वाच्य के तीन भेद हैं
(क) कर्तृवाच्य- वाक्य का उद्देश्य क्रिया का कर्ता है. इस तथ्य को बताने वाला क्रिया का रूपान्तर कर्तृवाच्य कहलाता है. यथा-पूनम ने रोटी बनाई.
(ख) कर्मवाच्य- वाक्य का उद्देश्य क्रिया का कर्म है. इस तथ्य को क्रिया का रूपान्तर कर्मवाच्य कहलाता है. यथापूनम से रोटी बनाई गई.
(ग) भाववाच्य- यह क्रिया का वह रूपान्तर है, जो बोध कराता है कि वाक्य के उद्देश्य क्रिया का कर्ता अथवा कर्म कोई नहीं है. यथा- मुझसे पढ़ा नहीं जाता.
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