क्या हिंसा कभी शांति को प्रोत्साहित कर सकती है व्याख्या कीजिए |

जी हाँ हिंसा शांति को प्रोत्साहित कर सकती है |

अक्सर यह दावा किया जाता है कि हिंसा एक बुराई है लेकिन कभी-कभी यह शांति लाने की अपरिहार्य पूर्वशर्त जैसी होती है।

यह तर्क दिया जा सकता है कि तानाशाहों और उत्पीडकों को जबरन हटाकर ही उनको, जनता को निरंतर नुकसान पहुँचाने से रोका जा सकता है।

या फिर, उत्पीड़ित लोगों के मुक्ति-संघर्षों को हिंसा के कुछ इस्तेमाल के बावजूद न्यायपूर्ण ठहराया जा सकता है।

लेकिन अच्छे मकसद से भी हिंसा का सहारा लेना आत्मघाती हो सकता है।

एक बार शुरू हो जाने पर इसकी प्रवृत्ति नियंत्रण से बाहर हो जाने की होती है और इसके कारण यह अपने पीछे मौत और बर्बादी की एक श्रृंखला छोड़ जाती है।

शांतिवादी का मकसद लड़ाकुओं की क्षमता को कम करके आंकना नहीं, प्रतिरोध के अहिंसक स्वरूप पर बल देना है।

वैसे संघर्षों का एक प्रमुख तरीका सविनय अवज्ञा है और उत्पीड़न की संरचना की नींव हिलाने में इसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल होता रहा है।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधी जी द्वारा सत्याग्रह का प्रयोग एक प्रमुख उदाहरण है।

गांधी जी ने न्याय को अपना आधार बनाया और विलायती शासकों के अंत:करण को आवाज दी।

जब उससे काम नहीं चला तो उन पर नैतिक और राजनैतिक दबाव बनाने के लिए उन्होंने जनांदोलन आरंभ किया, जिसमें अनुचित कानूनों को अहिंसक ढंग से खुलेआम तोड़ना शामिल था।

उनसे प्रेरणा लेकर मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका में काले लोगों के साथ भेदभाव के खिलाफ 1960 में इसी तरह का संघर्ष शुरू किया था ।

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