राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। जिस प्रकार इलाहाबाद में तीन नदियों का संगम होने के कारण प्रयाग कहा जाता है। उसी प्रकार राजिम में सोदूर, पैरी और महानदी का संगम होने के कारण इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग की संज्ञा दी गई है। । संगम के मध्य में कुलेश्वर महादेव का विशाल मन्दिर भी स्थित है। मान्यता है कि यहाँ भगवान राम ने वनवास के दौरान कुल देवता महादेव की पूजा की थी। राजिम प्राचीन मन्दिरों व विरासत के लिए प्रसिद्ध है।
नवम्बर सन् 2000 ई. में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पश्चात सन् 2006-07 से राज्य सरकार द्वारा प्रतिवर्ष कुंभ मेला का आयोजन किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राजिम कुंभ मेला का नामकरण राजिम कल्प कुंभ रखा गया था। परन्तु 2019 में पुनः राजिम माघी पुन्नी मेला रख दिया गया। जो सदियों से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान रही है। इसके लिए 10 जनवरी 2019 को छत्तीसगढ़ विधानसभा में संशोधन विधेयक लाया गया, जिसे छत्तीसगढ़ राजिम कुंभ (कल्प) मेला संशोधन विधेयक 2019 कहा गया। इस संशोधन अधिनियम की धारा एक की उपधारा एक में छत्तीसगढ़ राजिम कुंभ (कल्प) मेला अधिनियम 2006 के स्थान पर छत्तीसगढ़ राजिम माघी पुन्नी मेला 2019 प्रतिस्थापित किया गया । माघ माह की पूर्णिमा पर यहाँ लगने वाली मेला तीन दिन तक लगती थी ।
पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक यह मेला लगती है। मेले के अवसर पर विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतो का आगमन हुआ करता है । राजिम पुन्नी मेला की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है ।