वन संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं

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      स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में पहली बार ‘वन-नीति’ सन् 1952 में लागू की गई थी। इस नीति के अंतर्गत लोगों की स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए और जनजातियों के विकास के लिए टिकाऊ वन प्रबंधन पर बल दिया गया था, क्योंकि जनजातियों की आजीविका वनों के सहारे ही चलती सन् 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति, वनों के क्षेत्रफल में हो रही कमी को रोकने के लिए बनाई गई थी।

      इस वन नीति के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

      (क) देश में 33 प्रतिशत भाग पर वन लगाना

      (ख) पर्यावरण संतुलन बनाए रखना तथा पारिस्थितिक असंतुलित क्षेत्रों में वन लगाना

      (ग) देश की प्राकृतिक धरोहर, जैव-विविधता तथा आनुवांशिक पूल का संरक्षण

      (घ) मृदा अपरदन और मरुस्थलीकरण रोकना तथा बाढ़ व सूखा नियंत्रण

      (ङ) निम्नीकृत भूमि पर सामाजिक वानिकी एवं वनरोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार

      (च) वनों की उत्पादकता बढ़ाकर वनों पर निर्भर ग्रामीण जनजातियों को इमारती लकड़ी, ईंधन, चारा और भोजन उपलब्ध करवाना और लकड़ी के स्थान पर अन्य वस्तुओं को प्रयोग में लाना

      (छ) पेड़ लगाने को बढ़ावा देने के लिए, पेड़ों की कटाई रोकने के लिए जन-आंदोलन चलाना, जिसमें महिलाएँ भी शामिल हों, ताकि वनों पर दबाव कम हो।

       

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