उत्तराखण्ड के कुछ गाँव वालों ने वन विभाग से खेती-बाडी के औजार बनाने के लिए अंगु के पेड़ काटने की अनुमति माँगी।
वन विभाग ने अनुमति देने से इन्कार कर दिया, लेकिन कुछ दिनों के बाद वन विभाग ने खेल सामग्री के एक निर्माता को जमीन का यही टुकड़ा व्यावसायिक प्रयोग के लिए आबंटित कर दिया।
इससे गाँव वालों में रोष पैदा हुआ और उन्होंने सरकार के इस कदम का विरोध किया।
यह विरोध आन्दोलन शीघ्र ही उत्तराखण्ड के अन्य जिलों में फैल गया। यह प्रश्न क्षेत्र की पारिस्थितिकी और उसके आर्थिक शोषण से जुड़ गया।