इसमें कवि ने प्रगति की दोहरी और विरोधाभासी अवधारणाओं पर करारी चोट की है। कवि किसान के युगों से शोषण का शिकार होते जीवन के बारे में सोचकर बहुत आहत होता है।
देश को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात, स्वाधीन भारत में भी सरकारी तंत्र द्वारा किसानों की दयनीय दशा को केन्द्र में रखकर नीतियाँ नहीं बनाई गई।
इस कविता का उद्देश्य यही है कि किसान के अभावग्रस्त व आर्थिक दुश्चक्रों में फँसे जीवन की व्यक्तिगत, पारिवारिक दुःखों की परतें खुल सकें व समाज की उसके प्रति उपेक्षा परिलक्षित हो तथा समाज की विभाजित वर्गीय चेतना का आभास भी मिल सके जिसके कारण किसान का शोषण किया जाता रहा है।
कविता का मुख्य उद्देश्य यही है कि जिस किसान को ‘अन्नदाता‘ कहा जाता है और फिर भी वह समाज द्वारा शोषित किया जाता है, उसकी तरफ सरकार का व सामान्य जन का ध्यान जाए और उसकी आर्थिक, सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए सम्पूर्ण प्रयास किए जाएँ।