Categories: इतिहास

आप प्रारंभिक मध्यकालीन भारत की राजनीतिक और आर्थिक संरचना को किस प्रकार निरूपित करेंगे

मध्यकालीन भारत की राजनीतिक व्यवस्था :- मध्यकालीन भारत में अनेक राजवंश शासन किया जिनकी राजनितिक व्यवस्था निम्नप्रकार है

दिल्ली सल्तनत  सल्तनत काल में भारत में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था की शुरुआत हुई, जो मुख्य रूप से अरबी-फारसी पद्धति पर आधारित थी। सल्तनत काल में प्रशासनिक व्यवस्था पूर्ण रूप से इस्लामिक धर्म पर आधारित थी।

केन्द्रीय प्रशासन
सुल्तान
सुल्तान केन्द्रीय प्रशासन का मुखिया होता था। राज्य की पूरी शक्ति उसमें केन्द्रित थी।

न्यायपालिका एवं कार्यपालिका पर सुल्तान का पूरा नियन्त्रण था। सल्तनत काल में उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम नहीं था।

कभी-कभी शक्ति के प्रयोग से भी सिंहासन पर अधिकार किया जाता था। सुल्तान ‘शरीयत’ के अधीन ही कार्य करता था।

अमीर
सल्तनत काल में सभी प्रभावशाली पद अमीरों के अधीन होते थे, इसलिए अमीरों का प्रभाव सुल्तान पर होता था। सुल्तान को शासन करने के लिए अमीरों को अपने अनुकूल करना आवश्यक होता था।

. वैसे बलबन और अलाउद्दीन के समय में अमीर प्रभावहीन हो गए थे।

मंत्रिपरिषद्
यद्यपि सत्ता की धुरी सुल्तान होता था, फिर भी विभिन्न विभागों के कार्यों के कुशल संचालन हेतु उसे एक मंत्रिपरिषद् की आवश्यकता पड़ती थी, जिसे सल्तनत काल में ‘मजलिस-ए-खलवत’ कहा गया।

मंत्रिपरिषद् की सलाह मानने के लिए सुल्तान बाध्य नहीं होता था। वह इनकी नियुक्ति एवं पद मुक्ति अपनी इच्छानुसार कर सकता था। ‘

मजलिस-ए-खास’ में मजलिस-ए-खलवत की बैठक हुआ करती थी। यहाँ पर सुल्तान कुछ खास लोगों को बुलाता था।

‘बार-ए-खास’ में सुल्तान सभी दरबारियों, खानों, अमीरों, मालिकों और अन्य रईसों को बुलाता था।

न्याय तथा दण्ड व्यवस्था
सल्तनत काल में सुल्तान राज्य का सर्वोच्च न्यायाधीश होता था।

इस समय इस्लामी कानून शरीयत, कुरान एवं हदीस पर आधारित था।

मुस्लिम कानून के चार महत्वपूर्ण स्रोत थे-कुरान, हदीस, इजमा एवं कयास।

कुरान-मुसलमानों का पवित्र ग्रंथ एवं मुस्लिम कानून का मुख्य स्रोत है।

हदीस-पैगम्बर के कार्यों एवं कथनों का उल्लेख, कुरान द्वारा समस्या का समाधान न होने पर ‘हदीस’ का सहारा लिया जाता था।

इजमा-‘मुजतहिंद’ व मुस्लिम विधिशास्त्रियों को मुस्लिम कानून की व्याख्या का अधिकार प्राप्त था, इसके द्वारा व्याख्यायित कानून, जो अल्लाह की इच्छा माना जाता था, को ‘इजमा’ कहा गया।

कयास-तर्क के आधार पर विश्लेषित कानून को कयास कहा गया। सल्तनत काल में मुख्यत: 4 प्रकार के कानूनों का प्रचलन था

(1) सामान्य कानून-व्यापार आदि से सम्बन्धित ये कानून मुस्लिम एवं गैर-मुस्लिम दोनों पर लागू होते थे। परन्तु सामान्यत: यह कानून केवल मुसलमानों पर लागू होता था।

(2) देश का कानून-मुस्लिम शासकों द्वारा शासित देश में प्रचलित स्थानीय नियम कानून।

(3) फौजदारी कानून-यह कानून मुस्लिम एवं गैर मुस्लिम दोनों पर समान रूप से लागू होता था।

(4) गैर-मुस्लिमों का धार्मिक एवं व्यक्तिगत कानून– हिन्दुओं के सामाजिक मामलों में दिल्ली सल्तनत का अति सूक्ष्म हस्तक्षेप होता था। उनके मुकदमों की सुनवाई पंचायतों में विद्वान पण्डित एवं ब्राह्मण किया करते थे, वहीं विवादों का निपटारा भी करते थे।

मुगल प्रशासन

मनसबदारी प्रणाली: • प्रत्येक मुगल अधिकारी को एक मनसब (पद) सौंपा गया था, मंसबदारों की 66 श्रेणियां थीं।

• जहाँगीर ने डु-एस्प-सिह-एस्पाह प्रणाली की शुरुआत की, जिसके अंतर्गत विशिष्ट रईस घुड़सवारों की संख्या को दोगुना बनाए रखना था।

केंद्रीय प्रशासन:

वकील: वह शुरू में प्रधान मंत्री था, हालांकि बाद में केवल राजस्व सलाहकार बन गया।

मीर बख्शी: वह सैन्य विभाग का प्रमुख था।

प्रांतीय प्रशासन: • साम्राज्य को प्रांतों या सूबा में विभाजित किया गया था।

• 1580 में, अकबर ने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया। उसके शासनकाल के अंत तक प्रांतों की संख्या 15 थी।

जहाँगीर के शासनकाल में प्रांतों की संख्या 17 थी जो औरंगज़ेब के शासनकाल में और आगे बढ़कर 21 हो गई।

• नाजिम या सूबेदार प्रांतों के प्रमुख थे।

स्थानीय प्रशासन: • प्रांतों को सरकरों में विभाजित किया गया था, जिन्हें परगना में विभाजित किया गया और फिर इन्हें गांवों में विभाजित किया गया।

शिवाजी का प्रशासन

शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था का आधार दक्षिणी राज्यों व मुगलों की शासन-पद्धति से प्रभावित रहा।

छत्रपति निरंकुश शासक था, अन्तिम कानून निर्माता प्रशासकीय प्रधान, सर्वोच्च न्यायधीश, सेनापति।

प्रशासन का वास्तविक संचालन अष्टप्रधान (आठ मन्त्री) करते थे, ये मात्र छत्रपति के परामर्शदाता थे

(i) पेशवा-सम्पूर्ण शासन की देखभाल, छत्रपति की अनुपस्थिति में शासन-संचालन, सरकारी पत्रों, दस्तावेजों पर छत्रपति के नीचे अपनी
मुहर लगाता था।

(ii) अमात्य-वित्त एवं राजस्व की व्यवस्था, आय-व्यय के लेखों की जाँच।

(iii) वाकियानवीस अथवा मन्त्री-छत्रपति के दैनिक कार्यों तथा दरबार की कार्यवाहियों का विवरण रखता था।

(iv) सचिव-छत्रपति का (राजकीय) पत्र-व्यवहार करना, परगनों के हिसाब की जाँच करना।

(v) सुमन्त-विदेशों से सम्बन्ध स्थापित करना।

(vi) सेनापति (सर-ए-नौबत)-सेना की भर्ती, रसद, संगठन का प्रबन्ध ।

(vii) पण्डितराव-विद्वानों व धार्मिक कार्यों को दिए जाने वाले अनुदानों
की व्यवस्था।

(viii) न्यायाधीश-छत्रपति के पश्चात राज्य का मुख्य न्यायाधीश, सभी दीवानी व फौजदारी मुकदमों के निर्णय का दायित्व सँभालता था।

अष्टप्रधान में अन्तिम दो (पण्डितराव व न्यायाधीश) को छोड़कर सभी को सैनिक नेतृत्व सँभालना पड़ता था।

चिटनिस (पत्राचार लिपिक) महत्वपूर्ण अधिकारी था। शिवाजी ने अपने राज्य को चार प्रान्तों में विभाजित किया था, प्रत्येक प्रान्त राज्य-प्रतिनिधि के अधीन था।

प्रान्त परगनों व तालुकों में विभाजित किए गए थे। परगनों के अन्तर्गत तरफ और मौजे थे। जागीर प्रथा समाप्त कर दी गयी थी। अधिकारियों को नकद वेतन दिया जाता था।

मध्यकालीन आर्थिक व्यवस्था

कृषि उत्पादन : ग्रामीण अर्थव्यवस्था

सल्तनत काल में राज्य की सर्वाधिक आय कृषि से होती थी। कृषिजन्य उपज ने शहरी अर्थव्यवस्था को स्थायी आधार प्रदान किया।

आइने अकबरी में रबी की 16 तथा खरीफ की 25 फसलों की सूची दी गई है। गेहूँ, चावल, बाजरा, चना, दाल इत्यादि प्रमुख फसलें थीं।

भारत में सर्वप्रथम पुर्तगालियों ने 1604 ई. में तम्बाकू तथा मक्का की उपज प्रारंभ करवाई।

आगरा के निकट बयाना तथा गजरात के निकट सरखेज से अच्छे किस्म की नील प्राप्त होती थी।

सिंचाई के लिए नहरों तथा रहट का प्रयोग किया जाता था। मुगल काल में कृषक वर्ग स्पष्ट रूप से तीन वर्गों खुदकाश्त, पाहीकाश्त तथा मुजारियान में बँटे थे।

खुदकाश्त कृषकों के पास अपनी भूमि होती थी तथा वे उसी गाँव में निवास करते थे। उन्हें भूमि को बँटाई पर देने तथा बेचने का
भी अधिकार था।

नगरीकरण

तुर्क शासन की स्थापना के पश्चात नगरीकरण की प्रक्रिया तेज हो गई। अनेक नए नगर विकसित हुए तथा नगरीय आबादी में वृद्धि हुई।

मुल्तान, खम्भात, देवल, बनारस, देवगिरि, अन्हिलवाड़ इत्यादि महत्वपूर्ण नगर एवं व्यापारिक केन्द्र थे।

इनके अतिरिक्त दिल्ली, आगरा, लाहौर, अमृतसर, ढाका, चुनार भी मुगलकालीन प्रसिद्ध नगर थे।

उद्योग, प्रौद्योगिकी

रहट का प्रयोग पहली बार सल्तनत काल में हुआ, इसका उल्लेख बाबरनामा में मिलता है। चरखे का उद्भव पूर्व मध्यकाल तथा रेशम के कीड़े पालने की प्रथा सल्तनत काल में प्रचलित हुई।

सलतनत काल में कागज तथा समय सूचक यंत्रों का आविष्कार हुआ।

विजयनगर में स्वर्णकार, लोहार, पीतल का काम करने वाले, मूर्तिकार, जुलाहे, बढ़ई इत्यादि कर्मकारों के उद्योग विकसित अवस्था में थे।

मुगलकाल में सूती वस्त्र का उद्योग उन्नत अवस्था में था। अमृतसर ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए, जौनपुर व गुजरात गुलाब जल, इत्र, सुगंधित तेल तथा गोलकुण्डा व छोटा नागपुर की खान हीरा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध थे।

मुगल काल में जलयान निर्माण का काम उन्नत अवस्था में था।

व्यापार तथा वाणिज्य

मध्यकाल में पूरे देश में व्यापारिक वस्तुओं पर कर लगाने के लिए चौकियाँ स्थापित की गई थी।

पश्चिमोत्तर भारत में मुल्तान व्यापारिक केन्द्र के रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध था। केवल व्यापारिक दृष्टि से समृद्ध था तथा इसे अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह का दर्जा प्राप्त था।

खम्भात बंदरगाह पर प्रतिवर्ष 300 जहाज आते थे। देवगिरि रत्नों के व्यापार, बंगाल चावल एवं रेशम, खंभात रेशम तथा बनारस सल्तनत काल में पगड़ियों के निर्यात के लिए प्रसिद्ध थे।

भारत से नियातित वस्तुओं में सूती वस्त्र, लोहा, मसाले, शक्कर, नील, जड़ी-बूटियाँ इत्यादि प्रमुख थे। मुगल काल में थोक व्यापारियों को वोहरा, मोदी, सेठ तथा खुदरा व्यापारियों को ‘वनिक’ कहा जाता था।

मुगल कालीन निर्यात की प्रमुख वस्तुएँ थीं-शोरा, अफीम, नील, सूती वस्त्र। सोना, चाँदी, कच्चा रेशम तथा घोड़े का आयात किया जाता था।

सिंधु नदी व्यापारिक नौचालन के लिए प्रसिद्ध थी। उत्तर-पश्चिम में निर्यात के लिए दो स्थल मार्ग-लाहौर से काबुल तथा मुल्तान से कंधार प्रसिद्ध थे।

हुण्डी,बीमा

मुगल काल में हुण्डी विनिमय का माध्यम था। हुण्डी एक अल्पकालीन ऋण होता था, जिसका भुगतान एक निश्चित अवधि के बाद कुछ कटौती कर किया जाता था।

सर्राफ एक निजी बैंक की तरह काम करता था। वह रुपए के लेन-देन का विशेषज्ञ होता था।

18वीं सदी में बंगाल में ऋण प्रदान करने की एक नई व्यवस्था ददनी का प्रारंभ हुआ। यह अग्रिम पेशगी होता था। इसके अन्तर्गत दस्तकारों को अग्रिम पेशगी देकर एक करार कर लिया जाता था।

यह प्रथा गुजरात में भी कायम हो गयी थी। 17वीं सदी में व्यापार तथा वाणिज्य की उन्नति ने ऋण व्यवस्था को जन्म दिया।

हुण्डी द्वारा धन एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता था। हुण्डी जारी करने के लिए सर्राफ कमीशन लेता था। हुण्डी से रुपए एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित पहुँच जाते थे।

रुपयों की सुरक्षा की गारंटी सर्राफ देते थे। माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय उनका आमतौर से बीमा किया जाता था। बीमा का काम भी सर्राफ ही करते थे।

मुद्रा

इल्तुतमिश पहला सुल्तान था, जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए। चाँदी का टंका तथा ताँबे का जीतल भी उसी ने प्रारंभ किए।

मुहम्मद बिन तुगलक ने अदली (140 ग्रेन का) तथा फिरोज तुगलक ने अद्धा तथा बिख नामक सिक्के चलवाए।

विजयनगर का सर्वाधिक प्रसिद्ध स्वर्ण सिक्का वराह था, जिसे हूण, पगोडा, परदौस कहा जाता था।

सोने के छोटे सिक्के फणम तथा प्रताप कहे जाते थे। तार चाँदी का सिक्का था। शेरशाह ने चाँदी का रुपया (180 ग्रेन) तथा ताँबे का दाम चलाया।

उसके काल में 23 टकसालें थीं। बाबर ने काबुल में शाहरुख तथा कंधार में बाबरी नामक चाँदी के सिक्के चलाए। अकबर ने अपने काल में सोने की मुहर प्रचलित की, जिसकी कीमत नौ रुपए के बराबर थी।

अकबर द्वारा जारी सोने का सिक्का इलाही की कीमत दस रुपए थी। अकबर ने चाँदी का जलाली तथा ताँबे का दाम जारी किया।

एक रुपए में चालीस दाम मिलते थे। जहाँगीर ने निसार, शाहजहाँ ने आना (रुपए व दाम के बीच का सिक्का) जारी किए।

JAI YADAV

Recent Posts

Explain with examples the various types of industries

Industry refers to economic activities, which are connected with conversion of resources into useful goods. Industry is concerned with the…

5 months ago

Explain the characteristics of business

Business refers to any occupation in which people regularly engage in an activity with an objective of earning profit. The…

5 months ago

What are the fundamental economic problems of economics?

According to Prof. Samuelson, every economy has three basic problems of resource allocation: (a) What to produce and how much…

5 months ago

What is Green Revolution? Why was it implemented and how did it benefit the farmers? Explain in brief.

The introduction of High Yielding Varieties (HYV) of seeds and the increased use of fertilisers, pesticides and irrigation facilities are…

5 months ago

The traditional handicrafts industries were ruined under the British rule. Do you agree with this view? Give reasons in support of your answer.

Yes, we agree with the above statement that the traditional handicrafts industries were ruined under the British rule. The following…

5 months ago

What was the focus of the economic policies pursued by the colonial government in India? What were the impacts of these policies?

India was under British rule for almost two centuries before attaining Independence in 1947. The main focus of the economic…

5 months ago