सामाजिक वानिकी : सामाजिक वानिकी शब्दावली का प्रयोग सबसे पहले 1976 के राष्ट्रीय कृषि आयोग ने किया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या के लिए जलावन लकड़ी, छोटी इमारती लकड़ी तथा छोटे-छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना।
पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों का प्रबन्ध तथा सुरक्षा एवं ऊसर भूमि पर वनारोपण।
इसके मुख्य रूप से तीन अंग हैं-
(क) शहरी वानिकी
(ख) ग्रामीण वानिकी तथा
(ग) फार्म वानिकी।
(i) शहरी वानिकी-शहर और उसके आस-पास निजी व सार्वजनिक भूमि (जैस हरित पट्टी, पार्क, सड़कों के साथ खाली पड़ी भूमि), औद्योगिक व व्यापारिक स्थलों पर वृक्ष लगाना तथा उनका प्रबन्धन करना शहरी वानिकी कहलाता है।
(ii) ग्रामीण वानिकी-ग्रामीण वानिकी में कृषि वानिकी तथा समुदाय वानिकी सम्मिलित है। कृषि वानिकी में कृषि कार्यों के साथ-साथ चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी तथा फलों का उत्पादन भी किया जाता है।
समुदाय वानिकी में ग्रामीण क्षेत्रों में पड़ी सार्वजनिक भूमि (जैसे चरागाह, मन्दिर भूमि, नहर के किनारे, सड़क के दोनों ओर, विद्यालय की खाली भूमि आदि) पर वृक्षारोपण कार्य करना सम्मिलित है।
(iii) फार्म वानिकी- फार्म वानिकी में किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्त्व वाले या दूसरे वृक्षों का रोपण करते हैं।
इसके अतिरिक्त कई तरह की भूमि जैसे खेतों की मेड़ें, चरागाह, घास स्थल, घर के समीप पड़ी खाली जमीन तथा पशुओं के बाड़ों में भी वृक्षों का रोपण किया जाना सम्मिलित है।
इस योजना का दूसरा उद्देश्य भूमिविहीन लोगों को वानिकीकरण से जोड़कर उन्हें वृक्षों का स्वामित्व लाभ प्रदान करना भी है।