ऋग्वेद में सबसे ज्यादा ज्यादा उल्लेख सिंधु नदी का है ।
वैदिक संहिताओं में कुल 31 नदियों का उल्लेख मिलता है।
जिसमें से 25 नदियों का उल्लेख अकेले ऋग्वेद’ में हुआ है।
ऋग्वेद की नदी स्तुति (सूक्त) (x75) में सबसे अधिक सिंधु नदी का उल्लेख है।
सिंधु नदी को उसके आर्थिक महत्व के कारण ‘हिरण्यनी, कहा गया है तथा इसके गिरने की जगह ‘पराक्त’ अर्थात अरब सागर बताई गई है।
ऋग्वेद में गंगा का केवल दो बार और यमुना का तीन बार उल्लेख मिलता है।
सरस्वती सिन्धु के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण नदी थी, ऋग्वैदिक काल के दौरान आर्यों के भौगोलिक ज्ञान के विषय में ऋग्वेद में दिए गए मंत्रों से जानकारी मिलती है। इन मंत्रों में विभिन्न नदियों के विषय में बात की गई है।
इन मंत्रों का अध्ययन दर्शाता है पूर्व वैदिक काल (ऋग्वैदिक काल) में आर्यों का भौगोलिक विस्तार पूर्वी अफगानिस्तान, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के सीमावर्ती भू-भाग में था; यह क्षेत्र, ‘सप्तसिन्धु’ कहलाता था।
सप्तसिन्धु क्षेत्र (सिन्धु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलुज और सरस्वती) सात नदियों का क्षेत्र कहलाता था।
सिन्धु ऋग्वेद की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी है; सिन्धु की सहायक नदियों में वितस्ता (झेलम), अश्किनी (चिनाब, परुष्णी (रावी), शतुदु (सतलुज), व्यास (विपासा) प्रमुख नदियाँ हैं।
ऋग्वेद में सिंधु नदी की पश्चिमी सहायक नदियाँ गोमती (आधुनिक गोमल), कुम (आधुनिक कुर्रम) एवं खुबा (आधुनिक काबुल) का उल्लेख किया गया है। काबुल के उत्तर में सुवास्तु (स्वात) नदी का अति महत्त्वपूर्ण नदी के रूप में उल्लेख किया गया है।