सामान्यत:उथले या छिछले सागर तट एवं अपतटीय भाग में बालू का जमाव अधिक होता रहता है।
ऐसे में जब अपतटीय भाग में रेत के टीलों का विस्तार इस प्रकार छल्ले की भाँति होने लगता है कि तट के निकट एवं मुख्य सागर के बीच ऐसे टीलों या रेत की श्रेणी (रोधिका) के जमाव से एक झील या बाँध जैसी आकृति बन जाती है तो इसे ही पश्चजल या लैगून कहते हैं।
उड़ीसा की चिल्का, आंध्र प्रदेश की पुलीकट एवं केरल की वेम्बनाड, लैगून या अवरोधक झील का सर्वोत्तम उदाहरण है।
ऐसी झील प्राय: बालू के टीलों की बाधा से ही बनती है फिर भी मुख्य सागर एवं झील के मध्य मार्ग बना रहता है।
ऐसी झील छिछली होती है।
केरल के तट पर पहाड़ियों की विशेष व्यवस्था के कारण अलग विधि से बनी लैगून भी पाई जाती है जिसे कयाल कहा जाता है ।