प्रत्येग सामाजिक वर्ग में वर्ग-चेतना कुछ-न-कुछ मात्रा में अवश्य ही रहती है। वर्ग चेतना वह स्थायी भाव ( sentiment) है जिससे व्यक्तियों का अपने तथा अन्य वर्गों के सदस्यों के बीच सम्बन्ध निर्धारित होता है।
इसी के कारण कोई व्यक्ति वर्ग के सदस्यों के बीच अपने हितों की सामान्यता तथा सामान्य आदेशों की अनुभूति करता है। वर्ग-चेतना किसी वर्ग का आन्तरिक पक्ष है जो ऐसे लोगों को एक साथ बांधता है जो अन्य वर्गों से अपने को भिन्न समझते हैं।
इसी के कारण अन्य वर्गो से सामाजिक दूरी ( social distance) होती है जो वर्ग-भेद का आवश्यक तत्त्व है। सामाजिक दूरी वा निकटता व्यक्तिगत घृणा या चाव नहीं है। इससे केवल दो वर्गों के व्यक्तियों में वैचारिक आदानप्रदान का अभाव होता है।
वर्ग-अभिवृत्ति या चेतना समुदायिक स्थायी भावं ( sentiment ) से भिन्न है। सामुदायिक स्थायी भाव में श्रेणी का भाव नहीं रहता पर वर्ग-स्थायी भाव या चेतना में श्रेणी या क्रम का भाव रहता है।
वर्ग-चेतना के कारण वे जो अन्य वर्गों से भिन्न महसूस करते हैं और एक साथ बंधते हैं, वे इसलिए जुटते हैं क्योंकि वे मुख्यतः अन्य वर्ग से भिन्न महसूस करते हैं। यह ‘निम्नतर’ के विरुद्ध ‘उच्चतर’ को मिलाता है।
वर्ग-चेतना श्रेष्ठता के विश्वास से उद्भूत होता है। इसलिए वर्ग विभाजन उच्च, वर्गों के द्वारा निम्न वर्गो पर थोपा जाता है।
परम्परा के अनुसार निम्न वर्ग उच्च वर्गों को प्रतिष्ठा प्रदान करते है जब परम्परा कमजोर पड़ने लगती है तब वर्ग संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है; एक परम्परा से जकड़ा रहता है, दूसरा उसे उलट देना चाहता है। तब दोनों वर्ग पूरक नहीं रह जाते।
इसलिए सामुदायिक भावना की भांति वर्ग-चेतना समावेशी नहीं है अर्थात् एक का दूसरे में समावेश नहीं होता। वर्ग-चेतना और सामुदायिक भावना एक-दूसरे को सीमित करते है। एक उन्हें विभाजित करता है, जिन्हें दूसरा मिलाता है।