सूक्ष्म जीवों द्वारा सम्पादित कार्बनिक यौगिकों के धीरे-धीरे अपघटित होने की क्रिया को
किण्वन कहते हैं और सूक्ष्म जीव को किण्व (Ferments) कहते हैं।
खमीर एक किण्वन (Fermentation) है और इसके द्वारा सम्पादित शर्करा युक्त पदार्थों के अपघटन की क्रिया किण्वन (Fermentation) कहलाती है।
इसी प्रकार दूध तथा गीले आटे का खट्टा होना, वनस्पति तथा जीव पदार्थों का सड़ना, गन्ने के रस से सिरका बनाना आदि किण्वन क्रिया के उदाहरण हैं।
किण्वन की क्रिया पूरी करने के लिए आवश्यक है कि यीस्ट में लाभदायक सूक्ष्म जीवों की वृद्धि तेजी से हो।
किण्वन की क्रिया कुछ कारकों पर निर्भर करती है जो निम्न हैं –
1. तापमान :- भोजन के स्रावण के अलावा यीस्ट की वृद्धि के लिए एक उचित तापमान की भी आवश्यकता होती है। फ्रिज के तापमान पर वृद्धि रुक जाती है या कम हो जाती है। 40.5°C तापक्रम के ऊपर यीस्ट नष्ट होने लगता है तथा 60°C पर पूर्णतया नष्ट हो जाता है। यीस्ट की वृद्धि के लिए 80°C से 90°C तापक्रम ठीक रहता है।
2. आर्द्रता व नमी :- अच्छी किण्वन प्रक्रिया के लिए कुछ नमी की भी आवश्यकता होती है।
3. पोषक तत्व :- यीस्ट की वृद्धि व विकास के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है; जैसे कि विटामिन, खनिज लवण तथा नाइट्रोजन युक्त पदार्थ। बहुत अधिक नमक या शक्कर की उपस्थिति में यीस्ट में से पानी निकलने लगता है और उसकी क्रियाशीलता में कमी आने लगती है।
4. पी एच (pH) :- किण्वन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त pH 4 से 6 के मध्य है यद्यपि खमीरीकरण की क्रिया pH 2.7 से 7.4 के मध्य होती रहती है।
खमीरीकरण की प्रक्रिया से बनाये जाने वाले पदार्थ (Substances made from Fermentation Process) :- खमीरीकरण की क्रिया से बहुत-से पदार्थ बनाये जाते हैं, जैसे-डबल रोटी, इडली, डोसा, ढोकला इत्यादि ।