ब्रिटिश सामंतवादी व्यवस्था का भारतीय समाज पर प्रभाव:-
“इस देश में ईसाई धर्मावलंबियों का आगमन एक ऐतिहासिक ही नहीं, बल्कि क्रांतिकारी घटना थी। क्रांतिकारी इस अर्थ में कि ये आए तो थे साम्राज्यवादी बनकर, पर लाए थे अपने साथ रेनेसाँ के मूल्य । अर्थात्, एक आधुनिक जीवन-पद्धति। इसलिए इनकी राजनीतिक व्यवस्था हो या सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था हो या शैक्षणिक, सबकी सब आधुनिक पद्धति पर संगठित और संचालित थीं। कालांतर में साम्राज्यवादी शासन द्वारा छोड़ी गई इसी व्यवस्था पर आधुनिक भारत की नींव पड़ी।”
अंग्रेज शासक अपने साथ नई औद्योगिकी, संस्थाएँ, ज्ञान, विश्वास और मूल्य लेकर आए थे। नई औद्योगिकी और संचार साधनों के कारण भारतीय आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था पर कई प्रकार के प्रभाव पड़े। ब्रिटिश शासन के भारत पर पड़ने वाले प्रभावों को रेखांकित करते हुए कार्ल मार्क्स ने कहा है, “हिंदुस्तान में एक के बाद एक तमाम गृहयुद्धों, आक्रमणों, क्रांतियों, विजयों, अकालों आदि का प्रभाव कितना ही जटिल, तीव्र और विनाशकारी क्यों न लगता हो, असलियत यही है कि इनका कोई गहरा असर नहीं पड़ा, जबकि इंग्लैंड ने भारतीय समाज के ढाँचे को पूरी तरह चकनाचूर कर दिया। ”
अंग्रेजों ने रूढ़ भारतीय सामंतवाद को साम्राज्यवाद में परिणत किया। भारतीय मनीषा को आधुनिकता से परिचित कराया। ब्रिटिश शासन के भारत पर पड़ने वाले प्रभावों के संबंध में गजानन माधव मुक्तिबोध ने ‘भारत, इतिहास और संस्कृति’ में कहा है, “अंग्रेजों ने जबरदस्ती ही क्यों न सही, भारत को नवयुग में प्रवेश कराया। ”
ब्रिटिश शासन के साथ आई ईसाई मिशनरियों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए प्रयासों से भारतीय समाज में एक नई चेतना का उदय हुआ। पाश्चात्य शिक्षा व्यवस्था ने परंपरागत गुरुकुलों और मदरसों के स्थान पर आधुनिक शिक्षा प्रणाली विकसित की। सभी जाति व वर्गों के लिए शिक्षा के द्वार खोल दिए गए। इस शिक्षा व्यवस्था के प्रचार एवं प्रसार से इस नवजागरण आंदोलन का सूत्रपात बंगाल में सन् 1828 में राजा राममोहन राय द्वारा ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना से हुआ । ‘