निराला जी की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए उनका साहित्य में योगदान रहा स्पष्ट कीजिए

निराला जी की काव्यगत विशेषताएँ :-

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक युगान्तकारी कलाकार के रूप में प्रस्तुत हुए। वे हिन्दी के एक महान् कवि थे। उन्होंने भाव, भाषा, शैली, छन्द आदि सभी को नवीन दिशा प्रदान करने में योगदान किया । वे नवीनता और स्वतन्त्रता के गायक थे।

(अ) भाव-पक्ष

निराला के काव्य में भावपक्षीय सबलता एवं प्रौढ़ता के दर्शन होते हैं। निराला एक बहुपक्षीय प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे। विषयों की विविधता तथा नवीन प्रयोगों की प्रचुरता इनके काव्य की मुख्य विशेषता थी। 

निराला पुरानी एवं जीर्ण परम्पराओं के विरोधी थे, उनके काव्य में क्रान्ति की आग एवं पौरुष के दर्शन होते हैं। उनके काव्य के भाव-पक्ष की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं

(1) रहस्यवाद-निराला एक चिन्तनशील कवि थे। उनके काव्य में स्वस्थ चिन्तन के परिणामस्वरूप रहस्यवाद प्रस्तुत हुआ है। वे अद्वैतवादी सिद्धान्त के समर्थक थे। वे एक सर्वत्र आभासित होने वाली चेतन सत्ता में विश्वास रखते थे।

(2) मानवतावाद-निराला मानवतावाद के कट्टर पोषक थे। वे मानव को विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानते थे।

(3) नारी-चित्रण-निराला ने अपने काव्य में अपने ही ढंग से नारी-चित्रण प्रस्तुत किया है। उनके काव्य में नारी का नित्य नया रूप प्रस्तुत हुआ है।

(4) राष्ट्र-प्रेम-निराला के काव्य में राष्ट्र-प्रेम के पर्याप्त दर्शन होते हैं। जहाँ-तहाँ उनके काव्य में राष्ट्र-प्रेम का स्वर झंकृत होता है, यथा –

                     भारति जय विजय करे! कनक शस्य कमल धरे!

(5) शोषित वर्ग के प्रति सहानभूति-निराला स्वभाव से ही विद्रोही थे। वे किसी बन्धन के अधीन नहीं थे। वे प्रगतिवादी कवि थे।

(6) प्रकृति-चित्रण-निराला के काव्य में प्रकृति का बड़ा ही सजीव चित्रण हुआ है। उन्होंने प्रेम की स्वाभाविक अभिव्यक्ति के लिए प्रकृति के सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किये हैं।

(ब) कला-पक्ष

(1) भाषा-निराला ने अपने काव्य में खड़ी बोली को ही मुख्य रूप से अपनाया। उनकी भाषा में तत्सम शब्दों की प्रधानता थी क्योंकि निराला पर बँगला संस्कार थे।

अत: इनकी भाषा में संगीतात्मकता की बहुलता है।कहीं-कहीं भाषा समासान्त पदावली के कारण क्लिष्ट एवं दुरूह हो गयी है। निराला की भाषा बोधगम्य है। जहाँ-तहाँ फारसी, अंग्रेजी तथा उर्दू के शब्दों का भी प्रयोग किया है।

(2) शैली-निराला की काव्य-शैली बँगला शैली से प्रभावित प्रतीत होती है। इन्होंने मुख्य रूप से अतुकान्त गीत शैली को अपनाया है। इनकी शैली की एक उल्लेखनीय विशेषता पदों से रहित, समासान्त पदों का प्रयोग है। निराला की शैली ओजपूर्ण एवं प्रभावपूर्ण है।

निराला स्वयं ही शैलीकार थे। उनकी शैली संगीतात्मक से परिपूर्ण है।

(3) रस, छन्द तथा अलंकार-निराला के काव्य में विभिन्न रसों का परिपाक हुआ है। आपके काव्य में मुख्य रूप से शृंगार, वीर, रौद्र, शान्त, करुण तथा भयानक रसों का निरूपण हुआ है। छन्द योजना में निराला वास्तव में निराला ही थे।

उन्होंने अपने ढंग से नवीन छन्दों का प्रयोग किया। उन्होंने तुकान्त एवं अतुकान्त दोनों प्रकार के मुक्त छन्दों को अपनाया। निराला के काव्य में अलंकार-योजना भी स्वाभाविक रूप में प्रस्तुत हुई।

उन्हें उपमा, रूपक तथा सन्देह अलंकार अधिक प्रिय थे। उन्होंने अनेक नवीन उपमाओं का सृजन भी किया था।

निराला जी का साहित्य में स्थान

हिन्दी साहित्य में निराला जी का एक विशिष्ट स्थान है। उनके साहित्य में छायावादी तथा प्रगतिवादी दोनों ही प्रवृत्तियों का समन्वय देखा जा सकता है।

यदि उनके काव्य का तटस्थ विश्लेषण किया जाये तो उसमें छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद तथा नयी कविता की विशेषताओं को देखा जा सकता है।

निराला के काव्य में तत्त्व ज्ञान, रहस्यवाद तथा सामाजिक चेतना का सुन्दर समावेश हुआ है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की रचनाएँ

निराला जी बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न कलाकार थे। कविता के अतिरिक्त उन्होंने उपन्यास, कहानियाँ, निबन्ध, आलोचना और संस्मरण भी लिखे हैं। इनकी प्रमख कृतियों का विवेचन इस प्रकार है

परिमल-इस रचना में अन्याय और शोषण के प्रति तीव्र विद्रोह तथा निम्नवर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति प्रकट की गयी है।

गीतिका-इसकी मूलभावना श्रृंगारिक है, फिर भी बहुत-से गीतों में मधुरता के साथ आत्मनिवेदन का भाव भी व्यक्त हुआ है। इसके अतिरिक्त इस रचना में प्रकृति-वर्णन तथा देशप्रेम की भावना पर आधारित चित्रण भी हुआ है।

अनामिका-इसमें संगृहीत रचनाएँ निराला के कलात्मक स्वभाव की परिचायक हैं।

राम की शक्ति-पूजा-इस महाकाव्य में कवि का ओज, पौरुष तथा छन्द-सौष्ठव प्रकट हुआ है।

सरोज-स्मृति-यह हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ शोक-गीत है।

अन्य रचनाएँ-‘कुकुरमुत्ता’, ‘अणिमा’, ‘अपरा’, ‘बेला’, ‘नये पत्ते’, ‘आराधना’, ‘अर्चना’, ‘रवीन्द्र कविता कानन’ आदि भी उनकी अन्य सुन्दर काव्य-रचनाएँ हैं।

गद्य-रचनाएँ-निराला जी की कतिपय गद्य-रचनाएँ इस प्रकार हैं-‘लिली’, ‘चतुरी-चमार’, ‘अलका’, ‘प्रभावती’, ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ और ‘निरुपमा’।

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