एक निश्चित क्षेत्र में, एक निश्चित समय में फसलों को इस क्रम में उगाना जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहे तथा अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो, फसल चक्र कहते हैं।
फसल चक्र क्यों उपयोगी है :-
* फसलों को अदल बदल कर बोने से मृदा में विकार की समस्या उत्पन्न नहीं होने पाती है।
* फसल चक्र में विभिन्न फसलें उगाने से फसल उत्पादन पर व्यय कम आता है।
* फसल चक्र में विभिन्न प्रकार की गहरी अथवा उथली जड़ों वाली फसलों को उगाने से मृदा के प्रत्येक स्तर पर पोषक तत्वों की मात्रा संतुलित बनी रहती है।
* फसल चक्र में विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाने से कुल उपज में वृद्धि हो जाती है।
* विभिन्न प्रकार की दलहनी फसलों का फसल चक्र में समावेश करने से मृदा की उर्वरा शक्ति का हृास नहीं होने पाता जिससे मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा सन्तुलित बनी रहती है।
* मृदा में लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रियाशीलता से मृदा की भौतिक तथा रासायनिक दशा में सुधार हो जाता है।
* मृदा में कार्बनिक पदार्थ तथा कार्बन-नत्रजन अनुपात में वृद्धि हो जाती है।
* फार्म पर उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग होता रहता है।
* फसल चक्र में विभिन्न फसलों का समावेश करने से खरपतवारों की संख्या में कमी होती रहती है। परती भूमि छोड़ने पर खरपतवारों का प्रकोप बढ़ जाता है।
* फसलों पर कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप कम होता है।
* मृदा को जल तथा वायुक्षरण से बचाया जा सकता है।
* शीघ्र पकने वाली फसलों को उगाने से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
* कृषकों के आर्थिक स्तर में सुधार हो जाता है।
* बाजार की माँग के अनुसार फसल उत्पाद की पूर्ति सुनिश्चत की जा सकती है।
* सीमित साधनों जैसे खाद, सिंचाई, श्रम आदि के कम होने पर भी फसलें उगाई जा सकती
* विभिन्न फसलें उगाये जाने से घरेलू आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है।
* क्षारीय तथा अम्लीय भूमियों में सहिष्णु फसलें उगाने से मृदा का सुधार कर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।