पुर्तगालियों का भारत आने के प्रमुख कारण व्यापार करना था भारतीय क्षेत्र में पुर्तगालियों के महत्वपूर्ण योगदान के रूप में तंबाकू की खेती, जहाज का निर्माण तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत को माना जाता है।
वर्ष 1498 में पुर्तगाल के वास्कोडिगामा ने यूरोप से भारत तक नया मार्ग खोज निकाला, वास्कोडिगामा आशा अंतरीप से होते हुए अफ्रीका का चक्कर लगाते हुए कालीकट पहुँचा।
यहाँ से वास्कोडिगामा जो माल लेकर वापस गया, उसे करीब 60 गुना दामों पर बेचा, इसके बाद व्यापार के लिए नए क्षेत्रों की खोज को बढ़ावा मिला तथा इसके लिए प्रयास और तेजी के साथ बढ़ा।
इस क्षेत्र में स्पेन पुर्तगालियों की प्रतिस्पर्धी थी तथा यूरोपीय देशों ने अफ्रीका में अपने व्यापारिक गतिविधियों को आगे बढ़ाया। आरम्भ में यूरोपीय देशों को अफ्रीका के सोने और हाथी दांत ने आकर्षित किया, लेकिन जल्द ही यहाँ गुलामों का व्यापार आरम्भ हो गया। शुरुआत में स्पेन और पुर्तगाल का ही वर्चस्व था, किंतु धीरे धीरे अन्य यूरोपीय देश जैसे- डच, फ्रांसीसी और अंग्रेजों ने भी अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास किया।
अफ्रीका में आरम्भ हुए गुलामों की खरीद-फरोख्त ने बागनों व खदानों की उत्पादकता को बढ़ाया, साथ ही इनको बेचने से होने वाले मुनाफे से सम्बधित देश ने अत्याधिक मुनाफा कमाया और यही मुनाफा औद्योगिक क्रांति लाने में सहायक सिद्ध हुआ।
बेतहाशा लाभ के कारण यूरोपीय देश अब एशियाई देशों में भी व्यापार करके लाभ कमाने की योजना बनाई, जिसमें वे सफल भी रहें।
पूर्वी व्यापार पर लम्बे समय तक पुर्तगालियों का शासन रहा। भारत में पुर्तगालियों ने गोवा, कोचीन व दमन दीव पर अपने व्यापारिक केन्द्र को स्थापित किया तथा आरम्भ से ही व्यापार के साथ-साथ शक्ति का भी प्रयोग किया।
पुर्तगालियों द्वारा भारत में कोचीन में अपना पहला दुर्ग 1503 में स्थापित किया गया था तथा गोवा को राजनीतिक केन्द्र के रूपमें पुर्तगालियों ने विकसित करने का प्रयास किया। पुर्तगालियों की सफलता का प्रमुख राज उनके हथियार बंद समुद्री जहाज थे।
1505 में फ्रांसिस्को-डि- अल्मेडा भारत आया। अल्मेडा ने अपने अधिकार क्षेत्र में ब्लू वाटर पॉलिसी को लागू किया और हिन्द महासागर में पुर्तगालियों की स्थिति को मजबूत करने को प्रयास किया।
1509 में अल्बुकर्क द्वितीय पुर्तगाली वायसराय बनकर भारत आया तथा उसने 1510 ई. में बीजापुर के शासक युसुफ आदिल शाह से गोवा जीतकर अपने अधि कार में कर लिया।
इस समय तक पुर्तगालियों ने अपना अधिकार फारस की खाड़ी में स्थित हरमुज से लेकर मलाया में स्थित मलक्का तक और इंडोनेशिया के स्पाइस आइलैंड तक एशिया के पूरे समुद्र तट पर अधिकार जमा लिया। अपने अधिकार को बनाए रखने के लिए यूरोप के कई अन्य देशों से भी कई लड़ाईया पुर्तगालियों द्वारा लड़ी गई।
1529 में नीनो-डी- कुन्हा भारत में पुर्तगाली वायसराय बनकर आया। उसने 1530 तक पुर्तगाली प्रशासन का मुख्य केन्द्र कोचीन से गोवा स्थानांतरित कर दिया।
बंगाल के शासक महमूद शाह से पुर्तगालियों ने 1534 ई. में चटगाँव और सतगाँव में अपनी व्यापारिक फैक्ट्री खोलने की भी अनुमति प्राप्त कर ली, पुर्तगाली मालाबार और कोंकण तट से सर्वाधिक काली मिर्च का निर्यात करते थे।
मालाबार तट से अदरक, दालचीनी, चंदन, हल्दी, नील आदि का निर्यात होता था । अल्फांसो – डी- अल्बुकर्क ने भारत में पुर्तगालियों की संख्या को बढ़ाने तथा स्थायी बस्तियाँ बसाने के उद्देश्य से पुर्तगालियों को भारतीय महिलाओं के साथ विवाह करने का प्रोत्साहित किया।
भारतीय क्षेत्र में पुर्तगालियों के महत्वपूर्ण योगदान के रूप में तंबाकू की खेती, जहाज का निर्माण तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत को माना जाता है।
पुर्तगालियों का भारत में अपने विस्तार को बढ़ाने के कई कारण थे- जैसे- दक्षिण भारत का साम्राज्य मुगलों से बाहर था, अतः उन्हें कभी मुगल ताकतों का सामना नहीं करना पड़ा, पुर्तगालियों का राज्य खुले समुद्र पर था तथा उनके सैनिक कड़े अनुशासन के पाबंद थे।