सुमति
मंगोलियन मूल के एक
बौद्ध भिक्षु थे जो तिब्बत के ग्रामीण समाज में पुरोहित की तरह सम्मान पाता था |
इस पाठ के लेखक राहुल जी ने प्राचीन बौद्ध ग्रंथों की खोज में कई यात्राएँ की थीं।
यह पाठ उनकी पहली तिब्बत यात्रा पर आधारित है।
यह यात्रा नेपाल के रास्ते सन 1929-30 में संपन्न हुई थी।
सुमति ने इस यात्रा में उनके सहयोगी और मार्गदर्शक का दायित्व निभाया था|
लेखक ने सुमति के साथ तिब्बत में जिस रास्ते से प्रवेश किया कभी वह वहाँ का प्रमुख व्यापारिक और सामरिक रास्ता हुआ करता था।
हिंदुस्तान और नेपाल की चीजें उसी रास्ते से पहुँचती थीं।
इसीलिए वहाँ चीनी किला और कई फ़ौजी चौकियाँ बनी हुई थीं।
इनमें से कुछ गिर चुकी थीं।
किले में कुछ किसान परिवार रहने लगे थे।
तिब्बत में औरतें परदा नहीं करतीं।
कोई भी अजनबी घर के भीतर तक जाकर उनसे अपनी सामग्री देकर चाय पकाने का आग्रह कर सकता है।
चाय में अपना सब सामान इस्तेमाल किया जा रहा है या नहीं, इसे देख सकता है और चाहे तो खुद पका सकता है।
लेखक भिखारी के भेष में था, फिर भी वहाँ सुमति के जान-पहचानवाले मिल जाने से ठहरने की अच्छी जगह मिल गई।