लेखक किस नदी के किनारे बैठा था?

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      maharshi
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        लेखक सतलुज नदी के किनारे बैठा था |

        प्रस्तुत पाठ “हिमालय की बेटियाँ” में लेखक नागार्जुन ने नदियों के विभिन्न रूपों का चित्रण किया है।

        एक बार मन की उदासी एवं तबीयत ढीली होने पर लेखक सतलुज नदी के किनारे पानी में पैर लटकाकर बैठ गया।

        थोड़े ही समय में लेखक का मन व तन ताज़ा हो गया तो लेखक ने इन नदियों को बहन की संज्ञा दे दी।

        काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है।

        यह नदियां जीवनदायनी है।

        यह लोकमाता के रूप में हमारा कल्याण करने वाली है।

        तो हमारी बेटियों के समान प्रेम का पात्र भी है।

        प्रेम का गहरा रूप होने पर यह प्रेयसी के समान प्रेम देने वाली है, ममता के रूप में यह बहन के समान भी है।

        यह नदियां विभिन्न रिश्तों का सजीव रूप प्रदान करती है।

        यह नदियां हिमालय रूपी पिता की बेटियां है जो प्रकृति को अनुप्रम सौन्दर्य प्रदान करती है।

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