नयी कविता में गाँधी दर्शन को चरितार्थ करने वाले अत्यन्त सादगीपसन्द, प्रकृति के चतुर चितेरे, कविवर भवानीप्रसाद मिश्र का साहित्यिक योगदान अति सराहनीय है।
वे मूलतः ग्रामवासी थे और आर्थिक विपन्नता से ग्रस्त भी। भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में 29 मार्च सन् 1913 को हुआ। इन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत विषय में बी.ए, किया। गांधीवादी भवानी प्रसाद मिश्र जी ने बाल साहित्य में भी अहम योगदान दिया।
उन्होंने कई संस्थाओं मे अध्यापन कार्य किया, 1942 में भारत छोड़ो’ आन्दोलन में भाग लिया, कारावास की यातना झेली और महिला आश्रम वर्धा में भरसक सहयोग किया।
गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, गाँधी स्मारक निधि, सर्वसेवक संघ आदि से वे आजीवन सम्बद्ध रहे। उन्होंने अर्से तक ‘कल्पना’ मासिक का सम्पादन किया और आकाशवाणी के हिन्दी कार्यक्रमों का संचालन भी।
चित्रपट-संवाद लेखन तथा निर्देशन में भी उनकी न्यूनाधिक भूमिका रही है। तात्पर्य यह कि विभिन्न क्षेत्रों से उन्होंने व्यापक अनुभव अर्जित किये थे।
इसलिए वे जन-जन के कवि रूप में प्रतिष्ठित हुए। वस्तुतः उनका रचना संसार बहुत विस्तृत एवं बहुआयामी है।
मिश्र जी नये कवियों में अत्यन्त लोकप्रिय हुए हैं। वे बाहर से जितने सीधे-सरल थे, उतने ही भीतर से उज्ज्वल और ईमानदार । गाँधी जी से गहरे स्तर पर प्रभावित होने के कारण वे सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास करते थे।
इसका उन्होंने एक स्थान पर उल्लेख भी किया है-
“चतुर मुझे कुछ भी कभी नहीं भाया। सामान्यता ही को सदा असामान्य मानकर छाती से लगाया।”
प्रयोगवादी काव्य-धारा तथा सप्तक’ के एक नये स्वर के रूप में मिश्र जी की निजी सत्ता रही है।
भवानीप्रसाद मिश्र की प्रमुख रचनाये-
‘गीतफरोश’, ‘चकित है दुख’, ‘अँधेरी कविताएँ’, ‘गाँधी पंचशती’, ‘बुनी हुई रस्सी’, ‘खुशबू के शिलालेख, व्यक्तिगत, त्रिकाल सन्ध्या, ‘सम्प्रति, शरीर, फसलें और फूल, इदनमम्, अनाम तुम आते हो, परिवर्तन जिए, मानसरोवर नीली रेखा तक, पूस की आग (काव्य संग्रह) कालजयी (खंड काव्य) सम्प्रति, आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भवानी जी का निधन 20 फ़रवरी सन् 1985 को हुआ।