सरोजिनी नायडू ने मेहर मुनीर नामक नाटक अंग्रेजी भाषा में लिखा था |
बारह वर्ष की आयु में उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान से पास की।
इसके बाद वे फिर अपने कविता प्रेम में जुट गईं और लगातार लिखने लगीं। तेरह वर्ष की आयु में उन्होंने तेरह सौ पंक्तियों की एक लंबी कविता लिखी- ‘ए लेडी ऑफ द लेक’।
इस कविता को लिखने में वे लगातार छह दिनों तक ऐसी उन्माद की अवस्था में जुटी रहीं कि उनकी तबीयत बुरी तरह से खराब हो गई।
डॉक्टर की सख्त हिदायत थी कि वह पूरी तरह से आराम करें और बिस्तर से नीचे पाँव तक न रखें।
परंतु सरोजिनी तो अपनी ही धुन में रहनेवाली थीं।
उन्होंने उसी अवस्था में अपनी उस लंबी कविता की काट-छाँट एवं साज-सँवार कर उसे पूरा किया।
जब वे ठीक होकर बिस्तर से उठीं तो उनके चेहरे पर अपने कार्य की पूर्णता से उपजा संतोष दमक रहा था।
उनके माता-पिता अपनी संतान की इस प्रतिभा पर फूले नहीं समा रहे थे।
डॉ. अघोरनाथ ने सरोजिनी की अब तक की सभी काव्य रचनाओं को ‘द पोयम्स’ नाम से प्रकाशित करवा दिया।
इसके बाद सरोजिनी ने उत्साहित होकर दो हजार पंक्तियों का एक फारसी नाटक ‘मेहर मुनीर’ का अंग्रेजी रुपांतारण लिखा।
उनके पिता ने इस नाटक को भी प्रकाशित करवा दिया।
उसकी कुछ प्रतियाँ उन्होंने अपने मित्रों व परिचितों में बाँट दी और एक प्रति हैदराबाद के निजाम को भी भेंट की।
निजाम ने उस पुस्तक को बड़ी रुचि लेकर पढ़ा और उस समय तो उनके आश्चर्य का ठिकाना ही न रहा, जब उन्हें पता चला कि इस नाटक की लेखिका एक नन्ही सी बच्चा है।
उन्होंने उसे एक अनोखा पुरस्कार देने की ठानी और सरोजिनी को आगे की पढ़ाई विदेश जाकर करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की।