स्कूल के दिनों में देखे
हरिश्चंद्र नाटक ने बालक गांधी के मन पर सबसे ज्यादा प्रभाव डाला था।
नाटक देखकर गाँधी जी ने सत्य व अहिंसा का मार्ग अपनाया था।
गाँधी जी ने कहा था कि साधारणतः पाठशाला की पुस्तकों छोड़कर और कुछ पढ़ने का मुझे शौक नहीं था।
सबक याद करना चाहिए, उलाहना सहा नहीं जाता, शिक्षक को धोखा देना ठीक नहीं, इसलिए मैं पाठ याद करता था।
लेकिन मन अलसा जाता, इससे अक्सर सबक कच्चा रह जाता है ।
उस नाटक को देखते हुए मैं थकता ही न था। हरिशचन्द का आख्यान था, उसे बार-बार देखने की इच्छा होती थी।
हरिशचन्द के दुःख देखकर उसका स्मरण करके मैं खूब रोया हूं ।
आज मेरी बुद्धि समझती हैं कि हरिशचन्द कोई ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं था।
फिर भी मेरे विचार में हरिशचन्द और श्रवण आज भी जीवित हैं।