जिसका बचपन गाँव में बीता हो, वह धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना कर ही नहीं सकता।
धूल-मिट्टी तो गाँव का सहज शृंगार है।
जिस प्रकार फूल के ऊपर धूल सौंदर्य बिखेरती है, उसी प्रकार शिशुमुख पर धूल उसके सौंदर्य को और बढ़ा देती है।
जिसका बचपन गाँव में बीता हो, वह धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना कर ही नहीं सकता।
धूल-मिट्टी तो गाँव का सहज शृंगार है।
जिस प्रकार फूल के ऊपर धूल सौंदर्य बिखेरती है, उसी प्रकार शिशुमुख पर धूल उसके सौंदर्य को और बढ़ा देती है।