वीर रस- विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से ‘उत्साह’ नामक स्थायी भाव ‘वीर’ रस की उत्पत्ति करता है।
वीर रस दुष्कर कार्यों यथा, युद्ध आदि में वीर रस की उत्पत्ति होती है वीरता का प्रदर्शन अनेक क्षेत्रों में सम्भव है और उसी के आधार पर दानवीर, यशवीर, दयावीर, धर्मवीर, युद्धवीर, शोधवीर, कर्मवीर जैसे- अनेक वीर हो सकते हैं। इसका स्थायी भाव उत्साह है।
उदाहरण:
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।
वक्त आने पे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्या बताए क्या हमारे दिल में है।।
वीर रस मूलतः चार प्रकार से होता है। जिसका विवरण इस प्रकार है|
(i) युद्ध वीर – शत्रु नाश का भाव।
(ii) दान वीर – त्याग का भाव।
(iii) दया वीर – दयनीय के दुःख नाश का भाव।
(iv) धर्म वीर – धर्म स्थापना तथा अधर्म नाश का भाव।