पारिस्थितिकी तंत्र के घटकों का वर्णन

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      पारिस्थितिकी तंत्र: – पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम रेटर ने वर्ष 1865 में किया था।

      वर्ष 1869 में प्राणि विज्ञान शास्त्री अर्नेस्ट हैकेल ने पारिस्थितिकी (Ecology) शब्द का प्रयोग Oikologie के नाम से किया तथा इसकी विस्तृत व्याख्या की।

      हैकल के अनुसार, वातावरण तथा जीव समुदाय के मध्य सम्बन्धों के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं। ए.जी. टांसले ने सर्वप्रथम पारिस्थितिकी तंत्र की संकल्पना वर्ष 1935 में प्रस्तुत की।

      पारिस्थितिकी तंत्र एक प्राकृतिक इकाई है, जिसमें एक क्षेत्र-विशेष के सभी जीवधारी अर्थात् पेड़-पौधे, जानवर और सूक्ष्म जीव शामिल हैं जो कि अपने अजैव पर्यावरण के साथ अंत:क्रिया करके एक सम्पूर्ण जैविक इकाई को बनाते हैं।

      पारिस्थितिकी तंत्र के घटकों संरचना दो प्रकार की होती है–  जैविक (Biotic) तथा अजैविक घटक (Biotic Component)|

      जैविक घटक इनको तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है

      1. उत्पादक-वे सभी जीव, जो साधारण अकार्बनिक (Inorganic) पदार्थों को प्राप्त कर जटिल पदार्थों का संश्लेषण कर लेते हैं अर्थात् वे अकार्बनिक पदार्थों के सहयोग से स्वयं के भोजन का निर्माण करते हैं, ‘उत्पादक’ (Producer) कहलाते हैं।

      ये सूर्य से ऊर्जा प्राप्त कर प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की प्रक्रिया द्वारा अकार्बनिक पदार्थों तथा जल और कार्बन डाई-ऑक्साइड का प्रयोग भोजन बनाने के लिए करते हैं, जिसका उदाहरण हरे पौधे हैं।

      2. उपभोक्ता-जो स्वयं अपने लिए भोजन पैदा नहीं कर सकते तथा भोजन हेतु अन्य अवयवों (Ingredients) पर निर्भर करते हैं, ‘उपभोक्ता’ (Consumers) कहलाते हैं। पशु इसी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। उपभोक्ताओं को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता है

      प्राथमिक उपभोक्ता– इसके तहत वे जीव आते हैं, जो हरे पौध या उन्हीं के किसी भाग को खाते हैं, जैसे-गाय, भैंस, हिरण, बकरी आदि।

      द्वितीयक उपभोक्ता- ये प्रायः मांसाहारी (Carnivarous) जंतु होते हैं, जो प्राथमिक उपभोक्ता को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं, जैसे-मेंढक, मछली, बिल्ली, लोमड़ी।

      तृतीयक उपभोक्ता-ये वे उपभोक्ता हैं, जो द्वितीय श्रेणी के  उपभोक्ताओं को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं, जैसे-सर्प, चिड़िया आदि।

      उच्च उपभोक्ता- ये शीर्ष उपभोक्ता होते हैं। ये अन्य श्रेणी के उपभोक्ताओं को खाते हैं, परंतु इनको कोई नहीं खाता, जैसे-शेर,
      बाज आदि।

      3. अपघटक (Decomposers) –अपघटक (Decomposers) को ‘विघटनकर्ता‘ भी कहा जाता है। वे अवयव, जो मृत अवयवों को साधारण अजैविक घटकों में विघटित कर देते हैं तथा इस प्रक्रिया से अपनी ऊर्जा  प्राप्त करते हैं, ‘अपघटक‘ कहलाते हैं, जैसे-फफूंद, जीवाणु
      आदि।

      अजैविक घटक अजैविक घटक को तीन भागों में बाँटा जाता है

      1. कार्बनिक पदार्थ-इसके अंतर्गत मृत पौधों एवं जंतुओं के कार्बनिक यौगिक (Organic Compounds), जैसे-प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा (Fat) और उनके अपघटन द्वारा उत्पादित पदार्थ, जैसे-यूरिया व ह्यूमस
      आदि आते हैं।

      2. अकार्बनिक पदार्थ-अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic Compound) के अंतर्गत जल, विभिन्न प्रकार के लवण, जैसे-कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम और नाइटोजन आदि तथा गैसें, जैसे-ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाई-ऑक्साइड, हाइड्रोजन तथा अमोनिया आदि सम्मिलित हैं।

      3. भौतिक तत्व – भौतिक तत्व (Physical Elements) इसमें सूर्य का प्रकाश, तापक्रम, वर्षा आदि सम्मिलित हैं।

      पारिस्थितिकी तंत्र का कार्यात्मक स्वरूप- पारिस्थितिकी तंत्र सदैव क्रियाशील रहता है। कार्यात्मक स्वरूप के अंतर्गत ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow) एवं पोषक तत्वों का प्रवाह सम्मिलित है, जो सामूहिक रूप में प्रत्येक तंत्र को परिचालित करते हैं।

      यह संपूर्ण क्रिया एक चक्र के रूप में चलती है, जिसे क्रमश: ऊर्जा प्रवाह, एवं जैव भू-रासायनिक चक्र’ (Bio-geochemical cycle) के नाम से जाना जाता है।

       

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