ब्रिटिश शासन के फलस्वरूप भारतीय राजनीति और सामाजिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बदलाव आए, जिसका परिणाम लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित राजनीतिक दलों और शिक्षित मध्यम वर्ग के बुद्धिजीवियों द्वारा स्थापित राष्ट्रीय आंदोलन का उदय होना।
आधुनिक शिक्षा का प्रसार, भारत का प्रशासनिक एकीकरण एवं भौतिक एकीकरण, जिसने विभिन्न क्षेत्रों के राष्ट्रवादियों को एक साथ आने और एक साथ काम करने में सहता की।
उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में राजनीतिक संघों में अमीर और कुलीन तत्वों का वर्चस्व था, चरित्र में वे स्थानीय थे और संकीर्ण स्वार्थों पर केंद्रित थे। पुरानी अभिजात वर्ग संरक्षण और सामंतवाद के सिद्धांत पर काम करते थे।
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना आई और एक संगठित राष्ट्रीय आंदोलन की नींव पड़ी। इस अवधि के दौरान, आधुनिक भारतीय बुद्धिजीवियों ने राजनीतिक शिक्षा का प्रसार करने और देश में राजनीतिक कार्य शुरू करने के लिए राजनीतिक संगठनों का निर्माण किया।
ब्रिटिशों द्वारा लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली का पालन किया जाता था। इस काल में विधायी निकायों की शुरुआत हुई, हालांकि शक्ति का मुख्य केंद्र ब्रिटेन बना रहा। इन सभी नए राजनीतिक संस्थानों में शिक्षित मध्यम वर्ग द्वारा नेतृत्व किया गया एवं नए राजनीतिक दलों का उदय हुआ।
उन्होंने इन संस्थानों के माध्यम से कृषि सुधार, शिक्षा सुधार, प्रशासनिक सुधार आदि के लिए काम किया तथा भारतीय हितों को आगे बढ़ाया।