जब कोई कण एक निश्चित बिन्दु (fixed point) के चारों ओर एकसमान गति से इस प्रकार चलता है कि निश्चित बिन्दु से उसकी दूरी सदैव नियत रहे, तो कण का गति-पथ वृत्ताकार होता है। यह निश्चित बिन्दु कण के वृत्ताकार पथ का केन्द्र होता है तथा इस बिन्दु से कण की दूरी इस पथ की त्रिज्या होती है। कण की इस प्रकार की गति को एकसमान वृत्तीय गति (uniform circular motion) कहते हैं।
“यह गति द्विविमीय गति अर्थात् एक समतल में गति का उदाहरण है जिसमें त्वरण का परिमाण तो नियत रहता है परन्तु दिशा निरन्तर बदलती रहती है।”
उदाहरण-यदि हम एक रस्सी से किसी छोटे पत्थर को बाँधकर क्षैतिज तल में अथवा ऊर्ध्वाधर तल में घुमायें तो पत्थर की गति वृत्तीय गति होती है। बिजली के पंखे के ब्लेड की नोक की गति वृत्तीय गति होती है। पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा की गति लगभग वृत्तीय गति है।
चित्र में एक निश्चित बिन्दु 0 के चारों ओर एकसमान चाल v से चलते हुए कण की एकसमान वृत्तीय गति को दर्शाया गया है। इस प्रकार की गति में किसी क्षण t पर गतिमान कण की स्थिति (position) को कोण θ द्वारा व्यक्त किया जाता है, जहाँ θ वह कोण है जो उस क्षण कण को इसके वृत्ताकार पथ के केन्द्र 0 से मिलाने वाली रेखा (जैसे OP) किसी निश्चित रेखा (OP0 ) से बनाती है। यहाँ P0 वृत्ताकार पथ पर कण की प्रारम्भिक स्थिति है। वेक्टर रेखा OP त्रिज्य सदिश (radial vector) कहलाती है। एकसमान वृत्तीय गति में किसी क्षण कण के वेग की दिशा उस क्षण वृत्ताकार पथ पर कण की स्थिति बिन्दु पर खींची गयी स्पर्श रेखा की दिशा में होती है। क्योंकि स्पर्शी सदैव त्रिज्या पर लम्ब होती है, अत: एकसमान वृत्तीय गति में वेग वेक्टर v त्रिज्य वेक्टर r के सदैव लम्बवत् रहता है। जैसे-जैसे त्रिज्य वेक्टर की दिशा बदलती है, कण के वेग वेक्टर की दिशा भी बदलती रहती है, जबकि इसका परिमाण (कण की एकसमान चाला v) सदैव नियत रहता है।