हड़प्पा संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता इसका नगर नियोजन है। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई में पूर्व तथा पश्चिम में दो टीले मिलते हैं।
पूर्वी टीले पर नगर तथा पश्चिमी टीले पर दुर्ग स्थित था। दुर्ग में सम्भवतः शासक वर्ग के लोग रहते थे। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर निचले स्तर पर ईंटों के मकानों वाला नगर बसा था जहाँ सामान्य लोग रहते थे।
1. सड़क व्यवस्था – मोहनजोदड़ो की एक प्रमुख विशेषता उसकी सड़कें थीं। यहाँ की मुख्य सड़क 9.15 मीटर चौड़ी थी जिसे पुराविदों ने राजपथ कहा है।
अन्य सड़कों की चौड़ाई 2.75 से 3.66 मीटर तक थी। जाल पद्धति के आधार पर नगर नियोजन होने के कारण सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं जिनसे नगर कई खण्डों में विभक्त हो गया था। इस पद्धति को ‘ऑक्सफोर्ड सर्कस‘ का नाम दिया गया है।
2. जल निकास प्रणाली – मोहनजोदड़ो के नगर नियोजन की एक और प्रमुख विशेषता यहाँ की प्रभावशाली जल निकास प्रणाली थी। यहाँ के अधिकांश भवनों में निजी कुएँ व स्नानागार होते थे।
भवन के कमरों, रसोई, स्नानागार, शौचालय आदि सभी का पानी भवन की छोटी-छोटी नालियों से निकल कर गली की नाली में आता था। गली की नाली को मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी पक्की नालियों से जोड़ा गया था।
मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी नालियों को पत्थरों अथवा शिलाओं द्वारा ढंक दिया जाता था। नालियों की सफाई एवं कूड़ा-करकट को निकालने के लिए बीच-बीच में नर मोखे (मेन होल) भी बनाये गये थे। नालियों की इस प्रकार की अद्भुत विशेषता किसी अन्य समकालीन नगर में देखने को नहीं मिलती।
3. स्नानागार- मोहनजोदड़ो का एक प्रमुख सार्वजनिक स्थल है यहाँ के विशाल दुर्ग (54.86 x 33 मीटर) में स्थित विशाल स्नानागार। यह 39 फुट (11.88 मीटर) लम्बा, 23 फुट (7.01 मीटर) चौड़ा एवं 8 फुट (2.44 मीटर) गहरा है।
इसमें उतरने के लिए उत्तर एवं दक्षिण की ओर सीढ़ियाँ बनी हैं। स्नानागार का फर्श पक्की ईंटों से बना है।
सम्भवतः इस विशाल स्नानागार का – उपयोग आनुष्ठानिक स्नान’ हेतु होता होगा। स्नानागार से जल के निकास की भी व्यवस्था थी यह स्नानागार उन्नत तकनीक का परिचायक है।
मार्शल महोदय ने के इसी कारण इसे तत्कालीन विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण’ बताया है।
4. अन्नागार- मोहनजोदड़ो में ही 45.72 मीटर लम्बा एवं 22.86 मीटर चौड़ा एक अन्नागार मिला है। हड़प्पा के दुर्ग में भी 12 धान्य कोठार खोजे गये ।
हैं। ये दो कतारों में छ:-छ: की संख्या में हैं। ये धान्य कोठार ईंटों के चबूतरों पर ‘ हैं एवं प्रत्येक का आकार 15.23 मी. x 6.09 मी. है।
5. ईंटें- हड़प्पा संस्कृति के नगरों में पकाई हुई ईंटों का प्रयोग भी यहाँ के नगर नियोजन की एक अद्भुत विशेषता है। ईंटें चतुर्भुजाकार होती थीं। मोहनजोदड़ो । से प्राप्त सबसे बड़ी ईंट का आकार 51.43 x 26.27 x 6.35 सेमी. है।