भारत में सबसे पहले स्वामी दयानन्द सरस्वती ने हिंदी को राष्ट्रभाषा माना था |
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 ई. में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रूप में पुनः स्थापना करना था।
स्वामी जी के आर्थिक विचारों में स्वदेशी का बहुत महत्व था।
राजनैतिक क्षेत्र में वह कहते थे कि बुरे से बुरा देशी राज्य, अच्छे से अच्छे विदेशी राज्य से अच्छा है।
उनकी इस शिक्षा के फलस्वरूप उनके अनुयायियों में स्वदेशी और देश भक्ति की भावना कूट-कूट कर भर गयी।
भारत के सामाजिक इतिहास में वह पहले सुधारक थे, जिन्होंने शूद्र तथा स्त्री को वेद पढ़ने तथा ऊंची शिक्षा प्राप्त करने, यज्ञोपवीत धारण करने तथा अन्य सभी प्रकार से ऊँची जाति तथा पुरुषों के बराबर के अधिकार प्राप्त करने के लिए आंदोलन किया।
इन्हें भारत का मार्टिन लूथर किंग भी कहा जाता है।
इनके द्वारा नारा दिया गया कि भारत भारतीयों के लिए है।
सर्वप्रथम स्वराज शब्द का प्रयोग इनके द्वारा किया गया और इन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा माना इन्होंने सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना की थी।