रितू प्रवास क्या है

  • Post
Viewing 0 reply threads
  • उत्तर
      Quizzer Jivtara
      Participant
        भारत में भी कई लोग सामयिक अथवा मौसमी प्रवासन करते हैं। उत्तरी भारत में गन्ने की फसल तैयार होते ही कई मजदूर चीनी मिलों में रोजगार प्राप्त करने के लिए मौसमी प्रवास करते हैं और गन्ने की पिराई का मौसम समाप्त होते ही अपने-अपने गांवों को लौट जाते हैं।

        कुछ चरवाहे शुष्क मौसम में गुजरात तथा राजस्थान से गंगा के मैदान में प्रवास करते हैं और वर्षा ऋतु में वापिस चले जाते है। हिमालय की ढलानों पर पशुचारक नियमित रूप से मौसमी प्रवासन करते हैं। ये लोग ग्रीष्म ऋतु में उच्च पर्वतीय प्रदेशों में चले जाते है क्योंकि इस ऋतु में इन इलाकों में पशुओं को पर्याप्त चारा मिल जाता है। शीत ऋतु में उच्च प्रदेशों में हिमपात होता है और ये इलाके काफी ठंडे हो जाते है। अतः ये लोग कडाके की सर्दी से बचने के लिए निम्न क्षेत्रों की ओर प्रवास करते हैं। इस प्रक्रिया को ऋतु-प्रवास (Transhumance) कहते हैं।

        भारत में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के चरवाहे ग्रीष्म ऋतु में पहाड़ों की ओर तथा शीत ऋतु में मैदानों की ओर प्रवास करते हैं।

        इस प्रकार का ऋतु प्रवास करनेवाली मुख्य जातियाँ गूज्जर, बकरवाल, गद्दी तथा भोटिया हैं।

        मध्य एशिया के खिरगीज मौसमी पशुचारण करते हैं।

        इसी प्रकार टुण्ड्रा प्रदेश के लैप्स, सेमोयड्स तथा एस्किमो ग्रीष्म ऋतु में उत्तर की ओर तथा शीत ऋतु में दक्षिण की ओर प्रवास करते हैं। इनका पालतू पशु रेण्डियर है। कुत्तों तथा रेण्डियरों का उपयोग बोझा ढोने वाले पशुओं के रूप में उत्तरी उप ध्रुवीय क्षेत्रों में किया जाता है। पर्वतीय प्रदेश में चरवाहे ग्रीष्म ऋतु में अधिक उच्च स्थानों पर पश लेकर चले जाते हैं और शीत ऋतु में घाटियों में उतर आते हैं।

        कई देशों द्वारा राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण करने तथा घुमक्कड़ी पशुपालकों के लिए नवीन बस्ती योजना कार्यान्वित करने के कारण इन घमक्कड़ी पशुपालकों की संख्या एवं इनके द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले क्षेत्रों में कमी आती जा रही है।

    Viewing 0 reply threads
    • You must be logged in to reply to this topic.