जब मुख्य अर्थ का बोध न हो और मुख्य अर्थ से सम्बन्धित किसी अन्य अर्थ की प्रतीति हो, तब लक्षणा’ शक्ति होती है।
जैसे ‘घी मेरा जीवन है।’ इस वाक्य में घी को जीवन कहा गया है। परन्तु केवल ‘घी’ ही तो जीवन नहीं हो सकता, जीवन के लिए और भी बहुत-सी वस्तुओं की आवश्यकता होती है। अतः मुख्य अर्थ में बाधा हुई। फिर लक्षणा शक्ति द्वारा एक नया अर्थ प्रतीत हुआ ‘घी मेरे जीवन को बढ़ाने वाला है’। यही लक्ष्यार्थ है।
लक्षणा शब्द शक्ति का उदाहरण:-
आँखें मूंद न पीटो लीक ।
सोच समझ देखो तुम ठीक ॥
यहाँ आँख खोलकर काम करने वाले साधारण जगत् को ‘आँखें मूंद न पीटो लीक’ कहना ठीक नहीं है। इसलिए मुख्य अर्थ का बोध न होकर लक्षणा शक्ति से अन्य अर्थ की प्रतीति हुई कि ‘बिना सोचे-समझे नकल मत करो।’