जन्म के समय एक नवजात शिशु के जितने वर्ष जीवित रहने की अपेक्षा की जाती है, उसे जन्म के समय जीवन प्रत्याशा कहा जाता है। भारत में जीवन प्रत्याशा विकसित देशों की अपेक्षा कम है।
यदि एक माँ 10 बच्चों को जन्म देती है और उनमें से 8 की मृत्यु जन्म के आसपास हो जाए, जैसा कि गरीब देशों के बहुत से हिस्सों में होता है, तब बाकी दो बच्चे यदि 100 वर्ष की आयु तक भी जीवित रहते हैं तो उन्हीं हालात में किसी दूसरी माँ से जनमी संतान की जीवन प्रत्याशा केवल 20 वर्ष होगी (100×2 / 10 ) । इसके बदले, यदि 8 में से केवल 4 बच्चों की मृत्यु हो और शेष 100 वर्ष तक जीवित रहें तो इसमें नाटकीय रूप से बदलाव आएगा । तब जीवन प्रत्याशा बढ़कर 60 वर्ष हो जाएगी। अब व्यक्ति ‘जीवन प्रत्याशा’ शब्द का मतलब समझ सकता है।
जीवन प्रत्याशा सूचकांक किसी भी देश में जन्म के समय लोगों की सापेक्ष जीवन प्रत्याशा की उपलब्धि की माप करती है। इससे यह पता चलता है कि लोगों के जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हो रही है अथवा नहीं। यदि जीवन प्रत्याशा सूचकांक का मान पहले की तुलना में अधिक है तो इसका आशय यह हुआ कि वहाँ की जीवन प्रत्याशा पहले की तुलना में बढ़ी है।
जीवन प्रत्याशा सूचकांक = (वास्तविक जीवन प्रत्याशा- न्यूनतम जीवन प्रत्याशा) ⁄ (अधिकतम जीवन प्रत्याशा- न्यूनतम जीवन प्रत्याशा)
अधिकतम जीवन प्रत्याशा 85 वर्ष तथा न्यूनतम जीवन प्रत्याशा 25 वर्ष मानी गयी है।
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