गैर-राजकीय अभिकर्त्ताओं मे ऐसी संस्थाएं शामिल होती हैं जो सरकार का भाग नहीं होते हुए भी अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में भाग लेती हैं या इनसे जुड़े कार्य करती हैं। इनका राज्य की स्थापित संस्थाओं से कोई संबंद्ध नहीं होता है, लेकिन इन संस्थाओं की जानकारी इन्हें पाने का अधिकार होता है। ये सरकार की नीतियों को भी प्रभावित करते हैं। गैर-राजकीय अभिकर्त्ताओं में निजी क्षेत्र, समुदाय आधारित संगठन, महिला समूह, मानवाधिकार संगठन, गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), धार्मिक संगठन, किसान सहकारी समितियां, व्यापार संगठन, विश्वविद्यालय स्तर के संगठन इत्यादि । गैर-राजकीय अभिकर्त्ताओं ने भारत में शासन की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आये हैं। ये विभिन्न प्रकार की क्षमताओं का निर्माण, प्राकृतिक सम्पत्ति को बचाना, विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व करना आदि जैसी विभिन्न भूमिकाएं निभाते हैं।
अनिवार्य रूप ये लोगों के कार्यों और इनके महत्वपूर्ण अधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने के साधन हैं, लेकिन
भारत में गैर-राजकीय अभिकर्त्ताओं की भूमिका सीमांत रही है-
1. राजनीतिक क्षेत्र – सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता सीमित रह गई है। ऐसे में जनता में लोकतंत्र के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान की आवश्यकता है और इस कार्य में गैर-राजकीय अभिकर्त्ताओं की भूमिका अहम हो जाती है।
2. एनजीओ के सहयोग से विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों का प्रभावी कार्यान्वयन हो सकता है।
3. व्यापारिक संगठनों जैसे फिक्की, एसोचैम, आईसीसी, सीआईआई इत्यादि द्वारा सेमिनारों का आयोजन करते हैं – और सरकार की नीतियों से संबंधित विभिन्न प्रकार के मुद्दों को उजागर किया जाता है। यह गतिविधि विभिन्न प्रकार के क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि इत्यादि में काम आता है।
4. सरकार के साथ एनजीओ भी एचआईवी, टी.बी., पोलियो इत्यादि जैसे संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
गैर-राजकीय अभिकर्त्ताओं ने समय-समय पर एक विशेष क्षेत्र में सरकार की नीतियों को उजागर किया है, लेकिन अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सरकार को इन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है। सरकारी संगठन सभी लोगों तक नहीं पहुंच पाती है इसलिए लोगों के कल्याण एवं सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक विकास के लिए गैर-राजकीय अभिकर्त्ताओं की जरूरत पड़ेगी।