई. में विजयनगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी तांगड़ी (जिसे तालीकोट के नाम से भी जाना जाता है।) के युद्ध में उतरी जहाँ उसे बीजापुर, अहमदनगर और गोलकुण्डा की संयुक्त सेनाओं द्वारा करारी शिकस्त मिली। विजयी सेनाओं विजयनगर शहर पर धावा बोलकर उसे लूटा। कुछ ही वर्षों के भीतर यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया।

JAI YADAV

Recent Posts

Explain with examples the various types of industries

Industry refers to economic activities, which are connected with conversion of resources into useful goods. Industry is concerned with the…

2 days ago

Explain the characteristics of business

Business refers to any occupation in which people regularly engage in an activity with an objective of earning profit. The…

2 days ago

What are the fundamental economic problems of economics?

According to Prof. Samuelson, every economy has three basic problems of resource allocation: (a) What to produce and how much…

6 days ago

What is Green Revolution? Why was it implemented and how did it benefit the farmers? Explain in brief.

The introduction of High Yielding Varieties (HYV) of seeds and the increased use of fertilisers, pesticides and irrigation facilities are…

7 days ago

The traditional handicrafts industries were ruined under the British rule. Do you agree with this view? Give reasons in support of your answer.

Yes, we agree with the above statement that the traditional handicrafts industries were ruined under the British rule. The following…

7 days ago

What was the focus of the economic policies pursued by the colonial government in India? What were the impacts of these policies?

India was under British rule for almost two centuries before attaining Independence in 1947. The main focus of the economic…

7 days ago