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jivtaraankit.
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- October 9, 2021 at 8:45 am
कोशिका के ऐसा समूह को जिसकी कोशिकाएं उत्पत्ति, संरचना और कार्य की दृष्टि से समान होती है ऊतक कह्ते है।ऊतक कोशिकाएं संरचना एवं कार्य में भिन्न हो सकती है लेकिन उत्पत्ति में सदैव समान होती है। ऊतक शब्द को सर्वप्रथम बाइलॉट ने दिया। ऊतकों का अध्ययन हिस्टोलॉजी कहलाता है।
कोशिका समस्त जीवधारियों के शरीर की कार्यात्मक तथा संरचनात्मक इकाई होती है। सभी विकसित जीवों के शरीर में कोशिकाओं की संख्या असंख्य होती है। शरीर की इकाई होते हुए भी कोशिकाओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से शरीर के अंगों को निर्मित करने में योगदान प्रदान नहीं किया जाता है।
अंगों के निर्माण हेतु एक अन्य विशिष्ट संरचना की आवश्यकता होती है, जिसका निर्माण शरीर में कोशिकाओं के समूहीकरण द्वारा होता है। इस संरचना को ऊतक कहा जाता है। इससे स्पष्ट हो होता है कि कोशिकाओं द्वारा ऊतकों का निर्माण होता है।
रचना तथा कार्यों में भिन्न-भिन्न प्रकार के ऊतक समस्त प्राणियों के शरीर में पाए जाते हैं। शरीर के अंग ऊतकों द्वारा ही निर्मित होते हैं। इस प्रकार ऊतकों की शरीर में विशेष भूमिका होती है साथ ही ये विशिष्ट महत्वपूर्ण होते हैं।
(1) ऊतकों के प्रकार (Kinds of Tissues)-अग्र चार प्रकार के ऊतक मानव शरीर में पाए जाते हैं
1. उपकला ऊतक (Epithelial tissue),
2. संयोजी ऊतक (Connective tissue),
3. पेशी ऊतक (Muscular tissue)
4. तन्त्रिका ऊतक (Nerve tissue)
1 उपकला ऊतक (Epithelial Tissue)-सदैव महीन परतों के रूप में उपकला ऊतक पाए जाते हैं। शरीर के अंगों पर इन परतों द्वारा बाहरी एवं भीतरी रक्षात्मक आवरण बनाया जाता है। ये निम्न प्रकार के होते हैं
(A) सामान्य उपकला (Simple Epithelium)- केवल एक स्तर के रूप में ये होते हैं। ये कोशिकाओं के आकार तथा कार्य के आधार पर निम्न प्रकार के होते हैं(i) शल्की उपकला (Squamous Epithelium)रक्षात्मक इनका प्रमुख कार्य होता है। ऐसे ऊतकों की कोशिकाएँ चौड़ी, चपटी एवं परस्पर फर्श के टाइल्स की भाँति सटी रहती हैं।
(ii) घनाकार उपकला (Cuboidal Epithelium)-ऐसे ऊतकों की कोशिकाएँ घनाकार हुआ करती हैं। मूत्र व जनन नलिकाओं, जनन ग्रन्थियों आदि में ये ऊतक विद्यमान होते हैं। इस ऊतक को जनन ग्रन्थियों में जनन उपकला कहा जाता है।
(iii) रोमाभि उपकला (Ciliated Epithelium)अनेक रोमाभिकाएँ (cilia), ऐसे ऊतकों की प्रत्येक कोशिका के स्वतन्त्र किनारे पर लगी रहती हैं। श्वासनली, अण्डवाहिनी, मूत्रवाहिनी आदि के भीतरी स्तर का निर्माण इन ऊतकों द्वारा किया जाता है।
(iv) स्तम्भी उपकला (Columnar Epithelium)-ऊतकों की कोशिकाएँ लम्बी, बेलनाकार या स्तम्भाकार एवं परस्पर सटी रहती हैं। इनके द्वारा उन तरल खाद्य पदार्थों का अवशोषण किया जाता है जो पचे हुए होते हैं।
(v) ग्रन्थिल उपकला (Glandular Epithelium)-जो विभिन्न प्रकार की ग्रन्थियाँ शरीर में स्थित होती हैं। वे उपकला ऊतकों से निर्मित होती हैं। कोशिकाओं द्वारा इनमें किसी-न-किसी तरल पदार्थ का स्रावण किया जाता है।
(vi) तन्त्रिका-संवेदी उपकला (Neuro-sensory Epithelium)-इस प्रकार के ऊतकों की कोशिकाओं के स्वतन्त्र सिरे पर संवेदी रोम होते हैं। संवेदनाओं को ग्रहण करने का कार्य संवेदो रोम द्वारा किया जाता है। अन्त:कर्ण की उपकला, प्राण अंगों की श्लेष्मिक कला एवं नेत्रों की रेटिना में ये स्थित होते हैं।
(B) स्तरित उपकला (Stratified Epithelium)– यह अनेक स्तरों से निर्मित हुआ करती है। जो कोशिकाएँ सबसे भीतरी स्तर की होती हैं उनके द्वारा विभाजित होकर नवीन स्तर का निर्माण किया जाता रहता है। यह स्तर जनक स्तर (germinative layer) कहलाता है। जो स्तर सबसे बाहरी होता है वह घर्षण के कारण मृत होकर भिन्न होता रहता है। जैसे-त्वचा की एपिडर्मिस, ग्रासनाल, नासा गुहाओं, योनि आदि की उपकला।
2.संयोजी ऊतक (Connective Tissues)– शरीर में इस प्रकार के सबसे अधिक ऊतक होते हैं। समस्त अंगों के
अन्दर एवं दो अंगों के बीच ये उपस्थित होते हैं। अंगों को सहायता देना, अंगों को ढककर इनकी रक्षा करना एवं इनको परस्पर बाँधे रखना इन ऊतकों का प्रमुख कार्य होता है। एक आधारभूत पदार्थ या मैट्रिक्स (matrix) इन ऊतकों को कोशिकाओं द्वारा स्रावित होता रहता है तथा स्वयं भी इसमें फैंसी रहती हैं। ये ऊतक निम्न प्रकार के होते हैं
(A) सामान्य संयोजी ऊतक (General Connective Tissues)-मैट्रिक्स तरल या अर्द्ध तरल जैसा सदृश चिपचिपा पदार्थं इस प्रकार के ऊतकों में भरा रहता है। जिन कोशिकाओं तथा तन्तुओं द्वारा मैट्रिक्स का निर्माण होता है. उनके आधार पर ये ऊतक निम्न प्रकार के होते
(i) अन्तराली संयोजी ऊतक (Areolar Connective Tissue|-शरीर के समस्त आन्तरिक अंगों के चारों तरफ ये ऊतक उपस्थित हुआ करते हैं। इनका मैट्रिक्स जैलो सदृश पारदर्शक एवं चिपचिपा होता है। श्वेत कोलेजन तन्तु (white collagen fibers) एवं पीले इलास्टिन तन्तु (vellow elastin fibers) अर्थात् दो प्रकार के तन्तु इनमें पाए जाते हैं। लहरदार गुच्छों में श्वेत कोलेजन तन्तु होते हैं।
यद्यपि जो पीले इलास्टिन तन्तु होते हैं, वे इधर-उधर अकेले ही बिखरे रहा करते हैं। तन्तुओं के अतिरिक्त मैट्रिक्स में कई प्रकार की कोशिकाएँ भी पाई जाती हैं। यथा-फाइब्रोब्लास्ट, प्लाज्मा कोशिकाएँ, हिस्टियोसाइट्स, मास्ट कोशिकाएँ आदि। इसके अतिरिक्त तन्त्रिका तन्तु, रक्त एवं लसीका कोशिकाएँ भी मैट्रिक्स में निहित होती हैं।
(ii) वर्णक संयोजी ऊतक (Pigmented Connee tive Tissue)-त्वचा की डर्मिस में ये ऊतक मिला करते हैं। इनमें वर्णक कोशिकाएँ पाई जाती हैं, जिनको क्रोमैटोफोर (chromatophore) कहा जाता है। अनेक रंगीन कणिकाएँ इनके कोशिकाद्रव्य में पाई जाती हैं।
इलास्टिन तन्तु एवं लिम्फोसाइट्स भी वर्णक संयोजी ऊतकों में पाए जाते हैं। नेत्र की आइरिस (iris) एवं कोरॉइड (choroid) परत में भी यह विद्यमान होते हैं।
(iii) वसामय संयोजी ऊतक (Adipose Connec_tive Tissues)-त्वचा के नीचे से ऊतक उपस्थित होते हैं। पीत अस्थि मज्जा (yellow bone marrow) के चारों तरफ एवं रक्त वाहिनियों के समीप भो ये उपस्थित होते हैं। बड़ी-बड़ी गोल वसा कोशिकाएँ इनमें पाई जाती हैं, जोकि वसा गोलकों से भरी होती हैं।
(iv) जालमय संयोजी ऊतक (Reticular Connective Tissues)-‘मैट्रिक्स लसिका’ (lymph) इसका आधारभूत पदार्थ होता है। अत्यन्त शाखामय जालिका (reticular) तन्तुओं का घना जाल लसिका के अन्तर्गत फैला होता है। अनेक विशाल शाखामय असममित कोशिकाएं मैट्रिक्स के अन्तर्गत पाई जाती हैं,
जिनका आकार नियमित नहीं होता है। जीवाणुभक्षण की क्षमता भी इनमें पाई जाती है। थाइमस ग्रन्थि, प्लीहा, लसिका ग्रन्थियों, टॉन्सिल्स आदि में ये ऊतक पाए जाते हैं।
(B) तन्तुमय संयोजी ऊतक (Fibrous Connective Tissue)-मैट्रिक्स की मात्रा की इसमें कमी होती है तथा तन्तुओं की मात्रा की अत्यन्त अधिकता पाई जाती है। तन्तु दो प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं
(i) श्वेत कोलैजन तन्तु (White Collagen Fibers) की मात्रा की मैट्रिक्स में अधिकता होने पर इसको श्वेत रेशेदार संयोजी ऊतक कहा जाता है। इनके द्वारा दृढ़ता प्रदान की जाती है। जो कण्डरा (tendon) श्वेत पेशियों को अस्थियों से सम्बद्ध करती है
इसका निर्माण रेशेदार संयोजी ऊतक से होता है। तन्तुओं के अतिरिक्त इसके मैट्रिक्स के अन्तर्गत फाइब्रोब्लास्ट कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
(ii) यदि पीले, लचीले, शाखामय तन्तु मैट्रिक्स में पाए जाते हों तो इसको पीत रेशेदार संयोजी ऊतक कहा जाता है। उदाहरणार्थ-स्नायु (ligament)। इनके द्वारा अस्थियों को परस्पर सम्बद्ध किया जाता है।
(C) कंकाल संयोजी ऊतक (Skeletal Connective Tissue)-समस्त कशेरुकी जन्तुओं में कंकाल ऊतक द्वारा कंकाल का निर्माण किया जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं
(i) उपास्थि (Cartilage)-अस्थि की अपेक्षा उपास्थि की मात्रा उच्च श्रेणी के कशेरुकी जन्तुओं में कम पाई जाती है। अर्द्ध ठोस प्रोटीन से उपास्थि का मैट्रिक्स और कॉण्डूिन नामक कोशिकाएँ निर्मित होती है। तरल पदार्थ से भरी हुई बहुत-सी छोटी-छोटी गर्तिकाएँ इसमें पाई जाती हैं।
काण्डियोब्लास्ट नामक कोशिका प्रत्येक गर्तिका में पाई जाती है। पेरीकाण्डियम (perichondrium) नामक झिल्ली उपास्थि को ढके रहती है। रक्त वाहिनियों द्वारा इसके अन्तर्गत प्रवेश करके उपास्थि को पोषक पदार्थ प्रदान किया जाता है। उपास्थि द्वारा ही नाक, कान के पिन्ना आदि को सहायता प्रदान की जाती है।
(ii) अस्थि (Bone)-ओसीन (ossein) नामक प्रोटीन द्वारा अस्थि के मैट्रिक्स का निर्माण होता है। कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के लवण इसमें संचित होते हैं, जिस कारण यह कठोर हो जाया करती हैं। अस्थि की गुहा मज्जा गुहा कहलाती है। वसामय ऊतक इसमें भरा होता है, जिसको अस्थि मज्जा (bone marrow) कहा जाता है।
अस्थि के जो बीच का भाग होता है, वहाँ पीली अस्थि मज्जा होती है एवं सिरों पर लाल अस्थि मज्जा (red bone marrow) पाई जाती है। लाल रुधिर कणिकाओं का निर्माण लाल अस्थि मज्जा में होता है।
अन्तराच्छद (endosteum) नामक स्तर मज्जा गुहा को घेरे रहता है। ओसीन का स्रावण इसकी अस्थि कोशिकाओं (osteoblasts) द्वारा होता है, जिसका एकत्रीकरण संकेन्द्रीय धारियों के रूप में होता रहता है तथा मैट्रिक्स का निर्माण होता है। यह धारियौं पटलिकाएँ कहलाती हैं। इनमें गर्तिकाएँ पाई जाती हैं।
गर्तिकाओं में अस्थि कोशिका स्थित होती है। अस्थि का आवरण अस्थिच्छद (periosteum) कहलाता है, जिसमें अनेक बारीक तन्त्रिकाएँ तथा रुधिर वाहिनियाँ उपस्थित होती हैं। रुधिर वाहिनियों के प्रवेश करने के लिए मैट्रिक्स के अन्तर्गत नलिकाओं का निर्माण हो जाया करता है
जिनके हैवसियन नलिकाएँ (Haversian Canals) कहा जाता है। 4-20 संकेन्द्रीय पलिकाएँ प्रत्येक हैवसियन नलिका को घेरे रहती हैं। यह पूरी रचना हैवर्सियन तन्त्र (Haversian System) कहलाती है।
(D) तरल संयोजी ऊतक (Fluid Connective Tissue)-तरल संयोजी ऊतकों के उदाहरण रुधिर एवं लसिका हैं। इसमें तरल अवस्था में मैट्रिक्स पाए जाते हैं तथा इसको प्लाज्मा (plasma) कहा जाता है। यह सदैव वाहिनियों तथा कोशिकाओं के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ बहता है।
तन्तुओं का इन ऊतकों में अभाव पाया जाता है। प्लाज्मा का कोशिकाओं द्वारा स्राव नहीं किया जाता है। कई प्रकार की कोशिकाएँ इनमें पाई जाती हैं। जो कोशिकाएँ प्लाज्मा में पाई जाती हैं, उन्हें रुधिराणु कहा जाता है। ये तीन प्रकार की होती हैं-लाल रुधिराणु, श्वेत रुधिराणु एवं रक्त प्लेटलेट्स।
3. पेशी ऊतक (Muscular Tissue)-पेशी ऊतकों का निर्माण पेशी कोशिकाओं के समूहीकरण द्वारा होता है। इन्हीं ऊतकों द्वारा शरीर की माँसपेशियाँ निर्मित होती हैं। सम्पूर्ण शरीर में पेशी ऊतक पाए जाते हैं। त्वचा के नीचे एवं अस्थियों के ऊपर ये उपस्थित होते हैं।
विभिन्न शारीरिक क्रियाओं तथा गतियों को मांसपेशियों के माध्यम से पेशी ऊतकों द्वारा ही सम्पन्न कराया जाता है। पेशी ऊतक निम्न तीन प्रकार के होते हैं
(A) रेखित या ऐच्छिक पेशी ऊतक (Striped or Voluntary Museular Tissue)-उन ऊतकों को रेखित या ऐच्छिक ऊतक कहा जाता है, जिनके द्वारा एक विशिष्ट प्रकार की मांसपेशियाँ निर्मित होती हैं। ऐसे पेशी ऊतक अशाखित, बेलनाकार तथा लम्बे होते हैं, जो गति करने वाले शरीर के समस्त भागों में पाए जाते हैं।
(B) अरेखित या अनैच्छिक पेशी ऊतक (Unstriped or Involuntary Muscular Tissue)-अरेखित या अनैच्छिक पेशी ऊतक द्वितीय प्रकार के पेशी ऊतकों को कहा जाता है। शरीर के उन भागों या अंगों में इस प्रकार के पेशी ऊतक पाए जाते हैं जिनकी स्वत: ही गति या क्रिया होती रहती है। मुख्यतः आहार नाल, रक्त वाहिनियों की भित्ति, मूत्राशय, पित्ताशय एवं जनन वाहिनियों में अनैच्छिक पेशी ऊतक स्थित होते हैं।
(C) हृद पेशी ऊतक (Cardiac Muscular Tissue)-हृद पेशी ऊतक तृतीय प्रकार के पेशी ऊतकों को कहा जाता है। इनके द्वारा केवल हृदय की मांसपेशियों का निर्माण किया जाता है।
4. तन्त्रिका ऊतक (Nerve Tissue)- विभिन्न प्रकार के ऊतकों के मध्य ये ऊतक पाए जाते हैं। इनकी कोशिकाओं को तन्त्रिका कोशिकाएँ या न्यूरॉन्स (neurons) कहा जाता है। भ्रूणावस्था में ही ये कोशिकाएँ निर्मित हो जाया करती हैं। यदि ये एक बार नष्ट हो जाएँ तो पुन: इनका निर्माण नहीं होता है अर्थात् इनकापुनरुद्भवन
असम्भव है। तन्त्रिका कोशिकाओं के द्वारा मस्तिष्क, सुषुम्ना या मेरुरज्जु आदि का निर्माण होता है। इन कोशिकाओं द्वारा मिलकर तन्त्रिका तन्तु का निर्माण किया जाता है। इन कोशिकाओं का आकार व संरचना विशिष्ट होती है। एक कोशिकाकाय (cyton) प्रत्येक तन्त्रिका कोष में पाया जाता है, इसमें केन्द्रक (nucleus) एवं निसिल कण पाए जाते हैं।
अनेक छोटी-बड़ी शाखाएँ कोशिका में पाई जाती हैं। इनमें से एक बड़ी शाखा द्वारा तन्त्रिकाक्ष (axon) का निर्माण किया जाता है, जिनके द्वारा वास्तव में तन्त्रिका तन्तु निर्मित किया जाता है। जो छोटी शाखाएँ शेष रह जाती हैं, उन्हें वृक्षिकाएँ (dendrons) कहा जाता है।
अन्य तन्त्रिका कोशिका की वृक्षिकाओं (dendrites) के साथ एक तन्त्रिका कोशिका की तन्त्रिकाक्ष द्वारा युग्मानुबन्ध (synapses) बनाया जाता है। संवेदनाओं को शरीर में एक साथ ग्रहण कर दूसरे स्थान तक लाने ले जाने अर्थात् ग्रहण एवं संचालित करने का कार्य इन्हीं ऊतकों द्वारा किया जाता है।
ऊतकों का शरीर में महत्व (Importance of Tissues in Body)-ऊतकों का शरीर में महत्व इस प्रकार है
(i) कोशिकाओं का आकार अत्यधिक सूक्ष्म होता है। शरीर की आवश्यकतानुसार उनके द्वारा कार्य नहीं किया जा सकता है। ऊतक ही इन कार्यों को सफतापूर्वक सम्पन्न कर पाते हैं।
(ii) ऊतक तन्त्र का निर्माण ऊतकों से मिलकर एवं अंग का निर्माण ऊतक तन्त्र के मिलने से होता है। अंगों द्वारा विशिष्ट कार्य को सम्पन्न किया जाता है।
(iii) कुछ ऊतकों द्वारा शरीर की बाह्य वातावरण से सुरक्षा की जाती है अथवा सुरक्षा करने में सहयोग प्रदान किया जाता है। इस प्रकार शरीर पर उपकला ऊतक द्वारा विशिष्ट आवरण बनाया जाता है।
मस्तिष्क को बाहरी आघातों की सूचना तन्त्रिका ऊतक से प्राप्त होती है। साथ ही उसके नियमन कार्य के रूप में उन अंगों को कार्यवाही करने हेतु प्रेरित किया जाता है जो सुरक्षा करने के योग्य होते हैं।
(iv) श्रम का विभाजन ऊतकों की उपस्थिति के कारण होता है अर्थात् विभिन्न ऊतकों द्वारा अपने-अपने विशिष्ट कार्यों को सम्पादित किया जाता है।
(v) कुछ ऊतकों द्वारा विभिन्न अंगों के बीच संयोजन का कार्य किया जाता है। जैसे-विभिन्न प्रकार के पदार्थों को रुधिर एवं लसिका द्वारा एक अंग से दूसरे अंग में लाने तथा ले जाने का कार्य किया जाता है।
(vi) कुछ ऊतक शरीर के विशिष्ट स्वरूप का निर्माण करने में सहायक होते हैं। जैसे-कंकालीय ऊतक (skeletal tissues), पेशी ऊतक (muscular tissues) आदि।
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