प्रसाद जी छायावादी कवि हैं । उनके काव्य में छायावादी काव्यशिल्प का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। उनकी काव्य-भाषा में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(1) संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दावली का प्रयोग – इनके काव्य में संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दावली की अधिकता है तथा शब्दों का सुन्दर
समायोजन है । उदाहरण के लिए-
इस गम्भीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन – इतिहास |
तथा
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की ।
(2) अलंकारों का सुन्दर प्रयोग – अलंकारों का प्रयोग करके उन्होंने भाषा – काव्य को अलंकृत बना दिया है। उन्होंने अपनी कविता में
अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश तथा मानवीकरण अलंकार का अधिक प्रयोग किया है-
(i) मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी ।
(ii) आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(iii) अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में ।
(3) लयात्मकता एवं छंदबद्धता – कवि जयशंकर प्रसाद को काव्य के तत्वों का अच्छा ज्ञान था । उनकी कविता में नाद, लय, छंद एवं तुक का सटीक प्रयोग दिखाई देता है
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं ।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
(4) सांकेतिकता एवं प्रतीकात्मकता – प्रसाद के काव्य में जगह-जगह प्रतीकात्मकता के दर्शन होते हैं तुम सुनकर सुख पाओगे देखोगे यह गागर रीती। असफल जीवन का प्रतीक है – रीती गागर । कवि ने रीती गागर के माध्यम से अपने जीवन की रिक्तता को दर्शाया है । ‘आत्मकथ्य’ में कवि ने अनेक प्रतीकों का प्रयोग किया है – मधुप, मुरझाकर गिरी पत्तियाँ, अनन्त नीलिमा, उज्ज्वल गाथा आदि ।
(5) चमत्कार पूर्ण भाषा-शैली – कवि ने ‘आत्मकथ्य’ में प्रश्न- शैली, मानवीकरण भाषा-शैली तथा आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग करके
भाषा-काव्य में चमत्कार भर दिया है।
(i) सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की ?
(ii) अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं ।
(iii) क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ।
(6) प्राकृतिक उपमानों का प्रयोग – प्रसाद जी ने अपनी कविता में प्राकृतिक उपमानों का भरपूर प्रयोग किया है। जिससे उनकी कविता यथार्थ के धरातल पर खरी उतरती है
(i) इस गम्भीर अनन्त-नीलिमा में असंख्य जीवन – इतिहास ।
(ii) उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ मधुर चाँदनी रातों की ।
(iii) अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में ।