अंग्रेजो की ईस्ट इंडिया कंपनी 1600 में महारानी एलिजाबेथ प्रथम के हस्ताक्षरो से जारी आदेश के साथ स्थापित हुई।
इसमे भारत के साथ व्यापार करने की अनुमति दी गयी।
कैप्टन हॉकिन्स 1608 मे जहाँगीर के दरबार मे आया, परंतु उसे व्यापार के अधिकार प्राप्त नहीं हो सकी परंतु 1613 मे सर थॉमस रोए के आगमन पर उसे सूरत में कारखाना स्थापित करने की अनुमति दी गई।
धीरे-धीरे कंपनी ने, कलकत्ता तथा मद्रास में अपने व्यावसायिक केंद्र स्थापित कर दिए।
अंग्रेजो ने अपनी बस्तियाँ कारखाने
मसूलीपट्टम (1611),
आगरा, अहमदाबाद, बड़ौदा, भड़ौच (सभी 1619),
पुलीकट के निकट अरमा गाँव (1626),
हरिहरपुर तथा बालासोर (1633),
पटना, ढाका, कासिम बाजार-बंगाल तथा बिहार में (1835),
मद्रास (1639) मे स्थापित किए।
सैंट जार्ज फोर्ट, हुगली (1651) स्थापित करने के लिए बस्तियों का एक जाल बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा (1658). बंबई (1668), सुतानुती (1690), कालीकोटा तथा गोविंदपुर (1698) में स्थापित किया गया।
सुतानुती, कालीकोटा तथा गोविंदपुर को बाद में एक साथ मिलाकर एक नया शहर’ कलकत्ता बनाया गया तथा सुतानुती के कारखाने को बाद में 1700 मे किले कारूप दिया गया और इसका नाम फोर्ट विलियम’ रखा गया|
1686 में अंग्रेजो ने मुगल बादशाह औरंगजेब के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की, जिसमें अंग्रेजो ने भारतवर्ष में अपनी सभी बस्तियो तथा कारखानों का नियंत्रण 1688-1689 में मुगलों के हाथ गंवा दिया।
1690 मे आत्मसमर्पण करने वाले अंग्रेजों को मुगल बादशाह ने क्षमा कर दिया।
1691 में अंग्रेजों के लिए औरंगजेब ने एक फरमान जारी किया, जिसके अनुसार ब्रिटिश कंपनी को सीमा शुल्क (कस्टम डयूटी) अदा करने से मुक्त किया गया।
फारुखसियर ने 1717 में अंग्रेजो के लिए एक और फरमान जारी किया, जिसमे ब्रिटिश लोगों को दी गई यह विशेष छूट गुजरात तथा दक्कन में भी लागू कर दी गई।